ग्राउंड रिपोर्ट: ऑर्गेनिक फार्मिंग में ‘विश्व रिकॉर्ड’ बनाने वाले बिहार के इस गांव की असली कहानी, सफलता या घपला?
ये गांव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िला नालंदा में आता है और आस-पड़ोस के गांव के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गया है. लेकिन, चुनावी कवरेज के बहाने जब एशियाविल की टीम सोहडीह पहुंची तो बिल्कुल अलग ही तस्वीर देखने को मिली.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ की अपील से काफी पहले बिहार के एक गांव ने काफी सुर्खियां बटोरी थी. गूगल पर अगर आप सोहडीह सर्च करेंगे तो सर्च रिजल्ट में यहां की कई कहानियां पढ़ने को मिल जाएंगी. 2013 में यहां के किसानों ने ऑर्गेनिक फार्मिंग के ज़रिए आलू उत्पादन में विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया.
ये गांव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िला नालंदा में आता है और आस-पड़ोस के गांव के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गया है. लेकिन, चुनावी कवरेज के बहाने जब एशियाविल की टीम सोहडीह पहुंची तो बिल्कुल अलग ही तस्वीर देखने को मिली. किसानों ने खुद कहा कि वे पैदावार बढ़ाने के लिए ऑर्गेनिक तौर-तरीक़ों के अलावा जमकर रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल करते रहे हैं.
कुछ लोग इसे ‘ऑर्गेनिक खेती के नाम पर बिहार का सबसे बड़ा घोटाला’ तक करार देते हैं. बिहार शरीफ़ से महज चंद किलोमीटर की दूरी पर ये गांव बसा है. प्रवेश द्वार पर लिखा है- शेर-ए-हिहार सोहडीह. उसके ऊपर नागरिकता संशोधन क़ानून के समर्थन में एक झंडा भी फहरा रहा है. अंदर जाने पर कुशवाहा पंचायत भवन में सुस्ताते कई लोग नज़र आए. बाहर, कुछ बच्चे मगटगश्ती करते दिखे, लेकिन बाद में पता चला कि वहां हाई-स्पीड इंटरनेट और वाई-फाई की मदद से वे सब गेम खेल रहे हैं.

सरसरी तौर पर देखने पर लगता है कि गांव के किसान साधन-संपन्न हैं. 85 साल के बृज मोहन प्रसाद मेहता के मुताबिक़ उन्होंने खेती से संन्यास ले लिया. अब वे सिर्फ़ निगरानी रखते हैं. पंचायत भवन में मेहता ग्रामीणों के साथ गप लड़ा रहे हैं. जब हमने उनसे ऑर्गेनिक फार्मिंग के बारे में पूछा तो उन्होंने पलटकर जवाब दिया, “कौन सी ऑर्गेनिक फार्मिंग? एक एनजीओ है जो हमारे गांव के बारे में इस तरह की बातें फैला रहा है. हम ऑर्गेनिक फार्मिंग करते ज़रूर हैं, लेकिन केमिकल फार्मिंग का भी सहारा लेते हैं. हम पैदावार बढाने के लिए डीएपी और उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं.”
ये चौंकाने वाली बात थी क्योंकि सोहडीह के बारे में जितनी ‘प्रेरणादयक’ न्यूज़ रिपोर्ट्स मैंने देखी थी, वे सब ऑर्गेनिक फार्मिंग से जुड़ी थीं. राज्य सरकार सोहडीह को मॉडल बनाकर बिहार में ऑर्गेनिक फार्मिंग का प्रचार करती रही है. सरकारी दस्तावेज़ बताते हैं कि राज्य सरकार हर ज़िले में एक गांव को ऑर्गेनिक फार्मिंग का केंद्र बनाना चाहती है.

55 साल के अजय कुमार भी मेहता की बात से सहमति जताते हैं. उनके मुताबिक़ ये सारा प्रचार जेडीयू और बीजेपी सरकार ने किया है. अजय कहते हैं, “ख़ाली नाम चल रहा है. ऑर्गेनिक खेती के चक्कर में रहेंगे तो बर्बाद हो जाएंगे.”
कुछ दशक पहले तक यहां के लोग मोटे तौर पर धान पर निर्भर थे. लेकिन बाद में लोगों ने सब्ज़ी उगानी शुरू कर दी और इससे अच्छी आमदनी मिले लगी. धीरे-धीरे आस-पास के दर्जन भर गांवों ने यही रास्ता अख़्तियार कर लिया.
कुमार के मुताबिक़, “सब्ज़ी में ज़्यादा पैसा लगता है, लेकिन अगर पैदावार अच्छी है तो धान से कहीं ज़्यादा कमाई हो जाती है.” उनके मुताबिक़ इसी आमदनी से उन्होंने अपने बेटे की इंजीनियरिंग और बेटी की कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई के लिए 10 लाख रुपए की फीस भरी.

रासायनिक से ऑर्गेनिक खेती की तरफ़ जाने के लिए सोहडीह के किसानों को बक़ायदा ट्रेनिंग दी गई. लेकिन 60 साल के हरीश चंद्र प्रसाद कहते हैं, “हमने दो कट्ठा में प्याज़ लगाया. साइज़ छोटी निकली. हमने सारे ऑर्गेनिक तरीके अपना लिए, लेकिन काम नहीं बना. फिर हमने साइज़ बढ़ाने के लिए उर्वरक का इस्तेमाल किया और नतीजा हमारे पक्ष में गया.”
राज्य सरकार द्वारा इस गांव का प्रचार किए जाने पर वहां के लोग हैरानी जताते हुए उल्टा कहते हैं कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि सरकार क्यों ऐसा कर रही है. करना ही है तो बिजली और उर्वरकों की दरों में कटौती करे और सब्सिडी दें.
46 साल के किसान जितेन्द्र कुमार के मुताबिक़ लगभग सारे किसान यहां उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं. वे कहते हैं, “अगर सही से जांच हो जाए तो ऑर्गेनिक फार्मिंग के नाम पर ये सबसे बड़ा घपला साबित होगा. इस ‘ऑर्गेनिक’ को फैलाने के लिए काफी फंड दिए जा रहे हैं और इसलिए ये घपला हो रहा है. हम किसान हैं और जानते हैं कि अच्छी पैदावार किस तरह होती है.”
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