CSDS के सर्वे में भी आया सामने, EVM पर मतदाताओं का भरोसा घटा
सर्वे में ये बात सामने आई है कि 2004 में जहां क़रीब सौ प्रतिशत लोग ईवीएम पर भरोसा करते थे वहीं अब ऐसे दस प्रतिशत मतदाता हैं जिन्हें ईवीएम पर भरोसा नहीं है.
1999 में आयोजित हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ईवीएम का प्रयोग सबसे पहले हुआ था. ये प्रयोग आंशिक ज़रूर था लेकिन इससे चुनाव आयोग को समझ में आया कि देश में चुनाव बैलेट पेपर की जगह ईवीएम से कराए जा सकते हैं.
इसी के फलस्वरूप 2004 में होने वाले चुनावों में आयोग ने पूरे देश में ईवीएम का प्रयोग शुरू कर दिया. तब से हर चुनाव इसी मशीन की मदद से कराया जा रहा है.
जब पूरे देश में ईवीएम का प्रयोग शुरू हुआ तभी से इसको लेकर सवाल भी उठने शुरू हो गए. तर्क दिया गया कि ग्रामीण मतदाता कनफ़्यूज होगा. वो वोट नहीं कर पाएगा. उसे दिक्कत होगी.
लेकिन 2009 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर पहली बार सवाल उठाया. इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी पार्टी के प्रवक्ता जेवीएल नरसिम्हा राव की किताब ‘Democracy At Risk! Can We Trust Our Electronic Voting Machines?’ की भूमिका भी लिखी.
इसी दौरान देश में चुनाव सर्वेक्षण करवाने वाले एजेंसी सीएसडीएस ने सर्वेक्षण के दौरान लोगों से ईवीएम को लेकर सवाल पूछना शुरू किया. शुरू में सर्वे में ज़्यादातर लोगों का ये कहना था कि उन्हें ईवीएम पर पूरा भरोसा है और इसी वजह से सर्वे में पूछे जाने वाले सवालों में से इस सवाल को हटा दिया गया.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज यानी CSDS के निदेशक संजय सिंह कहते हैं, ‘जब किसी सवाल का जवाब बहुत से लोग एक जैसा जवाब देने लगते हैं और ये बार-बार होने लगता है तो हम उस सवाल को लिस्ट से हटा देते हैं.’
आपको बता दें कि CSDS भारत में चुनाव से जुड़े सर्वे कराता है. संस्थान की खास बात यह है कि ये चुनाव से पहले और चुनाव के तुरंत बाद भी विस्तृत सर्वे जारी करता है.
लेकिन अब हाल के सालों में चुनाव दर चुनाव ईवीएम को लेकर सवाल उठने लगे हैं. मामला यहां तक बढ़ा कि चुनाव आयोग ने देश के सभी राष्ट्रीय पार्टियों को ईवीएम को हैक करने करने का न्योता दिया.
जब ईवीएम के आसपास इतनी हलचलें चल रही थी तो CSDS ने अपने सर्वे में एक बार फिर ‘ईवीएम पर विश्वास’ से जुड़ा सवाल शामिल किया. चुनाव सर्वे के दौरान आम मतदाताओं से ईवीएम मशीन के बारे में पूछा जाने लगा. इस बार CSDS को जो जवाब मिले वो चौंकाने वाला था.
एशियाविल हिंदी के ख़ास कार्यक्रम अड्डा लाइव में बात करते हुए CSDS के निदेशक संजय कुमार ने कहा, ‘ हमें जो जवाब मिले वो हैरान करने वाले थे. जो लोग शुरू में कह रहे थे कि ईवीएम पर पूरा भरोसा है उनकी संख्या में कमी आई. होना ये चाहिए था कि वक़्त बीतने के साथ लोगों का भरोसा बढ़ता लेकिन हुआ उल्टा. लोगों का भरोसा ईवीएम और चुनाव आयोग दोनों पर कम हुआ है. ये गिरावट दस प्रतिशत के आसपास है.’
ग़ौरतलब है कि 2019 लोकसभा चुनाव पूरे होने के बाद एक बार फिर ईवीएम सवाल उठ रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान चुनाव नतीजों के बाद भी ईवीएम पर सवाल उठाया था. लोकसभा चुनाव 2019 के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष ने राहुल गांधी, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और आम आदमी पार्टी ने भी ईवीएम पर सवाल उठाया है.
जब ईवीएम पर सवाल उठने बंद नहीं हुए तो उसके साथ वीवीपैट को जोड़ा गया. वीवीपैट वो मशीन है जिसमें से वोट देने के बाद पर्ची निकलती है. ये पर्ची मतदाताओं को नहीं मिलती है. इसे बाद में ईवीएम में पड़े वोट से मिलान किया जाता है. पहली बार लोक सभा चुनाव में सभी बूथों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया गया है.
इस मसले पर विपक्षी दलों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी. विपक्षी दल चाहते थे कि कम से 50 फीसदी वोटों की वीवीपैट पर्ची से मिलान किया जाए. लेकिन कोर्ट ने विपक्षी दलों की इस दलील को आंशिक रूप से माना.
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अब एक विधान सभा के पांच बूथों की वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाए. पहले ये व्यवस्था एक बूथ तक सीमित थी. विपक्षी दलों ने इस फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये याचिका खारिज कर दी थी. इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों से ईवीएम को लेकर ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि जिसमें गड़बड़ी के दावे किए जा रहे हैं.
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