क्या कहती हैं मध्य प्रदेश में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं
मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से सांप्रदायिकता को लेकर जो खबरें आ रही हैं, वो परेशान करने वाली हैं. यह तब और परेशान करने लगता है जब शासन-प्रशासन और विपक्ष इन घटनाओं पर चुप हो जाता है. इसी विषय पर है यह ब्लॉग.
मध्य प्रदेश से पिछले कुछ दिनों से आ रही खबरें परेशान करने वाली हैं. उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में बीते साल के अंतिम दिनों में सांप्रदायिक हिंसा हुई. अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए आरएसएस से जुड़े संगठनों की ओर से चंदा उगाही के लिए निकाली गई रैलियों के दौरान सांप्रदायिक हिंसा हुईं. सांप्रदायिक हिंसा की इन सभी घटनाओं का पैटर्न एक सा था. हालांकि इनमें किसी की जान तो नहीं गई. लेकिन लाखों का सामान जलाकर खाक कर दिया गया.

उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में सांप्रदायिक हिंसा राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने के अभियान के दौरान भड़की. अभी यह मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि बीते रविवार को इसी तरह की रैलियां इंदौर शहर और राजगढ़ जिले में निकाली गईं. इन रैलियों की खास बात यह है कि मुसलमानों के मुहल्लों या किसी मस्जिद या ईदगाह के सामने पड़ते ही ये काफी उग्र हो जाती हैं. उत्तेजक नारे लगाए जाते हैं. आपत्तिजनक बातें कही जाती हैं. मुसलमानों के घर-दुकान या मस्जिद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जाती है. इंदौर और राजगढ़ की रैलियों में भी यही सब दिखा.
सांप्रदायिक हिंसाओं की शुरुआत
इस तरह की सबसे पहली सांप्रदायिक हिंसा 25 दिसंबर को उज्जैन के बेगमबाग इलाके में हुई थी. अब सवाल यह उठता है कि इस सांप्रदायिक हिंसा के बाद 29 दिसंबर को इंदौर के चांदनखेड़ी और मंदसौर के डोराना गांव में रैली निकालने की इजाजत कैसे मिली. यही सवाल 3 जनवरी को इंदौर के स्कीम 71 के सेक्टर-डी और राजगढ़ के जीरापुर में निकाली गई रैली को लेकर है. अगर इजाजत मिली भी तो रैलियों को मुसलमानों के इलाकों से होकर जाने की इजाजत क्यों दी गई. क्या शासन-प्रशासन ने जान-बूझकर मुस्लिम बस्तियों से इन रैलियों को जाने की इजाजत दी. कोरोना को देखते हुए जब बहुत सी गतिविधियां देश में अभी भी बंद हैं तो इन रैलियों को इजाजत क्यों दी जा रही है.
इंदौर में हुई दो और घटनाएं भी चिंता पैदा करने वाली हैं. 31 जनवरी की रात दक्षिणपंथी संगठनों की शिकायत पर पुलिस ने मुनव्वर फारूकी नाम के एक स्टैंडअप कॉमेडियन को गिरफ्तार कर लिया. उन पर हिंदू देवी-देवताओं और गृहमंत्री अमित शाह का अपमान करने का आरोप लगाया गया. हालांकि खबरों के मुताबिक पुलिस को इसके सबूत नहीं मिले हैं. इंदौर की दो अदालतें उनकी जानमत याचिका खारिज कर चुकी हैं. अब वो हाई कोर्ट की शरण लेंगे. वहीं इंदौर के ही चांदनखेड़ी गांव में मस्जिद की मीनारों को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों को जमानत मिल चुकी है.

