बीजेपी की अपनी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी अकेले या एनडीए के साथ भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं, कांग्रेस ने भी संभावित सहयोगियों की शुरू की तलाश
लोक सभा चुनाव के लिए मतदान के दो और दौर अभी बचे हैं. लेकिन दोनों बड़े दल बीजेपी और कांग्रेस को ये अंदाजा हो गया है कि वो बहुमत से दूर रह सकते हैं. इसे भांपते हुए दोनों पार्टियां ने सहयोगियों की खोज और गठबंधन के लिए कोशिशें शुरू कर दी है.
चुनाव से पहले गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस फ्रंट की चर्चा भी जोरों पर थी. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने इसकी पहल की थी. राव ने फिर ये पहल शुरू कर दी है. आने वाले दिनों में वो कई मुख्यमंत्रियों और विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात करने वाले हैं.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव
राव केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और डीएमके नेता एमके स्टालिन से मिलेंगे. उनके और कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बीच टेलीफोन पर चर्चा भी हुई है.
केसीआर की बेटी और निजामाबाद से सांसद के. कविता ने पिछले दिनों पीटीआई से कहा था, “गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस पार्टियां 120 से अधिक लोक सभा सीटें जीतेंगी. ऐसे में सरकार बनाने की चाबी इन दलों के पास होगी.”
उन्होंने कहा था कि टीआरएस एनडीए और यूपीए से अलग दलों से लगातार संपर्क में है और इन दलों का मकसद फेडरल फ्रंट बनाने का है. कविता के मुताबिक लोक सभा चुनाव के बाद ही फेडरल फ्रंट आकार लेगा.
इसके अलावा देश के पूर्वी तट में कोहराम मचाने वाले तूफ़ान फानी के बाद अब ओडिशा में अब राहत कार्यों के साथ राजनीतिक गठजोड़ की चर्चाएं भी तेज़ हो चली है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां चुनाव के बाद सत्ताधारी बीजेडी का समर्थन हासिल करने की कोशिशों में जुट गई है. इसके लिए बीजेडी प्रमुख और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को संदेश भिजवाए जा रहे हैं.
तूफान राहत कार्यों की समीक्षा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक
यह लेख लिखे जाने के वक़्त बीजेपी के साथ पटनायक की पार्टी की चर्चाएं कांग्रेस के मुकाबले काफी आगे बताई जा रही है. यह बात भी सामने आई है कि बीजेडी और बीजेपी के बीच की चर्चा में बीजेडी के एक सांसद खुद शामिल हैं. कांग्रेस के इस वार्ता में पिछड़ने के कुछ "मूल कारण” भी सामने आए हैं.
बीजेपी की तरफ से इस तरह की वार्ताओं में शामिल और ओडिशा के एक समाचार पत्र के पूर्व संपादक ने एशियाविल को बताया, "मूल कारण यह है कि बीजेडी उनके (कांग्रेस) बजाय बीजेपी के साथ सहयोग करना पसंद करेगी. सीएम (नवीन पटनायक) को लगता है कि राज्य में विपक्षी दल के रूप में बीजेपी को फलने-फूलने देना उनकी सत्ता के लिए खतरनाक हो सकता है."
बीजेपी तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस और आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस के साथ भी बातचीत शुरू कर चुकी है. हालांकि इन दोनों मामलों में प्रारंभिक रुझान पार्टी के लिए कुछ खास उत्साहवर्धन नहीं हैं. लेकिन पार्टी ने कोशिश जारी रखी हुई है.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की चर्चाओं में शामिल बीजेपी संसदीय दल के एक पदाधिकारी ने एशियाविल को बताया, “केसीआर सभी विकल्पों को खुला रखना चाहते हैं और वह किसी एक विकल्प पर अभी अपना दांव नहीं लगा रहे. जगन रेड्डी के मामले में वह यूपी के एक शीर्ष नेता के संपर्क में हैं और स्थिति के और साफ़ होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं.”
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और जगन रेड्डी के बीच लंबे समय से मित्रता है और इस नजदीकी को अखिलेश ने खुद कई मौकों पर स्वीकार भी किया है.
दूसरी ओर, कांग्रेस के प्रबंधक बीजेडी, टीआरएस और जगन रेड्डी के साथ परिणाम से पहले सत्ताधारी बीजेपी की चल रही बातचीत को उसकी हताशा का परिचय बता रहे हैं. इससे बीजेपी के अंदरुनी सूत्र भी इनकार नहीं कर रहे.
