इन तीनों राज्यों में लोक सभा की 134 सीटें हैं यानी करीब एक-चौथाई. पिछली बार इन 134 सीटों में से बीजेपी ने 105 सीटें जीती थी. यानी पार्टी द्वारा जीती गई कुल 282 सीटों का करीब दो-तिहाई.
पांच साल पहले नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में देश के तीन राज्यों ने बड़ी भूमिका निभाई. इन राज्यों में बीजेपी ने अधिकांश सीटें जीत ली थीं. बावजूद इसके कि इन राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत हैं. इन राज्यों में बीजेपी की कांग्रेस से सीधी टक्कर भी नहीं है. फिर भी बीजेपी की सफलता ने राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया.
ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड. तीनों राज्यों में लोक सभा की 134 सीटें हैं यानी करीब एक-चौथाई. पिछली बार इन 134 सीटों में से बीजेपी ने 105 सीटें जीती थी. उसके सहयोगियों ने 11 सीटें जीती थी. यानी 134 में से 116 सीटें.
उत्तर प्रदेश
वाराणसी से नामांकन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. देश के अधिकतर प्रधानमंत्री या तो उत्तर प्रदेश से हैं या फिर यहां से चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बने. इनमें नरेन्द्र मोदी भी शामिल हैं. पिछले आम चुनाव में बीजेपी ने यहां जो जीत दर्ज की उसका अंदाजा पार्टी को भी नहीं था. राज्य की 80 सीटों में से बीजेपी ने 71 सीटें जीत ली और उसके साथी अपना दल को दो सीटें. नरेन्द्र मोदी की लहर ऐसी थी कि उसमें बसपा साफ हो गई. उसे एक भी सीट नहीं मिली. जबकि देशभर में उसका वोट शेयर बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा था. उस वक्त राज्य में सरकार चला रही सपा सिर्फ अपनी पंरपरागत पांच सीटें ही जीत पाई. कांग्रेस भी अपने गढ़ में ही कमाल कर पाई यानी उसे सिर्फ दो सीटें अमेठी और रायबरेली मिली.
मतदान खत्म होने के बाद अखिलेश यादव और मायावती
लेकिन इस बार राज्य के चुनावी समीकरण पूरी तरह अलग हैं. इसका असर एग्जिट पोल में भी दिख रहा है. राज्य के तीन दलों सपा, बसपा और रालोद गठबंधन के साथ मैदान में हैं. कांग्रेस ने भी प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है. यही कारण है कि एग्जिट पोल भी मान रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए 2014 का प्रदर्शन दोहराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है. उतरप्रदेश में बीजपी खुद को हो रहे नुकसान को रोकने में कितनी कामयाब होगी, यह बेहद अहम होगा.
बिहार
बिहार में रैली के दौरान नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार
नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाने को लेकर पिछले लोक सभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन टूट गया था. इसके बाद बीजेपी ने लोजपा और रालोसपा के साथ मिलकर बड़ा गठबंधन बनाया. जब चुनाव नतीजे आए तो जेडीयू के साथ-साथ आरजेडी और कांग्रेस भी फेंका गए. देश को 40 सांसद देने वाले बिहार से बीजेपी ने 22 सीटें जीती. सहयोगी लोजपा को 6 और रालोसपा को तीन सीटें मिलीं. यानी तीन-चौथाई से ज्यादा सीटें एनडीए के खाते में गई. आरजेडी को 4, जेडीयू और कांग्रेस को दो-दो और एनसीपी को तीन सीटें मिली.
लेकिन यूपी की तरह बिहार में भी इस बार कई दलों ने पाला बदल लिया है. जेडीयू फिर से बीजेपी के साथ है. रालोसपा और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा ने आरजेडी और कांग्रेस का दामन थाम लिया है. इस चुनाव में बिहार ऐसा पहला राज्य है जहां बीजेपी पिछली बार जीती गई सीटों से कम पर चुनाव लड़ रही है. बीजेपी और जेडीयू ने 17-17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. इस बार अगर बीजेपी और एनडीए पुराना प्रदर्शन बरकरार रखते हैं तो बीजेपी के लिए बड़ी बात होगी.
झारखंड
आदिवासी बहुल झारखंड में झामुमो ने बीजेपी के खिलाफ बड़ा गठबंधन तैयार किया है
आदिवासी बहुल झारखंड बीजेपी का पुराना गढ़ रहा है. बीजेपी हमेशा से यहां सीटें जीतती रही है. लेकिन 2014 यहां भी बीजेपी के लिए अपवाद रहा. यहां की 14 लोक सभा सीटों में बीजेपी ने 12 पर परचम लहराया और दो सीटें झामुमो को मिली. इस बार झामुमो, कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक गठबंधन के साथ मैदान में हैं. विपक्ष की रणनीति को भांपते हुए बीजेपी ने भी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन को एक सीट दी है और 13 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. इसलिए झारखंड के समीकरण बीजेपी को फेवर नहीं कर रहे हैं.
इस बार भी नरेन्द्र मोदी को दोबारा सत्ता तक पहुंचाने में इन तीनों राज्यों की बड़ी भूमिका होगी. लेकिन इस बार तीनों राज्यों में बीजेपी के सामने चुनौतीभरे समीकरण हैं. तीनों ही राज्यों में बीजेपी ने पुराने सहयोगी खोए हैं. उसके सामने एक बड़ा विपक्षी गठबंधन है जिसका सामाजिक आधार काफ़ी व्यापक है. बीजेपी इन किलों को बचाने में कामयाब नहीं हो पाती है तो अपने दम पर केंद्र में दोबारा सरकार बनाने की बीजेपी की उम्मीदें धराशायी हो सकती हैं.
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