34 सरकारी कंपनियों को बेच रही है मोदी सरकार, संसद में ख़ुद दी जानकारी, मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनियां भी शामिल
दिलचस्प ये है कि सरकार ने इन कंपनियों को बेचने के लिए ‘लाभ-हानि’ को पैमाना नहीं बनाया.
नरेन्द्र मोदी सरकार देश की 34 सरकारी कंपनियों/इकाइयों को बेचने का मन बना चुकी है. इस दिशा में सरकार ने ‘सैद्धांतिक मंजूरी’ भी दे दी है. असल में राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इससे जुड़ी जानकारी मांगी तो वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने लिखित जवाब में ये चौंकाने वाली जानकारी दी.
वित्त मंत्रालय के लिखित जवाब के मुताबिक़ सरकार ने ये फ़ैसला नीति आयोग की सिफ़ारिश पर किया है. असल में ख़ुद मोदी सरकार ने केंद्रीय सरकारी उद्यमों (CPSEs) में विनिवेश के लिए रास्ता तलाशने का आदेश दिया था. इसके बाद नीति आयोग ने ‘रणनीतिक विनिवेश’ के तहत 34 कंपनियों/इकाइयों की पहचान कर सरकार को सूची सौंप दी. दिलचस्प ये है कि सरकार ने इन कंपनियों को बेचने के लिए ‘लाभ-हानि’ को पैमाना नहीं बनाया.
यानी अगर कोई कंपनी मुनाफ़े में भी चल रही है तो सरकार उसको भी बेच सकती है.
क्या वजह बताई गई है?
नीति आयोग ने इन कंपनियों को बेचने के पीछे तीन उद्देश्य गिनाए हैं. पहला, राष्ट्रीय सुरक्षा. दूसरा, अप्रत्यक्ष तौर पर शासकीय कार्य और तीसरा, बाज़ार का अभाव और सार्वजनिक उद्देश्य.
सरकार के मुताबिक़ 2016 से नीति आयोग इन कंपनियों पर नज़रें टिकाई हुई थीं. आख़िरकार मोदी सरकार ने नीति आयोग की सिफ़ारिश पर इन 34 कंपनियों (कुछ मामलों में सहायक कंपनियां और कुछ में मात्र इकाइयां/संयंत्र) को बेचने की मंजूरी दे दी.
इनमें से 8 मामलों में ‘रणनीतिक विनिवेश’ का काम पूरा भी हो चुका है. 4 मामले रुके हुए हैं क्योंकि ये चारों बंद होने की कगार पर है. दो मामले क़ानूनी दांव-पेंच के कारण फंसे हुए हैं, जबकि बाक़ी 20 कंपनियां बेचे जाने की प्रक्रिया में अलग-अलग चरणों में पहुंची हुई हैं.
इसके अलावा कुछ ऐसी सरकारी कंपनियां हैं जहां सरकार अपना नियंत्रण तो बनाए रखना चाहती है, लेकिन उसे भी बेचने की तैयारी की जा रही है. सरकार ने इसे ‘जनहित’ करार दिया है.
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