कमाल! अंतरिक्ष के विस्मयकारी सुपरनोवा विस्फोट की वैज्ञानिकों ने बनाई तस्वीर, सुलझेंगी नई गुत्थियां
ये विस्फोट 9000 साल पहले जब हुआ था तो उस वक़्त इसे पृथ्वी से नंगी आंखों से देखा जा सकता था. तस्वीरों में दिखने वाले इन विशालकाय तारों को सूरज के आकार से आठ गुना से भी ज़्यादा बड़ा बताया जा रहा है.
अंतरिक्ष की दुनिया में रोज़ाना अद्भुत शोध हो रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने हमारी गैलेक्सी मिल्की वे की एक ऐसी तस्वीर पेश की है जो स्तब्ध कर देने वाली है. वैज्ञानिकों ने इसके लिए अनूठा प्रयोग किया. रेडियो टेलीस्कोप के ज़रिए गैलेक्सी की तस्वीर बनाई गई. यानी अगर मनुष्य रेडियो तरंगों को देख पाता तो मिल्की वे की चमक देखकर लोग दंग रह जाते.
मर्चिसन वाइडफील्ड एरे टेलीस्कोप के ज़रिए कम फ्रिक्वेंसी वाले रेडियो तरंगों को दर्शाया गया, जो कि गैलेक्सी के केंद्र से चमकीले रंगों में निकलते हैं. पीले, सुनहरे, हरे और नीले रंगों की ऐसी लपट उठ रही है कि ये अजूबा दुनिया का एहसास कराती है. वैज्ञानिक नताशा हर्ले-वाकर के मुताबिक़, “हमारी तस्वीर मिल्की वे के केंद्र को सीधे तौर पर दर्शाती है. विज्ञान की भाषा में इसे गैलेंटिक सेंटर कहते हैं.”
तस्वीर साभार-एस्ट्रोर्डनरी
कर्टिन यूनिवर्सिटी की इस टीम ने सुपरनोवा विस्फोट के 27 विशालकाय तारों के अवशेष की तलाश करने के बाद इस प्रयोग को अंजाम दिया. ये विस्फोट 9000 साल पहले जब हुआ था तो उस वक़्त इसे पृथ्वी से नंगी आंखों से देखा जा सकता था. तस्वीरों में दिखने वाले इन विशालकाय तारों को सूरज के आकार से आठ गुना से भी ज़्यादा बड़ा बताया जा रहा है. विस्फोट के बाद ये तारे टूटते चले गए.
डॉक्टर हर्ले-वाकर के मुताबिक़ तस्वीर में ताज़ा सुपरनोवा के अवशेष को खोजना पुराने से कहीं ज़्यादा आसान है. 295 ऐसे तारों का पता चल चुका है. वो आगे बताती हैं कि सबसे ताज़ा सुपरनोवा के अवशेष हमारी गैलेक्सी के उस क्षेत्र में स्थित है जो आम तौर पर बहुत ख़ाली है. यानी तारों से पटे मिल्की वे के मैदान से वो बहुत दूर है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक़ ये विस्फ़ोट महज 9000 साल पहले हुआ था. ऑस्ट्रेलिया के मानवशास्त्रियों को उम्मीद है कि वो आने वाले दिनों में इस घटना की सांस्कृतिक यादों को स्थानीय आदिवासियों के पारंपरिक रिकॉर्ड में तलाश निकालेंगे. यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेलबर्न के प्रोफ़ेसर डुएन हेमाचर के मुताबिक़, “आदिवासी परंपरा में ऐसे चमकीले तारों के आकाश में उगने की कुछ कथाएं हैं लेकिन उनसे ये तय नहीं हो पा रहा है कि ये उसी (सुपरनोवा) की घटना के बारे में हैं या नहीं.”
डुएन हमेचार कल्चरल एस्ट्रोनॉमी के विशेषज्ञ माने जाते हैं. इंटरनेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोनॉमी रिसर्च में छपे शोधपत्र में वे कहते हैं, “अब हमें मालूम है कि कब और कैसे ये सुपरनोवा आसमान में आया. अब आदिवासियों की परंपरा में इस आसमानी घटना को तलाशने का काम किया जा सकता है. अगर ऐसा कुछ हाथ लगता है तो ये वाकई हैरतअंगेज़ होगा.”
ये तस्वीरें गैलेक्टिक और एक्स्ट्रा गैलेक्टिक ऑल स्काई MWA तकनीक के सहारे ली गईं. इस सिस्टम में तस्वीर का रिजोल्यूशन उतना ही होता है जितना मनुष्य की आंखों का. 72 से 231 मेगा हर्ट्ज की फ्रिक्वेंसी पर रेडियो तरंगों के ज़रिए इसे अंजाम दिया गया.
डॉक्टर हर्ले-वाकर के मुताबिक़, “इतना बड़ा फ्रिक्वेंसी रेंज लेने का फ़ायदा ये हुआ कि एक-दूसरे के सामने आ रहे अलग-अलग पिंडों को अलग करने में हमें सफलता मिल पाई. गैलेक्टिक सेंटर में ऐसा कर पाना बेहद मुश्किल काम है.” वैज्ञानिकों के मुताबिक़ अलग-अलग पदार्थों का अलग-अलग रेडियो कलर होता है. इन रंगों के माध्यम से ही हम इन तमाम पिंडों को अलग-अलग तरीक़े से समझ पाए.
हर्ले-वाकर के मुताबिक़ रिपोर्ट में कई ‘चौंकाने’ वाले आंकड़े भी सामने आए. तस्वीर में दर्ज दो सुपरनोवा के अवशेष ‘लावारिस’ पाए गए. इसका मतलब ये है कि अंतरिक्ष के उस हिस्से में किसी भी बड़े तारे की मौज़ूदगी नहीं है या थी. कुछ बेहद पुराने सुपरनोवा के अवशेष भी मिले. टीम को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में और रहस्यों से परदा उठेगा और आने वाले वक़्त में रेडियो टेलिस्कोप ऑन उपलब्ध हो सकेगा.
आपको बता दें कि सुपरनोवा दो तरह के होते हैं. पहला, बाइनरी तारों से बनता है, जिसमें एक तारा अपने साथी तारे का पदार्थ सोंखने लगता है और इस तरह तारा कार्बन-ऑक्सीजन व्हाइट ड्वार्फ़ में तब्दील हो जाता है. धीरे-धीरे इस तारे का पदार्थ इतना ज़्यादा बढ़ जाता है कि उसकी परिणति सुपरनोवा विस्फोट के रूप में तय हो जाती है. दूसरा सुपरनोवा सिंगल स्टार से बनता है जोकि तारे की उम्र पूरी होने की मुनादी है. तारे का नाभिकीय ईंधन जैसे-जैसे ख़त्म होता जाता है इसका द्रव्यमान केंद्र में जमा होने लगता है. केंद्र इतना वजनदार हो जाता है कि ये ख़ुद अपना गुरुत्वाकर्षण बल को संभाल नहीं पाता और आख़िरकार तारे में विस्फोट हो जाता है.