कांग्रेस के एक पूर्व सांसद और फिलहाल पार्टी प्रवक्ता ने एशियाविल को बताया, “आपको क्या लगता है कि कांग्रेस के पास आज क्षेत्रीय दलों के साथ बातचीत का चैनल नहीं है? हम संपर्क में हैं और इसकी कोई भी सूचना परिणामों के बाद ही सामने आएगी. वास्तव में, परिणामों पर बहुत कुछ निर्भर करेगा.”
उन्होंने कहा कि यह इन दलों- बीजेडी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस- को तय करना कि कौन उनके लिए भविष्य में खतरा पैदा कर सकता है. अगर ये दल ईमानदारी से चाहें तो यह पता करना बड़ा आसान है. उन्होंने कहा, “बीजेपी राज्य सरकारों के स्थायीत्व के खिलाफ काम कर रही है और क्षेत्रीय दलों के साथ सहानुभूतिपूर्वक काम करने का कांग्रेस के पास एक विश्वसनीय रिकॉर्ड है.”
कांग्रेस ने भी कई दलों के साथ चुनाव बाद गठबंधन को लेकर चर्चा शुरू की है
इस बीच, बीजेपी विरोधी मोर्चे को मजबूत रखने में कम्युनिस्ट पार्टियां भी अपनी "भूमिका" निभाने के लिए कमर कसती नज़र आ रही हैं.
सीपीआई के नेता डी राजा ने एशियाविल से कहा, “ किसी भी क्षेत्रीय पार्टी के लिए जो एनडीए का हिस्सा नहीं है, उनका हर वोट मोदी-विरोधी वोट है. अगर यह सही है और ये पार्टियां परिणाम के बाद बीजेपी के साथ जाती हैं तो यह उनके विधानसभा चुनाव अभियान को भी प्रभावित करेगा.”
उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टियां एक मंच पर गैर-बीजेपी ताकतों को एकजुट करने में अपनी भूमिका जरूर निभाएगी.
क्षेत्रीय दलों तक पहुंचने वाले बीजेपी के दूत अपने स्वयं के आंतरिक आकलन की पृष्ठभूमि में अपनी बातचीत आगे बढ़ा रहे हैं. पार्टी के आतंरिक अनुमान के अनुसार चौथे फेज के मतदान के बाद हालांकि स्थिति सुधरी है लेकिन जमीनी रिपोर्ट इस तरफ इशारा कर रहे है की बीजेपी खुद अपने बल पर या एनडीए के सहयोगियों के साथ भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है. सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें दूसरे दलों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी.
बीजेपी के लिए आतंरिक सर्वेक्षण कर रही एक एजेंसी के प्रमुख ने सर्वे परिणामों पर एशियाविल को बताया, “बात यह है कि कांग्रेस सपा-बसपा गठबंधन के साथ पूरी तरह से खड़ी नज़र आ रही है. प्रियंका गांधी के अभियानों में धार न होना इसका साफ़ सबूत है. वे अपने भाषणों में ज्यादातर मोदी या बीजेपी पर निशाना साधती हैं और महागठबंधन उम्मीदवारों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलती. बीजेपी यूपी में कम से कम 28 सीटों के नुकसान को लेकर चल रही है.”
यूपी में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन बीजेपी के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है
उन्होंने कहा कि यूपी में नुकसान के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी को घाटा होने का साफ अनुमान है.
बीजेपी के केंद्रीय चुनाव सेल में कार्यरत एक सेवानिवृत्त नौकरशाह ने एशियाविल को बताया, "बीजेपी को सरकार बनाने की दौड़ में बने रहने के लिए 90 से अधिक सीटों के नुकसान को रोकना होगा. जबकि कांग्रेस के लिए सरकार बनाने की दौड़ में मजबूत खिलाड़ी के रूप में शामिल होने के लिए 90 या उससे अधिक की सीटें पर्याप्त है."
बीजेपी ने तीसरे चरण के मतदान के बाद पैनिक बटन दबाया और नए सहयोगियों की तलाश शुरू कर दी. तब पार्टी का अनुमान था कि उसकी सीटें 200 से नीचे रह सकती हैं. लेकिन चौथे चरण में प्रचार रणनीति में बदलाव के बाद स्थिति में सुधार हुआ है.
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