सौरव गांगुली में जबरदस्त लीडरशिप स्किल रही. उनका ये स्किल चाहे फंसे हुए मैच को निकालना हो या फिर किसी खिलाड़ी के टैलेंट को पहचानकर उसका बेस्ट निकलवाना हो इसमें वो माहिर थे.
बात 13 जुलाई 2002 की है जगह इंग्लैंड का ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान, खचाखच भरा स्टेडियम, नेटवेस्ट ट्रॉफ़ी का फाइनल मुक़ाबला और आमने-सामने थे भारत-इंग्लैंड. इंग्लैंड ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी करने का फ़ैसला किया. इंग्लैंड के सलामी बल्लेबाज़ मार्कस ट्रेसकोथिक (109) और कप्तान नासिर हुसैन (115) की शतकीय पारी के दम पर इंग्लैंड ने 325 रन का विशाल स्कोर खड़ा किया. विशाल स्कोर इसलिए क्योंकि उन दिनों 300+ स्कोर बड़ी बात मानी जाती थी.
अब 326 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम के लिए डेरेन गफ, एलेक्स टूडर और एंड्रयू फ्लिंटॉफ जैसे गेंदबाज़ों के सामने ये लक्ष्य असंभव लग रहा था. भारतीय सलामी बल्लेबाज़ विरेंद्र सहवाग और कप्तान सौरव गांगुली ने पारी की शुरुआत की. दोनों बल्लेबाज़ों ने पहले विकेट के लिए 106 रनों की साझेदारी की जिसके बाद लगने लगा कि भारत इस लक्ष्य तक पहुंच सकता है. लेकिन 14वें ओवर की तीसरी गेंद पर 106 रन के स्कोर पर भारत ने सौरव गांगुली (60) के तौर पर अपना पहला विकेट खो दिया...इसके बाद भारत को दूसरा झटका भी जल्द ही लगा वीरेंद्र सहवाग 45 रन बनाकर पवेलियन लौट गए.
इसके बाद इंग्लैंड के गेंदबाज़ों ने दिनेश मोंगिया (9), सचिन तेंदुलकर (14) और राहुल द्रविड़ (5) को सस्ते में आउट कर पवेलियन का रास्ता दिखाया. मैच में फिर एक मोड़ आया जब भारत ने 146 रन पर ही 5 विकेट गवां दिए और यहां से भारत के जीत की राह मुश्किल लगने लगी.
लेकिन इसके बाद क्रीज़ पर आए युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ ने जो किया क्रिकेट में इतिहास बन गया. दोनों ने 121 रनों की शतकीय साझेदारी की और भारत की उम्मीदें एक बार फिर जागी. लेकिन 267 रन के स्कोर पर कॉलिंगवुड ने युवराज (69) को आउट कर चलता किया.
(युवराज सिंह)
अब एक फिर भारतीय खेमे में सन्नाटा पसर गया. लेकिन मोहम्मद कैफ अभी भी क्रीज़ पर मौजूद थे, वो लॉर्ड्स में किसी और ही इरादे से उतरे थे. कैफ का साथ देने आए हरभजन सिंह और दोनों के बीच अर्धशतकीय साझेदारी हुई.
लेकिन 48वें ओवर में फिंल्टॉफ ने हरभजन (15) और कुंबले को आउट कर मैच को फिर से इंग्लैंड की ओर मोड़ दिया. अब भारत को 13 गेंदों पर 12 रन की दरकार थी. अब मोर्चा मोहम्मद कैफ के कंधों पर ही था, उनका साथ देने ज़हीर ख़ान आए. दोनों ही मैदान से तभी लौटे जब भारत ने लक्ष्य हासिल कर मैच जीत लिया. मोहम्मद कैफ इस मैच के मैन ऑफ द मैच रहे. उन्होंने 75 गेंदों में 6 चौके और 2 छक्कों की मदद से 87 रन की नाबाद पारी खेल कर इंग्लैंड मुंह से जीत छीन ली.
(मोहम्मद कैफ़ और ज़हीर ख़ान)
लेकिन इस मैच का हीरो तो कोई और ही था... वो शख़्स था भारतीय टीम का कप्तान सौरव गागुंली. जो लॉर्ड्स की बालकनी में अपनी जर्सी खोलकर लहराने लगा. सौरव गांगुली का वो जर्सी खोलकर लहराना सिर्फ भारत की जीत का जश्न ही नहीं बल्कि ये वानखेड़े का बदला था.
दरअसल 3 फरवरी 2002 को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत और इंग्लैंड के बीच एक मुक़ाबला हुआ था. इस मैच में इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए सभी विकेट खोकर 255 रन बनाए थे. लेकिन लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम 250 पर ही ऑलआउट हो गई थी और इंग्लैंड ने मैच जीत लिया. इस जीत के बाद इंग्लैंड के एंड्रयू फ्लिंटॉफ जर्सी उतारकर वानखेड़े मैदान में लहराने लगे. उस वक़्त फिंल्टॉफ ने इंग्लैंड की जीत का जश्न कुछ ऐसे मनाया था.
