कोरोनावायरस: बांग्लादेश को मिली बड़ी कामयाबी, तैयार की लोकल रेमडेसिवीर
बेक्सिम्को की इस उपलब्धि से दक्षिण एशिया के कई देशों में इस दवा की तत्काल आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी. बांग्लादेश की सरकार ने कहा कि यदि कुछ सरकारों को हमारी दवा की जरूरत है, तो हम इसका निर्यात करेंगे.
बांग्लादेश स्थित दवा निर्माता कंपनी बेक्सिम्को दुनिया की पहली कंपनी बन गई है जिसने एंटीवायरल दवा रेमडेसिवीर का एक जेनरिक संस्करण तैयार कर लिया है. रेमडेसिवीर को मूल रूप से अमेरिका की कंपनी गिलीड साइंसेज़ ने विकसित किया था और इस दवा को इबोला के उपचार के लिए बनाया गया था.
रेमडेसिवीर दवा मानव शरीर में मौजूद उस एक एंजाइम पर हमला करती है जिसकी मदद से कोई वायरस शरीर में दाखिल होने के बाद खुद को बढ़ाता है. हाल ही में अमेरिका में हुए एक अध्ययन में पाया गया था कि रेमडेसिवीर ने गंभीर रूप से बीमार लोगों के रिकवरी टाइम को कम करने में मदद की. हालांकि, इस दवा से जीवित रहने की दर में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं देखा गया था.
कंपनी में मुख्य परिचालन अधिकारी राबुर रेजा ने एक इंटरव्यू में कहा कि एक गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 मरीज को कम से कम छह शीशियों की जरूरत होगी. विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के तहत बांग्लादेश पेटेंट दवाओं के सामान्य संस्करण का उत्पादन कर सकता है, जो कम विकसित देशों को लाइसेंस प्राप्त करने से छूट प्रदान करते हैं.

बेक्सिम्को की इस उपलब्धि से दक्षिण एशिया के कई देशों में इस दवा की तत्काल आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बात की संभावना है कि बेक्सिम्को इस दवा के उत्पादन के लिए भारत और पाकिस्तान में भी कोई साझेदार जल्द ढूंढ लेगी.
हालांकि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि रेमडेसिवीर को कोरोना वायरस के लिए ‘जादुई गोली’ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. लेकिन कोविड-19 के लिए किसी भी स्पष्ट उपचार की अनुपस्थिति में कई देश इस दवा को आजमाने के इच्छुक हैं.
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के मुताबिक, बांग्लादेश में बुधवार तक 28,511 से ज्यादा कोरोना से संक्रमित मरीज हैं, जबकि इस महामारी की वजह से 386 लोगों की मौत हो चुकी है.
वहीं कोरोना वायरस के चलते अब तक दुनिया भर में 3 लाख 33 हज़ार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और 51 लाख से ज्यादा लोग अब भी कोरोना की चपेट में है. यूरोप समेत दुनिया के कुल 188 देश इस वायरस से जूझ रहे हैं और माना जा रहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्था को इतना बड़ा झटका लगा है. अभी तक इस वायरस का कोई इलाज नहीं निकल पाया है और दुनिया भर के लोगों की उम्मीद वैक्सीन पर टिकी है.
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