40 हज़ार साल पहले आदिमानव की ये प्रजाति संघर्ष से नहीं, बल्कि प्रजनन की कमी से विलुप्त हुई
होमो सेपियंस से पहले आदि मानवों की कई प्रजातियां पृथ्वी पर मौजूद थीं. सेपियंस के वक़्त भी दूसरी प्रजाति के आदि मानव अलग-अलग हिस्सों में पाए जाते थे.
आदिमानवों के बारे में इतिहासकारों के बीच कई तरह की मान्यताएं हैं. होमो सेपियंस के पृथ्वी पर आने के कुछ वर्षों बाद नियंडरथलों की पूरी प्रजाति धीरे-धीरे ख़त्म हो गई. आम तौर पर ये माना जाता है कि आधुनिक मानवों ने संघर्ष में उन्हें मार गिराया या फिर दुर्गम इलाक़ों में खदेड़ दिया, जहां उनके लिए जी पाना मुनासिब नहीं हुआ. लेकिन, एक ताज़ा अध्ययन में सनसनीख़ेज़ दावा किया गया है. अध्ययन के मुताबिक़ छोटी आबादी वाला ये समूह सिर्फ़ संघर्ष के चलते ग़ायब नहीं हुआ, बल्कि प्रजनन की कमी इसके पीछे बड़ी वजह थी.
आपको बता दें कि 40 हज़ार साल पहले नियंडरथल धरती से विलुप्त हो गए थे. यही वो वक़्त था जब आधुनिक मानव यानी होमो सेपियंस पश्चिमी एशिया और यूरोप में पहुंचे थे. आइंदोवन यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी के ताज़ा शोध में कहा गया है कि नियंडरथलों के ग़ायब होने की सबसे बड़ी वजह प्रजनन कर पाने की अक्षमता थी.
अब तक ये माना जाता था कि आधुनिक मानवों की ताक़त और पर्यावरण के दबाव के चलते ऐसा हुआ. PLOS जर्नल में छपे ताज़ा अध्ययन ने इन वजहों को चुनौती दी है. शोध टीम में शामिल क्रिस्ट वेसन के मुताबिक़, “हमारा अध्ययन बताता है कि विलुप्त होने के कारणों की पड़ताल करते वक़्त डेमोग्राफिक कारकों को भी प्रमुख वेरिएबल के तौर पर शामिल करना पड़ेगा.”
शोधकर्ताओं ने शिकारी और भोजन जमा करने वाली मौजूदा आबादी के आंकड़े जमा किए और उन आंकड़ों को नियंडरथलों की आबादी पर लागू किया. इस तरह अलग-अलग आकार का जनसंख्या मॉडल तैयार किया गया. इसके बाद शोधकर्ताओं ने प्रजनन ना कर पाने की क्षमता को वेरिएबल के तौर पर इस्तेमाल किया. आबादी को कम किया और एली इफैक्ट का इस्तेमाल करते हुए लिंगानुपात के आंकड़े जमा किए.
शोधकर्ता ये जानने की कोशिश कर रहे थे कि क्या 10 हज़ार साल के अंतराल में किसी और इनपुट के बग़ैर क्या उनका विलुप्त होना मुमकिन है? खोज में पता चला कि सिर्फ़ प्रजनन से विलुप्त होना मुमकिन नहीं था. लेकिन, एली इफैक्ट से पता चला कि कई जगहों पर 25 फ़ीसदी से भी कम नियंडरथल मादाओं ने एक साल में बच्चे को जन्म दिया. इस तरह कम से कम 1000 की आबादी पूरी तरह ख़त्म हो गई.
शोधकर्ताओं के मुताबिक़ जनांकिकीय चुनौतियों के साथ-साथ एली इफैक्ट के कारण 10 हज़ार साल के भीतर ये पूरी प्रजाति ग़ायब हो गई. हालांकि वैज्ञानिकों ने माना उनका पॉपुलेशन मॉडल की एक सीमा है जोकि आधुनिक शिकारी और संग्राहक समुदायों पर आधारित है.
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