इन लोगों को सोच-समझकर लगवानी चाहिए कोरोना की वैक्सीन
प्रेग्नेंट या ब्रेस्ट फीड कराने वाली महिलाओं को कोरोना वैक्सीन लगवाने से पहले अपने डॉक्टर से विचार-विमर्श करना चाहिए. प्रेग्नेंट महिलाओं में कोविड-19 वैक्सीन की सुरक्षा पर कोई डेटा नहीं है क्योंकि उन्हें क्लिनिकल ट्रायल से बाहर रखा गया था.
पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के मामलों में अब कमी आने लगी है. वहीं दूसरी तरफ कई देशों में लोगों को वैक्सीन देने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. फाइजर-बायोएनटेक, मॉडर्ना, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका जैसी वैक्सीन अपने ट्रायल में सफल साबित हो चुकी हैं और इनके बहुत कम साइड इफेक्ट्स पाए गए हैं. वहीं भारत में भी कोवीशील्ड (Covishield)और कोवैक्सीन (Covaxin) के ट्रायल में अच्छे नतीजे आने के बाद इनके इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी जा चुकी है.
वैसे तो कोराना वायरस की सारी वैक्सीन बड़ी आबादी के लिए पूरी तरह सुरक्षित है लेकिन फिर भी कुछ लोगों को बहुत सोच समझ कर वैक्सीन लेने की सलाह दी जा रही है. आइए जानते हैं किन समूह के लोगों को कोरोना वायरस की वैक्सीन लेने से पहले डॉक्टर से विचार-विमर्श करने की जरूरत है.
एलर्जी की समस्या वाले लोग
अमेरिका के सीडीसी (Centers for Disease Control and Prevention) के मुताबिक, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन से कई लोगों में गंभीर एलर्जी पाई गई है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि वैक्सीन लगवाने के बाद छोटी-मोटी दिक्कत आम बात है लेकिन एनाफिलेक्सिस (Anaphylaxis) जैसी एलर्जी घातक हो सकती है. सीडीसी की सलाह है कि वैक्सीन में इस्तेमाल किसी भी इनग्रेडिएंट से अगर किसी को एलर्जी है तो उसे ये वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए.
अगर किसी को कोई भी इंजेक्शन लगाने के बाद गंभीर एलर्जी की समस्या होती है तो उसे भी कोरोना की वैक्सीन लेने से पहले अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए. अगर किसी व्यक्ति को कोविड-19 वैक्सीन के पहले शॉट पर गंभीर एलर्जी की होती है, तो सीडीसी उन्हें वैक्सीन की दूसरी शॉट नहीं लेने की सलाह देता है. जिन लोगों को एलर्जी की पहले से कोई शिकायत नहीं है उन्हें वैक्सीन देने के 15 मिनट बाद तक जबकि एलर्जी की शिकायत वालों को 30 मिनट तक निगरानी में रखा जाएगा.
प्रेग्नेंट और ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाएं
प्रेग्नेंट या ब्रेस्ट फीड कराने वाली महिलाओं को कोरोना वैक्सीन लगवाने से पहले अपने डॉक्टर से विचार-विमर्श करना चाहिए. प्रेग्नेंट महिलाओं में कोविड-19 वैक्सीन की सुरक्षा पर कोई डेटा नहीं है क्योंकि उन्हें क्लिनिकल ट्रायल से बाहर रखा गया था. ऐसे में इन लोगों में वैक्सीन एक चिंता की बात हो सकती है.
हालांकि, अमेरिका के कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि प्रेग्नेंट महिलाओं में कोरोना की वजह से ज्यादा बीमार होने का ख़तरा होता है. भले ही प्रेग्नेंट महिलाओं पर वैक्सीन का डेटा उपलब्ध नहीं है लेकिन ये कोरोना से सुरक्षा देती है और कोरोना की वजह से प्रेग्नेंसी पर पड़ने वाले गंभीर दुष्प्रभावों से बचा सकती है. इसलिए डॉक्टर से परामर्श के बाद प्रेग्नेंट महिलाएं भी वैक्सीन लगवा सकती हैं. वहीं सीडीसी का कहना है कि ब्रेस्ट फीड करने वाले बच्चों में वैक्सीन का फिलहाल कोई प्रभाव नहीं पाया गया है.
कोरोना पॉजिटिव लोग
क्लिनिकल ट्रायल में सारी वैक्सीन उन लोगों पर सुरक्षित पाई गई हैं जो पहले कोविड-19 से संक्रमित रह चुके हैं. सीडीसी का कहना है कि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति को वैक्सीन तब तक नहीं देनी चाहिए जब तक कि वो आइसोलेशन और इस महामारी से पूरी तरह बाहर ना आ जाए. वहीं एंटीबॉडी थेरेपी लेने वालों को 3 महीने के बाद वैक्सीन लगवानी चाहिए.
मेडिकल कंडीशन वाले लोग
क्लिनिकल ट्रायल के मुताबिक, वैक्सीन मेडिकल कंडीशन वाले लोगों पर ही वैसा ही असर करती है जितना कि स्वस्थ लोगों पर. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोगों के प्रमुख डॉक्टर डीन ब्लमबर्ग ने हेल्थलाइन को बताया, "हमारे पास इम्यूनो कॉम्प्रोमाइज या एचआईवी मरीजों का डेटा नहीं है. लेकिन हम जानते हैं कि इन लोगों में कोरोना का ख़तरा गंभीर हो सकता है. इसलिए ये लोग भी वैक्सीन लगवा सकते हैं. हालांकि ये उनका व्यक्तिगत निर्णय है और इसे लेने से पहले उन्हें अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए."
छोटे बच्चे
मॉडर्ना वैक्सीन 18 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए है. वहीं फाइजर वैक्सीन 16 उम्र और उससे ज्यादा के लोगों के लिए अधिकृत की गई है. वहीं, भारत बायोटेक की कोवैक्सीन 12 साल या उससे ऊपर के आयु वर्ग को दी जा सकती है. जबकि कोविशील्ड का इस्तेमाल 18 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों में किया जा सकता है. इस समय, बच्चों में कोविड-19 वैक्सीन की स्टडी नहीं की गई है इसलिए उन्हें वैक्सीन देने के लिए ऑथराइज्ड नहीं किया गया है.
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