महाराष्ट्र चुनाव: किसानों के मन में टीस, राज्य को सूखामुक्त करने के बीजेपी के वादे पर उन्हें ऐतबार नहीं
महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार ने 2014 में सरकार बनने के तुरंत बाद जलयुक्त शिवार अभियान शुरू करने का एलान किया था. 2016 में योजना शुरू करने का दावा किया गया. साढ़े चार साल बीत जाने के बाद भी सरकार के पास इस योजना के तहत गिनाने लायक कोई काम नहीं है.
हेमंत सावे के लिए ये मौसम राहत लेकर आया है. बीते दिनों हुई बारिश के कारण उनकी जान में जान आई. पिछली फ़सल बर्बादी के कगार पर पहुंच चुकी थी. आख़िरी दिनों में बारिश हुई. लिहाज़ा, उस फ़सल में तो ज़्यादा कुछ हासिल नहीं हो पाया, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि अगली बुआई में थोड़ी मदद मिलेगी. सावे औरंगाबाद के हिवड़ा गांव में तीन एकड़ ज़मीन पर खेती करते हैं. दो बार से उनकी मेहनत पर सूखे की ऐसी मार पड़ी कि परिवार के लिए गुज़र-बसर मुश्किल हो गया. पेट पालने के लिए शहर जाकर मज़दूरी करनी पडी.
जब उन्हें पता चला कि बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में मराठवाड़ा को सूखा मुक्त करने का वादा किया है तो ख़ुशी के बदले उनके चेहरे पर हैरानी पसर गई. हेमंत को बीजेपी के वादों पर ज़रा भी ऐतबार नहीं है. वे कहते हैं, “ये हर बार ऐसी ही बातें करते हैं. किसानों का वोट चाहिए तो किसानों के लिए अमृत का भी वादा कर देंगे. जब काम करने का टाइम आएगा, फिर विपक्ष पर आरोप लगा देंगे.”
मंडी में गन्ना बेचने पहुंचे हेमंत सावे (फोटो - दिलीप ख़ान)
हेमंत सावे के दावे हवाई नहीं है. मुख्यमंत्री बनने के बाद से देवेन्द्र फड़णवीस महाराष्ट्र को सूखा-मुक्त करने का ऐलान कई दफ़ा कर चुके हैं. सत्ता की कमान संभालने के चंद महीने बाद दिसंबर 2014 में ही फड़णवीस ने जलयुक्त शिवार अभियान शुरू करने का ऐलान कया था. 2016 के गणतंत्र दिवस के दिन राज्य सरकार ने दावा किया कि योजना शुरू हो चुकी है. इस योजना के तहत लक्ष्य रखा गया कि महाराष्ट्र को 2019 तक सूखा-मुक्त कर लिया जाएगा. उस वक़्त राज्य के 25 हज़ार गांवों को सूखे से राहत देने का वादा मुख्यमंत्री ने किया था. योजना शुरू हुए साढ़े चार से ज़्यादा गुज़र गए, अब 2019 भी गुज़रने वाला है, लेकिन महाराष्ट्र में सूखे की आहट सुनकर लोगों के कानों में अभी भी सांय-सांय बजने लगता है.
बीते दिनों राज्य सरकार ने इस योजना की विफ़लता का ठीकरा बीते दो साल में हुई कम बारिश के ऊपर फोड़ दिया. इस बार के घोषणापत्र में बीजेपी ने फिर से राज्य को सूखा-मुक्त करने का वादा किया है. लिहाज़ा किसान कह रहे हैं कि जिस तरह इस बार कम बारिश को ज़िम्मेदार ठहराकर सरकार ने ख़ुद का बचाव कर लिया, उसी तरह आने वाले दिनों में भी इसी बहाने की आड़ लेकर बच जाएगी.
अहमदनगर की मंडी में बाजरा बेचने आए आत्माराम हिरे कहते हैं, “वादा किया है तो पूरा करो, नहीं तो वादा मत करो. हमको झूठा सपना काहे को दिखाता? हम बोलता क्या तुमको कि सूखा-मुक्त कर दो राज्य को? ख़ुद ही बोलते हो और ख़ुद ही बचाव करते हो. हमको भरोसा नहीं पॉलिटिक्स वालों पर. सब झूठे हैं. किसानों को ठगने का काम करते हैं ये सब.”
राजू धनारे गन्ना उपजाते हैं. शिवसेना के समर्थक हैं. उनकी सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार खड़े हैं तो इस बार वो बीजेपी को वोट करेंगे. लेकिन, घोषणापत्र की बात सुनकर वो बुरी तरह नाराज़ हो उठे. धनारे के मुताबिक़, “कैसे करेगा सूखा-मुक्त? इनके बस में है क्या कुछ? पीने के लिए टैंकर तो भेज नहीं पाते, झूठ बोलके ठगते हैं हमको. मुझे ये बात नहीं जमी. ऐसा नहीं बोलना चाहिए भाजप को.”
बीजेपी से नाराज़गी के बावजूद उसी को वोट देने के सवाल पर वो कहते हैं, “वो क्या है ना कि मोदी ठीक आदमी है. वैसे, मैं ठाकरे को मानता, लेकिन भाजप में मोदी ठीक काम कर रहा है. उसका ना कोई बच्चा है, ना परिवार. पैसा बनाएगा किसके लिए? मैं तो यही सोचकर भाजप को वोट करता. लेकिन, भाजप सरकार हमारी नहीं सुनती. इनके राज में तो हमारी वाट लग रहेली है.”