(Photo: Zee News)
तो मैं क्रिकेट जगत में बंगाल टाइगर और दादा के नाम से जाने वाले सौरव गांगुली को ऐसे जानती हूं...कि एक कप्तान जो लॉर्ड्स के मैदान में जर्सी उतारकर लहराने लगा, जिसने अपनी टीम, अपने देश और खिलाड़ियों का बदला कुछ इस अंदाज में लिया. क्या आज के वक़्त में किसी टीम का कप्तान ऐसा करेगा? मुझे लगता है बिल्कुल नहीं इसीलिए दादा को वो पल ऐतिहासिक था जिसे कोई भी क्रिकेटप्रेमी शायद ही कभी भूल सकता है. वो पल आज भी मेरे मन से चिपका है. यही वो पल था जब मुझे सौरव गांगुली से प्यार हो गया.
लॉर्ड्स का मैदान और दादा
मुझे लगता है सौरव गांगुली के लिए लॉर्ड्स का मैदान हमेशा से ख़ास रहा है. क्योंकि करियर की शुरुआत से ही लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान उनके साथ जुड़ा है. आइए बताते हैं कैसे....
दरअसल सौरव गांगुली ने 1992 में वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ वनडे मैच से अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की. लेकिन अपने पहले मैच वो महज 3 रन बना पाए थे. लेकिन इस मैच के बाद उनको अगले चार साल तक टीम इंडिया से बाहर रखा गया. लेकिन दिलचस्प ये है कि उन्हें टीम से बाहर उनके प्रदर्शन की वजह से नहीं बल्कि उनके arrogant व्यवहार की वजह से बाहर किया गया था. कहा जाता है कि सौरव गांगुली ने मैच के दौरान मैदान पर साथी खिलाड़ियों के लिए ड्रिंक ले जाने से मना कर दिया था...गांगुली का कहना था कि ये उनका काम नहीं है. जिसकी वजह से उन्हें चार साल टीम से बाहर रहना पड़ा.
लेकिन इस खिलाड़ी ने क्रिकेट नहीं छोड़ा क्योंकि ये पैदा ही क्रिकेट के लिए हुए थे. गांगुली ने घरेलू क्रिकेट खेलना शुरू किया...1993-94 रणजी सत्र और 1995-96 में दलीफ ट्रॉफी खेला और इन सीरीज में गांगुली के बल्ले से ताबड़तोड़ रन निकले. इसी सब के बीच 1996 में इंग्लैंड के दौरे के लिए सौरव गांगुली की टीम इंडिया में वापसी हुई. उन्होंने सिर्फ एक ही वनडे मैच खेला जिसमें उन्होंने 46 रन की पारी खेली. लेकिन इसके बाद उन्हें टेस्ट सीरीज के पहले टेस्ट में फिर बाहर कर दिया गया.
लेकिन लॉर्ड्स का मैदान सौरव गांगुली की जिंदगी में एक उम्मीद लेकर आया और दादा की असली दादागीरी यहां से शुरू हुई. उस वक़्त टीम के साथी खिलाड़ी नवजोत सिंह सिद्धू के बीमार होने पर उनकी टेस्ट टीम में वापसी हुई और चार साल के लंबे इंतजार के बाद 20 जून 1996 को बंगाल टाइगर सौरव गांगुली ने टेस्ट डेब्यू किया. सिर्फ डेब्यू ही नहीं दादा ने अपना आगाज धमाकेदार तरीके से किया.
इंग्लैंड पिचों ख़ासकर लॉर्ड्स की पिच पर जहां आज भी दिग्गज खिलाड़ी चकमा खा जाते हैं. उस वक़्त में तीसरे नंबर पर खेलने आए गांगुली ने अपने पहले ही टेस्ट मैच में इंग्लैंड के गेंदबाज़ों को पानी पिला दिया. गांगुली ने लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर 301 गेंदों में 20 चौकों की मदद से 131 रन की शतकीय पारी खेली.
इसके बाद अगला मैच जो नॉटिंगम में खेला गया था, उस मैच में भी गांगुली ने एक बार फिर शतक जड़ दिया. इस मैच में गांगुली ने 136 रन की बेहतरीन पारी खेली. बस फिर क्या था धीरे-धीरे इस बाएं हाथ के बल्लेबाज़ ने टीम में अपनी जगह पक्की कर ली और शुरू की अपनी दादागीरी.
टर्निंग प्वाइंट
यह वह दौर था जब मोहम्मद अज़हरुद्दीन की जगह सचिन तेंदुलकर कप्तान बने थे. लेकिन टीम इंडिया लगातार ओपनिंग जोड़ी की समस्या से जूझ रही थी. सचिन के साथ कभी अजय जडेजा ओपनिंग के लिए उतरते तो कभी नयन मोंगिया लेकिन कोई भी बड़ी साझेदारी नहीं कर पा रहे थे. वहीं अपने टेस्ट डेब्यू में शतक जड़कर सौरव गांगुली भारतीय टीम में जगह तो पक्की कर चुके थे लेकिन खुद और साबित करने के लिए मौके की तलाश में थे. गांगुली की तलाश ख़त्म हुई 23 अक्टूबर 1996 के टाइटन कप में जब वो सचिन के साथ दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ ओपनिंग के लिए उतरे और वो उनके करियर के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ.
