बिहार में कोरोना Updates: सिवान बन रहा है हॉट स्पॉट, कोरोना पॉजिटिव की संख्या हुई 28
सिवान में ऐसा क्या हुआ कि बिहार में कोरोना के मुद्दे पर उसकी चर्चा हो रही है?
बिहार में कोरोना पॉजिटिव की संख्या बढ़ती ही जा रही है. गुरुवार की शाम तक राज्य में चार पॉजिटिव मिल चुके हैं. पूरे राज्य में कोरोना वायरस के 28 केस पॉजिटिव पाए गए हैं, जिसमें से एक मरीज की मौत हो चुकी है. राहत की बात यह है कि तीन मरीज पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं.
आज मिले चार मरीजों में गया के एक, सिवान के एक तथा गोपालगंज के दो हैं. गया में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़कर तीन हो गई है, जबकि सिवान में छह पॉजिटिव केस हो गए. गुरुवार को मिले चार नए केसों में एक की रिपोर्ट आरएमआरआइ से एक तथा आइजीआइएमएस तीन की रिपोर्ट पाॅजिटिव मिली है.
हले से संक्रमित पहाड़पुर के युवक की 21 वर्षीय पत्नी की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव. यह युवक मुंगेर में एक निजी अस्पताल में कार्यरत था और वहां भर्ती उस युवक के संपर्क में आया था, जिसने कोरोना संक्रमण के कारण बाद में दम तोड़ दिया था.वहीं राज्य में कोरोना संदिग्धों की संख्या में बड़ी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है.
सरकार का कहना है कि उसके द्वारा पिछले दिनों अलग-अलग स्तर पर कराई गई स्क्रीनिंग में कुल 5919 संदिग्ध मिले हैं, जिनमें कोरोना के लक्षण हैं. उनमें से 3105 सिर्फ सीवान से हैं. दूसरे नम्बर पर गोपालगंज हैं, जहां 510 के करीब संदिग्ध मिले हैं. पड़ोसी जिला सारण में 425 संदिग्ध मिले हैं और दरभंगा में 345 संदिग्ध हैं.
अब थोड़ी चर्चा सीवान की कर लेते हैं. राज्य सरकार द्वारा दिए गए नम्बर्स के आधार पर ये साफ़ है कि पूरे राज्य में सबसे ज़्यादा संदिग्ध सिवान में हैं. इस लिहाज़ से सिवान में अधिक सतर्कता और संसाधन की ज़रूरत पड़ सकती है. 25 मार्च को सीवान के सिविल सर्जन डॉ. अशेष कुमार ने ज़िले में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, अनुमंडलीय अस्पताल और सदर अस्पताल के उपाधीक्षक को एक पत्र लिखा.

इस पत्र में उन्होंने जो पत्र लिखा उसका आशय यह था कि हर इलाक़े के निजी अस्पतालों और ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले झोला छाप डाक्टरों की एक सूची तैयार की जाए. उनसे सहमति लेने के बाद कोरोना के उपचार या उपचार के दौरान उनकी सहायता के लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए.
ये पत्र सोशल मीडिया पर लीक गो गया. लोगों ने झोला छाप डाक्टरों के ज़िक्र पर आपत्ति जताई और अप्रैल की पहली तारीख़ को विभाग ने उन्हें ऐसा पत्र लिखने के लिए निलम्बित कर दिया. जबकि मार्च की 31 तारीख़ को राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार ने अख़बारों में विज्ञापन देकर निजी चिकित्सकों से योगदान देने की अपील की है.
पटना में रहने वाले और बिहार में लम्बे वक्त्त से पत्रकारिता करने वाले पुष्यमित्र ने राज्य सरकार के इस क़दम पर लिखे अपने एक सोशल मीडिया कमेंट में लिखा, "वहां के सिविल सर्जन ने एक इनोवेटिव आईडिया निकाला था उसे सस्पेंड कर दिया गया. उसने झोला छाप डॉक्टरों को प्रशिक्षित करने की बात की थी. ऐसी परिस्थिति में यह बढ़िया काम करता. स्वास्थ्य विभाग की टीम में अभी मैन पॉवर का घोर संकट है."
असल में राज्य सरकार या बिहार का स्वास्थ्य विभाग सिविल सर्जन के साथ खड़ा नहीं हो सका. उसने कुछ अलग करने और पहल करने वाले डॉ. अशेष कुमार पर राज्य सरकार और बिहार के स्वास्थ्य सेवा को बदनाम करने का आरोप मढ़ दिया जबकि ये किसी छुपा नहीं है कि बिहार का सरकारी स्वास्थ्य तंत्र अकेले अपने दम पर कोरोना से लड़ नहीं सकता लेकिन सरकार है कि इस सर्वविदित सच्चाई को मानने के लिए तैयार ही नहीं है.