किसान राजू धनारे (फोटो - दिलीप ख़ान)
किसानों के दावे अपनी जगह है और बीजेपी का आत्मविश्वास अपनी जगह. बीजेपी ने जब ताज़ा चुनाव के लिए घोषणापत्र (संकल्प पत्र) जारी किया तो इस मौक़े पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने दावा किया कि फड़णवीस सरकार ने पिछले घोषणापत्र के सारे वादे पूरे कर लिए हैं और अब राज्य को सूखा-मुक्त करने की तैयारी हो रही है. पाटिल ने राज्य सरकार द्वारा साढ़े तीन साल पहले शुरू की गई जलयुक्त शिवार अभियान का ज़िक्र तक नहीं किया. असल में जबसे ये योजना शुरू हुई तबसे राज्य सरकार ने ‘जागरुकता अभियान’ के अलावा इसके तहत कोई भी ऐसा महत्वपूर्ण काम नहीं किया, जिसे गिनाया जा सके. अलबत्ता इस योजना का लोगो बनाने के लिए एक व्यक्ति को सम्मानित ज़रूर किया गया.
महाराष्ट्र में मौसम के मिज़ाज को देखते हुए किसानों को बीजेपी के इस वादे पर ऐतबार का ना होना बेहद स्वाभाविक दिखता है. अब तक सरकार ने जो कदम उठाए उसमें कहीं भी संरचनात्मक स्तर ऐसी कोई पहल नहीं दिखी जिससे तहत बीजेपी ऐसा वादा कर सके. 2014-15 में जब फड़णवीस ने पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तब से लेकर अब तक बारिश ने प्रदेश के साथ आंख-मिचौली खेली है. किसी भी साल 100 फ़ीसदी बारिश नहीं हुई. 2014-15 में राज्य में 70.2 फ़ीसदी, 2015-16 में 59.4 फ़ीसदी, 2016-17 में 94.9 फ़ीसदी, 2017-18 में 84.3 फ़ीसदी और 2018-19 में 73.6 फ़ीसदी बारिश हुई.
महाराष्ट्र चुनाव के लिए बीजेपी का संकल्प पत्र जारी करते मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस और कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा
योजना की असफ़लता के बारे में जब फड़णवीस से पूछा गया था तो उन्होंने 2017-18 और 2018-19 में हुई कम बारिश को ज़िम्मेदार ठहरा दिया. अहमदनगर के किसान रोहित घोड़के कहते हैं, “हमारे यहां सबकुछ बारिश पर टिका है. सरकार कुछ भी कर ले. हमारी क़िस्मत ऊपर वाले के हाथ में है. इनसे कुछ नहीं संभलेगा. पानी को कैसे कोई संभाल सकता. ये क्या समंदर का पानी मेरे को देगा? और दिया भी तो हमारा खेत ख़राब हो जाएगा. उसमें नमक होता है.”
ज़्यादा दिन नहीं हुए हैं, इसी साल फ़रवरी में सरकार ने 151 तालुकाओं को सूखाग्रस्त घोषित किया था. राज्य के 33 ज़िलों में से 26 में आधिकारिक रूप से सूखे की मार पड़ी थी. 2014 में जिस योजना का हवाला देकर ये कहा जा रहा था कि 2019 तक राज्य में सूखा देखने को नहीं मिलेगा, वही सूखा हर इलाक़े में पसरा हुआ है. जिन गांवों में जल संरक्षण के लिए निर्माण कार्य किए गए थे, उनमें ज़्यादातर की निगरानी नहीं हुई और ये सारी कवायदें बुरी तरह असफ़ल साबित हुईं.
किसान हरदेव पाटिल (फोटो - दिलीप ख़ान)
अबकी बार बीजेपी ने संकल्प पत्र में कहा है कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो बारिश पर निर्भरता को कम करेगी और राज्य के पश्चिमी हिस्से से पानी खींचकर मराठवाड़ा और उत्तरी महाराष्ट्र में लाया जाएगा. नासिक के जागरुक किसान हरदेव पाटिल कहते हैं, “शरद पवार के ज़माने में भी सिंचाई योजना लाई गई थी. क्या हुआ उसका? सब मिलके खा गए. 70 हज़ार करोड़ रुपए हवा में उड़ गए. फड़णवीस अब 80-90 हज़ार करोड़ की योजना ले आएंगे. फिर से सब फुर्र हो जाएगा.”
बगल में खड़े उनके भतीजे की राय अलग है. उन्हें नरेन्द्र मोदी पर भरोसा है. वे कहते हैं कि अगर मोदी जी ने कहा है कि वो करके दिखाएंगे. फड़णवीस पर मोदी का दबाव होगा. उन्हें उम्मीद है कि मराठवाड़ा में सूखा अब गुज़रे ज़माने की बात हो जाएगी. हरदेव पाटिल उनके बयान से लगभग तमतमाए हुए अपनी बोरी उठाकर ट्रैक्टर के दूसरी तरफ़ चले गए.
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