कोरोना: जल्दी से वैक्सीन तैयार करने में जुटी है ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, ट्रायल के लिए है लोगों की तलाश
कोरोनावायरस की वैक्सीन बनाने के लिए दुनिया भर में कई कंपनियां शिद्दत से जुटी हैं. हालांकि इसमें अब तक कोई सफलता नहीं मिल पाई है. लेकिन, कोशिशें चौतरफ़ा जारी हैं. अब ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक भी ट्रायल के लिए स्वयंसेवक तलाश रहे हैं.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कोरोनावायरस महामारी के ख़िलाफ़ जल्दी से जल्दी वैक्सीन तैयार करने के प्रयासों के तहत क्लिनिकल ट्रायल के लिए लोगों की तलाश शुरू कर दी है. इस परीक्षण के लिए यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टिट्यूट और ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप ने आपस में हाथ मिलाया है. बता दें कि कोरोना के कारण ब्रिटेन में अब तक 1019 लोगों की मौत हो चुकी है.
शोधकर्ताओं के प्रॉजेक्ट के तहत 510 वॉलंटिअर्स पर अध्ययन किया जाएगा, जिन्हें ChAdOx1 SoV-19 इन्जेक्शन दिए जाएंगे या फिर तुलना के लिए नियंत्रित इंजेक्शन लगाए जाएंगे. वैक्सीन डिवेलपमेंट से जुड़े अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने आगामी परीक्षण के लिए इंगलैंड की टेम्स वैली क्षेत्र में शुक्रवार से (18 से 55 साल उम्र के) स्वस्थ स्वयंसेवक चुनने (स्क्रीनिंग) शुरू कर दिए हैं.
वहीं, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टिट्यूट के निदेशक प्रोफेसर एड्रियन हिल ने कहा, “ऑक्सफोर्ड टीम को जल्द कार्रवाई का अभूतपूर्व अनुभव रहा है जैसा कि 2014 में पश्चिम अफ्रीका में इबोला महामारी के वक़्त हुआ. यह उससे भी बड़ी चुनौती है.”
ब्रिटेन में कोरोनावायरस के कारण 260 लोगों की मौत होने के साथ कुल मौतों की संख्या 1000 पार कर गई है. अब तक यह एक दिन में यूनाइटेड किंगडम में होने वाली सबसे ज्यादा संख्या रही. अब तक देश में 17,089 लोग कोरोना वायरस टेस्ट के लिए पॉजिटिव पाए गए हैं. बता दें कि ब्रिटेन में पहले ही प्रिंस चार्ल्स और प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के अलावा हेल्थ मिनिस्टर मैट हैनकॉक भी कोरोना वायरस पॉजिटिव आ चुके हैं.

अमेरिका में ट्रायल शुरू
दुनिया भर को हिला देने वाले इस वायरस से निपटने के लिए अमेरिका में शोधकर्ताओं के एक समूह ने 16 मार्च को इसकी पहली खुराक एक व्यक्ति को दी. पूरी दुनिया में इस तरह का ये पहला मामला है जब इसकी वैक्सीन को किसी मनुष्य पर इस्तेमाल किया जा रहा हो.
सिएटल स्थित कैसर परमानेंट वॉशिंगटन रिसर्च इंस्टीट्यूट में कोविड-19 वैक्सीन के पहले चरण की खुराक पर ये रिसर्च चल रहा है. अमेरिका का दावा है कि चीन में वायरस के फैलने के बाद इसे रिकॉर्ड समय में तैयार किया गया है.
इस टीम की अगुवाई करने वालीं डॉक्टर लीज़ा जैक्सन ने लॉस एंजिल्स टाइम्स को बताया था, “अब हम टीम कोरोनावायरस हैं. इस आपातकालीन घड़ी में हर कोई हर मुमकिन काम करने में जुटा है.”
शोधकर्ताओं के मुताबिक़ वैक्सीन में बीमारी पैदा करने वाले वायरस का जेनेटिक कोड कॉपी किया गया है ताकि इस वायरस पर क़ाबू पाया जा सके. जानकारों का मानना है कि ये जानने में अभी महीनों लग जाएंगे कि वैक्सीन सही तरीक़े से काम कर रहा है या नहीं.