इस मैच में उन्होंने 54 रन की अर्धशतकीय पारी खेली. इसके बाद जो हुआ वो तो सब जानते हैं इस जोड़ी ने वनडे क्रिकेट में जबरदस्त प्रदर्शन किया. यह जोड़ी वनडे क्रिकेट की 136 पारियों में 6609 रनों के साथ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ ओपनिंग जोड़ी है.
मुश्किल दौर में संभाली टीम की कप्तानी
इसके बाद शुरू हुआ विश्व क्रिकेट में सौरव गांगुली की कप्तानी का नया दौर...सौरव गांगुली को 2000 में उस वक़्त भारतीय टीम की कप्तानी की कमान मिली जब भारतीय टीम मैच फ्किसिंग से दो-चार हो रही थी. लेकिन इस खिलाड़ी ने आगे बढ़कर कप्तानी संभाली और फिर दुनिया को एक महान लीडरशिप से रूबरू करवाया.
इसके बाद आया 2003 वर्ल्ड कप जिसे दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे और किनिया ने मिलकर होस्ट किया. सौरव गांगुली की कप्तानी में भारतीय टीम 2003 वर्ल्ड कप में फाइनल तक का सफर तय किया. जिसने भारतीय क्रिकेट को बदलकर रख दिया और साबित किया ये टीम विदेशों में भी मैच जीतने का दावा रखती है.
युवा खिलाड़ियों को तराशा
सौरव गांगुली ने अपने दौर में युवा खिलाड़ियों को तराश कर एक बेहतरीन टीम तैयार की. उन्होंने हरभजन सिंह, ज़हीर ख़ान, आशीष नेहरा, वीरेंद्र सहवाग युवराज सिंह, मोहम्मद कैफ जैसे युवा खिलाड़ियों को तैयार कर के एक परफेक्ट टीम बनाई. और 2002 में इसी युवा टीम के साथ उन्होंने इंग्लैंड में नेटवेस्ट सीरीज जीती.
सौरव गांगुली में जबरदस्त लीडरशिप स्किल रही. उनका ये स्किल चाहे फंसे हुए मैच को निकालना हो या फिर किसी खिलाड़ी के टैलेंट को पहचानकर उसका बेस्ट निकलवाना हो इसमें वो माहिर थे. कई बार उन्होंने टीम के लिए ऐसे फ़ैसले लिए जो सबको चौंका देता था. जैसे कि उन्होंने खुद की जगह छोड़कर वीरेंद्र सहवाग से ओपनिंग कराने का फ़ैसला किया. शुरुआती कुछ मैचों में फेल होने वाले एमएस धोनी को अपनी जगह तीसरे नंबर पर खेलने का मौका दिया. सौरव गांगुली के ऐसे बहुत से किस्से हैं जो उनको सिर्फ और सिर्फ एक जूनूनी क्रिकेटर साबित करता है.
ग्रेग चैपल विवाद
यह वह दौर था जब सौरव गांगुली के क्रिकेट और सफलता चरम पर थी. देश-विदेश हर जगह उनकी कप्तानी और भारतीय टीम की चर्चा थी. लेकिन गांगुली के इस स्वर्णिम दौर पर ग्रेग चैपल नाम का ग्रहण लगा. 2005 में सौरव गांगुली की सलाह पर भारतीय टीम का कप्तान ऑस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल को बनाया गया. लेकिन इसके बाद ग्रेग चैपल के साथ गांगुली के तमाम विवाद हुए और ये इस हद तक बढ़ गया कि गांगुली को कप्तानी छोड़नी पड़ी. इतना ही नहीं आख़िर में उन्हें टीम से ही बाहर होना पड़ा. 2008 में सौरव गांगुली ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया. उन्होंने अपना आख़िरी मैच 2008 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ नागपुर में खेला.
सुरक्षित हाथों में भारतीय क्रिकेट
लेकिन अब सौरव गांगुली का एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है...या कहें कि बीसीसीआई का एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है. क्योंकि गांगुली बीसीसीआई अध्यक्ष के तौर पर अपनी एक नई पारी की शुरुआत कर रहे हैं. भारतीय क्रिकेट सुरक्षित हाथों में जा रहा है. सौरव दादा आप मेरा पहला प्यार थे और रहेंगे...मुझे मालूम है आपने ना तो कभी देश का भरोसा तोड़ा है और ना ही तोड़ेंगे.
Related Stories
शोएब अख़्तर का खुलासा, मेरी गेंदों से नहीं डरते थे गांगुली
सौरव गांगुली बने बीसीसीआई के कप्तान, संभाली कमान
कप्तानी वाला ब्लेजर पहनकर पहुंचे सौरव गांगुली, बताया ऐसे चलेगी बीसीसीआई
सौरव गांगुली ने कहा 2-3 महीने में जम्मू-कश्मीर में हो जाएगा सबकुछ ठीक