कोरोना में प्राकृतिक तौर से हर्ड इम्यूनिटी हासिल करना असंभव
स्पेन में की गई स्टडी के बाद हर्ड इम्यूनिटी को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं और कहा जा रहा है बिना वैक्सीन हर्ड इम्यूनिटी हासिल नहीं हो पाएगी. नई स्टडी का ये भी मतलब है कि 28 हज़ार लोगों को खोने के बाद भी स्पेन की 95 फीसदी आबादी पर वायरस का ख़तरा अब भी मंडरा रहा है.
दुनियाभर में कोरोनावायरस संक्रमण के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं. दुनियाभर में अबतक 1 करोड़ 16 लाख से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं. जबकि 5 लाख 38 हज़ार से ज्यादा लोगों ने अबतक कोरोना से दम तोड़ दिया है. दुनियाभर के वैज्ञानिक इसकी वैक्सीन खोजने में दिन-रात एक कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है. इस सब के बीच कोरोना वायरस को लेकर हैरान करने वाला खुलासा हुआ है.
हर्ड इम्यूनिटी के बारे में जानकारी जुटाने के लिए वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस पर एक बड़ी स्टडी की है और स्टडी के परिणाम हैरान करने वाले हैं. दरअसल स्पेन में एक राष्ट्रव्यापी स्टडी में पाया गया है कि यहां की कुल आबादी के सिर्फ 5 फीसदी लोगों के पास कोरोनोवायरस एंटीबॉडीज पाए गए हैं जब की यहां संक्रमितों की संख्या लाखों में थी. ऐसे में माना जा रहा है कि हर्ड इम्युनिटी से कोरोना से बचाव का रास्ता बेहद मुश्किल है. इतना ही नहीं ये लोगों के लिए ख़तरनाक भी साबित हो सकता है.
स्पेन सिर्फ 4.6 करोड़ की आबादी वाला देश है. यहां 2.98 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और 28 हज़ार से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी है. इन वजहों से ये माना जा रहा था कि स्पेन के काफी अधिक लोग इम्यून हो चुके होंगे. लेकिन स्टडी में पता चला है कि अब तक स्पेन की सिर्फ 5 फीसदी आबादी ही इम्यून हो पाई है.

सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक स्पेन में की गई स्टडी के बाद हर्ड इम्यूनिटी को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं और कहा जा रहा है बिना वैक्सीन हर्ड इम्यूनिटी हासिल नहीं हो पाएगी. मेडिकल जर्नल The Lancet में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक ये स्टडी काफी बड़ी थी और करीब 61 हज़ार लोगों के सैंपल लिए गए थे.
नई स्टडी का ये भी मतलब है कि 28 हज़ार लोगों को खोने के बाद भी स्पेन की 95 फीसदी आबादी पर वायरस का ख़तरा अब भी मंडरा रहा है. यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल का कहना है कि यूरोप के किसी देश में की गई ये अब तक की सबसे बड़ी स्टडी है.
अध्ययन का पहला चरण 27 अप्रैल से 11 मई के बीच आयोजित किया गया था और दूसरे चरण के परिणाम 4 जून को जारी किए गए थे, जिसमें SARS-CoV-2 एंटीबॉडी का 5.2 फीसदी राष्ट्रीय प्रसार था. तीसरे चरण के परिणाम अगले सोमवार को जारी किए जाएंगे.

वहीं स्पेन का मैड्रिड जहां कोरोना का प्रकोप सबसे ज्यादा था वहां में 10 फीसदी का एंटीबॉडी प्रसार था, जबकि बार्सिलोना में 7 फीसदी एंटीबॉडी का प्रसार था.
Lancet की स्टडी में जिनेवा के सेंटर फॉर इमरजिंग वायरल डिजीज की प्रमुख इजाबेल एकरले और जिनेवा यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट बेंजामिन मेयर ने कहा कि नतीजों से पता चलता है कि प्राकृतिक रूप से हर्ड इम्यूनिटी हासिल करना न सिर्फ काफी अधिक अनैतिक होगा बल्कि असंभव होगा.
डॉक्टर अब तक इस बात को लेकर भी आश्वस्त नहीं हो पाए हैं कि किसी व्यक्ति के शरीर में कोरोना की एंटीबॉडीज है तो वह दोबारा संक्रमित नहीं होगा या फिर कितने दिनों तक सुरक्षित रहेगा. वहीं एक्सपर्ट का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी के लिए सामान्य स्थिति में समाज के 60 फीसदी लोगों का इम्यून होना जरूरी है.

हर्ड इम्यूनिटी ऐसी स्थिति को कहा जाता है जब किसी समाज में इतने अधिक लोग इम्यून हो चुके होते हैं कि वायरस का चेन टूट जाता है और नए लोग संक्रमित नहीं हो पाते हैं.
दरअसल जब कोई बीमारी जनसंख्या के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो बाकी बचे लोग इससे सुरक्षित हो जाते हैं, यानी इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है. ज्यादातर लोग इस बीमारी से इम्यून हो जाते हैं यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते है.
जैसे-जैसे ज़्यादा लोग इम्यून होते जाते हैं, वैसे-वैसे संक्रमण फैलने का ख़तरा कम होता जाता है. इससे उन लोगों को भी इनडायरेक्टली सुरक्षा मिल जाती है जो ना तो संक्रमित हुए और ना ही उस बीमारी के लिए इम्यून हैं. लेकिन कोरोना के केस में ऐसा होता नहीं दिखाई दे रहा है.
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