इस वैक्सीन का कोड नाम mRNA-1273 रखा गया है. वैज्ञानिकों का दावा है कि वैक्सीन से वॉलेंटियर्स में कोरोनावायरस नहीं फैलेगा क्योंकि वैक्सीन में इस वायरस का अंश नहीं है. इसमें सिर्फ़ जेनेटिक कोड को कॉपी किया गया है.
लैब में ख़ुद के ऊपर परीक्षण के लिए चार लोगों ने मंजूरी दी. इनमें पहली शख्स हैं जेनिफर हैलर. हैलर एक छोटी टेक कंपनी में ऑपरेशनल मैनेजर की नौकरी करती हैं. उनकी बाज़ू में इस वैक्सीन की पहली इंजेक्शन दी गई. हैलर के अलावा तीन और लोगों पर इस वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया है. माना जा रहा है कि एक महीने के भीतर कुल 45 लोगों के ऊपर इस वैक्सीन का परीक्षण किया जाएगा.
जेनिफर हैलर 43 साल की महिला हैं जो सिएटल की ही रहने वाली हैं. दो बच्चों की मां हैलर सामाजिक कार्यों में भी काफी रुचि रखती हैं. जेनिफर कहती हैं, “इस मोड़ पर हम अपनी ज़िंदगी हाथ धोकर और वर्क फ्रॉम होम की बजाए इस वायरस से लड़कर बिताना चाहते हैं.”
दूसरी तरफ़ जर्मनी में भी टीका बनाने पर गंभीरता से काम चल रहा है. क्योरवैक नामक कंपनी वहां कोरोनावायरस का वैक्सीन बना रही है. बीते दिनों क्योरवैक को लेकर काफी विवाद हुआ था जब जर्मनी के एक सरकारी अधिकारी ने ये आरोप लगाया कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इस कंपनी से वैक्सीन के सारे अधिकार ‘सिर्फ़ अमेरिका’ के लिए ख़रीदना चाहते हैं.
सिंगापुर में भी जारी है काम
सिंगापुर के वैज्ञानिकों का एक समूह भी इसके संभावित टीके पर काम कर रहा है. ये वैज्ञानिक सिंगापुर के ड्यूक-एनयूएस मेडिकल स्कूल में काम करते हैं और इस स्कूल ने संभावित टीके के ट्रायल के लिए आर्कट्यूरस थेराप्यूटिक्स नामक अमेरिकी बायोटेक कंपनी के साथ साझेदारी की है.
इन वैज्ञानिकों का कहना है कि इनकी तकनीक से सिर्फ़ कुछ दिनों में उन संभावित टीकों का मूल्यांकन हो सकेगा जिन्हें आर्कट्यूरस बनाएगी. अमूमन टीकों को इंसानों पर टेस्ट करके उनका मूल्यांकन करने में महीनों लग जाते हैं. सिंगापुर के वैज्ञानिक टीके पर काम नहीं कर रहे, बल्कि टीके के जल्द टेस्ट करने की तकनीक पर ये लोग काम में जुटे हैं.

एनयूएस मेडिकल स्कूल के इमर्जिंग इन्फेक्शस डिसीसेस प्रोग्राम के डिप्टी डायरेक्टर वी एंग योंग का कहना है, "जींस के बदलने के तरीके से आप पता लगा सकते हैं. जैसे कौन सा जीन ऑन हो रहा है, कौन सा ऑफ."
उन्होंने ये भी कहा कि एक टीके द्वारा सक्रिय किए गए इन बदलावों का तेज़ी से आंकलन कर वैज्ञानिक टीके के प्रभाव और दुष्प्रभाव का पता लगा सकते हैं, बनिस्बत इसके कि उस टीके को जिन इंसानों को दिया जाए सिर्फ उनकी प्रतिक्रियाओं पर निर्भर रहा जाए.
टीके पर चल रहा है काम
इस समय नए कोरोनावायरस की ना कोई स्वीकृत दवा उपलब्ध है और ना निवारक टीका. अधिकतर मरीजों को सिर्फ मदद और देख-भाल मिल रही है, जैसे सांस लेने में मदद. विशेषज्ञों का कहना है कि टीका तैयार होते-होते एक साल या उस से ज्यादा भी लग सकता है.
वी एंग योंग ने बताया कि उनकी योजना है कि लगभग एक हफ्ते में टीके को चूहों में टेस्ट करना शुरू कर दें. इंसानों में परीक्षण साल की दूसरी छमाही में शुरू होने की उम्मीद की जा सकती है.
दुनिया भर में दवा कंपनियां और शोधकर्ता तेजी से कोरोनावायरस के ख़िलाफ़ टीका और इलाज विकसित करने की होड़ में लगे हुए हैं. इनमें अमेरिका की गिलियड साइंस कंपनी की प्रयोगात्मक एंटीवायरल दवा रेमडेसीवीर और जापान की ताकेदा दवा कंपनी की प्लाज्मा आधारित थेरेपी शामिल हैं.
खोज से ले कर लाइसेंस मिलने तक, पहले टीका बनाने की प्रक्रिया में 10 साल से भी ज्यादा लग जाते थे. लेकिन वी एंग योंग के अनुसार, विज्ञान के पास अब पहले से काफी तेज प्रतिक्रिया है. उनका कहना है, "सब एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं, लेकिन हम एक तरह से खेल के नए नियम ही लिख रहे हैं".