इंदौर के इंदौर-खंडवा रोड पर स्थित एक रेस्टोरेंट के पास लगे मंदिर के लिए चंदा अभियान से संबंधित पोस्टर को सरदार बलविंदर सिंह ने कथित तौर पर हटा दिया. इसके बाद हिंदूवादी संगठन के लोगों ने सोमवार रात बलविंदर सिंह के रेस्टोरेंट में तोड़फोड़ की. इससे सरदार जी काफी डरे हुए हैं.
#इंदौर: राम मंदिर चंदे के नाम पर गुंडागर्दी। मंदिर के चंदे के लिए लगाए गए पोस्टर को आपने इंदौर-खंडवा रोड स्थित रेस्टोरेंट से हटाने पर #सरदार बलविंदर सिंह को पुलिस के सामने हिंदूवादी संगठन के लोगों ने रेस्टोरेंट में जमकर तोड़फोड़ की । बभंवर कुआं थाना क्षेत्र का मामला।@newsclickin pic.twitter.com/QNM9kJe4tG
— Kashif Kakvi (@KashifKakvi) January 5, 2021
उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद उज्जैन में एक और मंदसौर में करीब 15 घर अतिक्रमण के नाम पर तोड़ दिए गए. खबरों के मुताबिक 26 दिसंबर को उज्जैन में घर तोड़ने वाला अमला एक घर के सामने पुहुंचा था. जिस घर को तोड़ना था, 25 दिसंबर को एक महिला उस घर से पत्थर फेंकती नजर आई थी. इसका वीडियो भी था. लेकिन जैसे ही सरकारी अमले को पता चला कि वह घर एक हिंदू का है और उसमें एक मंदिर भी है, उसे तोड़ने की कार्रवाई स्थगित कर दी गई. और उसके पड़ोस में बने एक मुसलमान के घर को तोड़ दिया गया. वहीं मंदौसर के सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित गांव में करीब 15 घर तोड़े गए. प्रशासन का कहना था कि घर सड़क पर बने हुए थे. हिंसा के समय एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का वहां पहुंचने में परेशानी हुई थी. इसे देखते हुए मकानमालिकों की रजामंदी से उन्हें तोड़ दिया गया. लेकिन उज्जैन और मंदसौर में घर तोड़े जाने के समय ने संदेह पैदा किया.
#MP: मध्यप्रदेश में लगातार राम मंदिर के चंदे के नाम पर रैली निकालकर शांति भंग करने की कोशिश जारी है । उज्जैन, मंदसौर और इंदौर की घटना के बाद कल #राजगढ़ जिले के #जीरापुर में हिंदू संगठनों द्वारा रैली निकाली गई और घंटों मस्जिदों और मुस्लिम कॉलोनी में प्रदर्शन हुआ । @newsclickin pic.twitter.com/qQt1vjRbWI
— Kashif Kakvi (@KashifKakvi) January 4, 2021
मंदसौर के जिस गांव में घर तोड़े गए थे. वहां जाने से मीडिया को रोका गया. इसने कार्रवाई की नीयत को लेकर संदेह पैदा किया. इसे और मजबूत किया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान ने. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार पत्थरबाजों पर अंकुश लगाने और उग्र प्रदर्शनों से निपटने के लिए एक कानून बनाएगी. मुख्यमंत्री के इस बयान ने संदेह पैदा किया. इससे पहले चौहान सरकार ने प्रदेश में अतिक्रमण हटाने के नाम पर जो अभियान चलाया, उसके निशाने पर केवल मुसलमान या राजनीतिक विरोधी ही रहे हैं. एक तरफ चौहान जहां कानून बनाने की बात करते हैं, वहीं राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र का कहना है कि जब पत्थर फेंकने का वीडियो है तो किसी बात की जांच. आरोपी का घर गिराने के लिए यह वीडियो ही काफी है. अब सवाल यह उठता है कि क्या मध्य प्रदेश में मुसलमान सरकार के निशाने पर हैं.
कौन करेगा मुकाबला
ऊपर उठाए गए सवाल का जवाब पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं से करीब-करीब मिल गया है.
अब दूसरा सवाल यह उठता है कि सरकार की इन कोशिशों का मुकाबला कौन करेगा. कांग्रेस मध्य प्रदेश की एकमात्र विपक्षी पार्टी है. लेकिन इन घटनाओं पर उसका जो रुख है, उससे यह बात पुष्ट नहीं होती है कि कांग्रेस वहां विपक्ष में है. पार्टी के सभी बड़े नेता इन घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं. उन्हें डर है कि अगर इन सांप्रदायिक घटनाओं पर कुछ बोला तो हिंदू वोट उनसे छिटक के कहीं दूर चला जाएगा.

अब ऐसे में सवाल यह है कि पार्थ कि मध्य प्रदेश किस ओर जा रहा है. उसकी मंजिल कहां है. और अगर मध्य प्रदेश अपना रास्ता भटक गया है तो उसे सही रास्ते पर लाएगा कौन. है किसी के पास इन सवालों के जवाब.
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