पिछले काफी दिनों से ट्वीटर और फार्चुनर सवार नेता की छवि से परेशान समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव सड़क पर उतरकर अपनी एक नई तरह की छवि गढते नजर आ रहे हैं.
इस महीने की 16 तारीख को एक तस्वीर सामने आई, इसमें समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव सब्जी खरीदते नजर आ रहे थे. तस्वीर लखनऊ के बक्शी के तालाब इलाके की थी. वहां उन्होंने सड़क पर उतर कर लोगों से मुलाकात की और हालचाल पूछा. वो एक मंदिर में जाकर दर्शन करते और टीका लगवाते भी नजर आए. इसके बाद में अयोध्या में साधु-संतों का आशीर्वाद लेते भी नजर आए.

इस तस्वीर ने लोगों को थोड़ा हैरान किया. लेकिन ये कुछ ऐसी छवियां थीं, जिसे लोग अपने नेता में देखना-सुनना पसंद करते हैं. इससे लगता है कि उनका नेता उनके ही बीच का है. इसलिए वह उनके दुख-सुख से वाकिफ होगा. उनको लगता है कि यह नेता उनके हित की बात करेगा. इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि इसका जनता पर सकारात्मक असर पड़ता है और नेता की छवि मजबूत होती है.
समाजवादी सक्रियता
इस साल फरवरी-मार्च में कोरोना महामारी शुरू होने के पहले से ही लोग अखिलेश को बंद कमरे का नेता मानने लगे थे. वो सड़क पर कम सक्रिय नजर आते थे. वो अपने दफ्तर से ही वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सार्वजनिक कार्यक्रमों में या अपने कार्यकर्ताओं से संवाद करते नजर आते थे.
लेकिन अब जैसे जैसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, अखिलेश यादव की सक्रियता बढ़ती ही जा रही है. वो किसानों के मुद्दे पर सड़क पर भी उतरे हैं. सपा के कार्यकर्ता तो उत्तर प्रदेश के सड़कों को पहले से ही पुलिस की लाठियां खा रहे हैं और जेल जा रहे हैं.
इससे पहले अखिलेश यादव की सक्रियता ट्वीटर पर ज्यादा थी, इस वजह से उन्हें ट्वीटर वाला नेता भी कहा जाने लगा था. उनकी इस इमेज से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता की बहुत खुश नहीं थे. लेकिन अखिलेश के नए अवतार से वो काफी खुश हैं.

दरअसल उत्तर प्रदेश विधानसभा का आने वाला चुनाव अखिलेश यादव के लिए बिल्कुल अलग होगा. यह विधानसभा का पहला चुनाव होगा जो पूरी तरह से अखिलेश यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में नेता जी यानी कि मुलायम सिंह यादव पूरी तरह राजनीति में सक्रिय थे. उनकी पार्टी पर पूरी तरह से पकड़ थी. उनकी नेतृत्व में ही वह चुनाव लड़ा गया था. लेकिन यह पूरा सच भी नहीं है कि केवल नेता जी के बदौलत ही सपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. दरअसल उस चुनाव में अखिलेश यादव की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण थी.
अखिलेश के कंधे पर भारी जिम्मेदारी
2012 के चुनाव से पहले अखिलेश ने अपनी साइकिल से पूरे उत्तर प्रदेश को नापा था. उस दौरान ही अखिलेश ने बहुत से युवा नेताओं को तलाशा था. उन नेताओं की आज पार्टी के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका है. लेकिन समाजवादी पार्टी का 'मिशन 2022' इस बार पूरी तरह से अखिलेश यादव के कंधे पर है. बीमारी और अधिक उम्र की वजह से नेता जी सक्रिय नहीं हैं. इसलिए अखिलेश का सड़क पर उतरना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है.

किसान आंदोलन में सक्रियता दिखाकर अखिलेश ने यह दिखा दिया है कि उनके अंदर भी नेता जी वाला किसान बसता है. खेती-किसानी के मुद्दे उठाने में वो पीछे नहीं हैं. लेकिन उन्हें जनता के रोजमर्रा के जीवन से जुड़े मुद्दों पर विशेष ध्यान देना होगा. बीजेपी शासन में जनता महंगाई से काफी परेशान है, एक तरफ जहां पेट्रोल की कीमतें तीन अंकों में पहुंचने को बेचैन हैं. वहीं रसोई गैस की कीमतें पिछले एक पखवाड़े में करीब 100 रुपये बढ़ चुकी हैं. सरसों के तेल जैसे बुनियादी जरूरत के सामान का भाव पौने दो सौ रुपये प्रति किलो से अधिक हो गया है. इससे आम जनता परेशान है. उसका बजट गड़बड़ाया हुआ है. बेरोजगार युवाओं की समस्याएं अलग हैं. युवा नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं. महिला सुरक्षा की प्रदेश में रोज-ब-रोज धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.

एक राजनीतिक दल का सर्वेसर्वा होने की वजह से अखिलेश यादव के लिए जरूरी हो जाता है कि वो बीजेपी की सरकार की नीतियों और को लेकर जनता में फैले रोष को फायदा उठाएं और जनता के पास पहुंचकर रोष को वोट में तब्दिल करने का प्रयास करें.