Birth Anniversary Special: यादों के झरोखों में इरफ़ान
इस लेख के सभी अंश असीम छाबड़ा द्वारा लिखित इरफ़ान की जीवनी इरफ़ान ख़ान: द मैन, द ड्रीमर, द स्टार' से लिए गए हैं.
मशहूर एक्टर इरफ़ान ख़ान भले ही दुनिया को अलविदा कह चुके हो, लेकिन दुनिभर में मौजूद फैंस के दिलों में इरफ़ान आज भी ज़िंदा हैं. आज दिंवगत एक्टर इरफ़ान खान की बर्थ एनिवर्सरी है.
इरफ़ान का जन्म 7 जनवरी 1967 को राजस्थान के एक मिडिल क्लास परिवार में हुआ था. इरफ़ान के पिता अपनी सब ज़मीन अपने भाइयों को देकर जयपुर में आकर बस गए थे. यहां उन्होंने टायरों का कारोबार शुरू कर दिया.
बॉलीवुड के मशहूर एक्टर इरफ़ान ख़ान भले ही गुजर गए हों लेकिन अपने अभिनय से जो छाप उन्होंने चाहने वालों के दिलों पर छोड़ी है वो अमिट है. इरफ़ान ख़ुद में अभिनय का एक ऐसा इदारा थे, जिससे सैकड़ों कलाकारों ने बहुत कुछ सीखा हैं.

सईदा बेगम और यासीन ख़ान के सबसे बड़े बेटे साहबज़ादे इरफ़ान ख़ान को बचपन से पतंगबाज़ी का बड़ा शौक था. वहीं उनके पिता यासीन ख़ान एक शिकारी थे. इरफ़ान अक्सर अपने पिता के साथ शिकार खेलने जाया करते थे. इस दौरान इरफ़ान को बंदूक़ चलाना तो पसंद था, लेकिन उन्हें जानवरों के मरने पर दुख होता था. इरफ़ान को बचपन में गोश्त खाना भी बिलकुल पसंद नहीं था. उनकी ये आदत देखकर उनके पिता कहते थे कि इरफ़ान पठानों के घर ने पैदा हुआ एक ब्राह्मण है.
इरफ़ान एक बार पतंगबाज़ी के दौरान छत से गिर गए थे और महज़ 7 साल की उम्र में इरफ़ान के बाएं हाथ की कोहनी और कलाई टूट गई थी. इस हादसे के बाद इरफ़ान काफी दिन तक सदमे में थे.
वैसे तो इरफ़ान अपनी मां की बहुत इज़्ज़त करते थे, लेकिन मां- बेटे में ज़्यादा पटती नहीं थी. हालांकि इरफ़ान हमेशा अपनी मां को खुश रखने की कोशिश करते थे. बचपन में इरफ़ान अपनी नानी के ज़्यादा क़रीब थे. वो अक्सर अपनी नानी के घर टोंक जाकर रहते थे.

इरफ़ान ने अपनी शुरूआती पढ़ाई जयपुर के सेंट पॉल स्कूल से की है. इरफ़ान की मां चाहती थीं कि वो एक लेक्चरर बनें, वहीं उनके पिता चाहते थे कि बेटा कारोबार में उनकी मदद करे.
बचपन से ही इरफ़ान का रुझान फ़िल्मों की तरफ था, वो शुरू से एक्टर बनना चाहते थे. लेकिन सांवला रंग होने की वजह से वो हमेशा कश्मकश में पड़ जाते थे. बड़े परदे पर मिथुन चक्रवर्ती को देखने के बाद इरफ़ान ने एक्टर बनने की ठान ली. उन्होंने सोचा जब मिथुन हीरो (उनका रंग भी सांवला है) बन सकता है तो मैं क्यों नहीं.
इरफ़ान की असल ज़िंदगी दिल्ली आने के बाद शुरू हुई, साल 1984 में इरफ़ान ने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में एडमिशन ले लिया. ये इरफ़ान के सपनों को दुनिया थी. इरफ़ान को दिल्ली की ज़िंदगी को अपनाने में थोड़ा वक़्त लगा, लगता भी क्यों न कहां जयपुर का ये शर्मीला लड़का और कहां मनमौजियों की दिल्ली.
इरफ़ान शुरू से ही नसीरुद्दीन शाह से काफ़ी प्रभावित थे. धीरे-धीरे नेशनल स्कूल में इरफ़ान का वक़्त गुज़रता गया और उन्होंने मुंबई का रुख कर लिया. शुरू में इरफ़ान को टीवी में काम मिलना शुरू हुआ और इस तरह वो मुंबई में बस गए.

80 के दशक में शायद इस बात का अंदाज़ा कभी इरफ़ान को भी नहीं हुआ होगा कि बॉलीवुड में अपना एक मुकाम हासिल करने के बाद वो हॉलीवुड में भी अपनी एक अलग पहचान बना लेंगे.
2015 तक इरफ़ान को उनके सीरियस अभिनय के लिए जाना जाता था. साल 2015 में इरफ़ान ने रोमांटिक कॉमेडी फ़िल्मों में काम किया और वहां भी अपने अभिनय का जलवा दिखाया. हालांकि इरफ़ान का रोमांस शाहरुख़ ख़ान के रोमांस से बिलकुल अलग है. 2015 में आई फ़िल्म 'पीकू' में इरफ़ान ने राना नाम के शख़्स का किरदार जिस ख़ूबसूरती से निभाया है वो क़ाबिले तारीफ़ है. साल 2017 में इरफ़ान ने रोमांटिक कॉमेडी फ़िल्म 'क़रीब क़रीब सिंगल' में योगी के किरदार को भी एक अलग अंदाज़ में निभाया था.
बॉलीवुड में 'हासिल', 'मक़बूल', 'लंचबॉक्स' 'पान सिंह तोमर' और 'हैदर' जैसी यादगार फ़िल्में देने के बाद इरफ़ान ने जब हॉलीवुड का रुख़ किया तो वहां भी ऊंचाइयों को छू लिया.
जब 1993 में 'जुरासिक पार्क' आई थी, उस वक़्त इरफ़ान के पास इस फ़िल्म को देखने तक के पैसे नहीं थे. किसे पता था कि साल 2015 में इरफ़ान इस फ़िल्म में अभिनय करेंगे.

इरफ़ान ने दर्जनों हॉलीवुड फ़िल्मों में काम किया है. 'द नेमसेक', 'लाइफ ऑफ़ पाई', 'ए माइटी हार्ट', 'इन्फर्नो', 'स्लमडॉग मिलियनेयर', अमेजिंग स्पाइडर मैन' और 'जुरासिक वर्ल्ड' में इरफ़ान के शानदार अभिनय ने सबका दिल जीत लिया था.
इरफ़ान ने अपने आखिरी संदेश में कहा था कि मैं अपके साथ हूं भी और नहीं भी. इरफ़ान हमारे साथ न होते हुए भी हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे. उनकी ज़िंदादिली और ख़ुशमिज़ाजी को उनके फैंस हमेशा याद रखेंगे.