जो संगठन ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों की निर्मम हत्या में शामिल था उसी संगठन के उस दौर के ओडिशा राज्य के सह-संयोजक सांसद प्रताप चंद्र षाड़गी को हमने सोशल मीडिया में हीरो बना दिया है.
आप शायद ग्राहम स्टेंस और उनके दो नाबालिग़ बच्चों को भूल चुके होंगे. 22-23 जनवरी, 1999 की रात ओडिशा-बंगाल बॉर्डर में उनको और उनके बच्चों को एक गाड़ी में ज़िंदा जला दिया गया था. इस निर्मम हत्या के पीछे बजरंग दल का हाथ था. उस दौर में बजरंग दल ओडिशा के सह-संयोजक प्रताप चंद्र षाड़ंगी थे. ये वही षाड़ंगी हैं जो बालासोर से चुनकर लोक सभा में पहुंचे हैं और मोदी सरकार में मंत्री बने हैं. षाड़ंगी के शपथ ग्रहण के दौरान तालियां भी ख़ूब बज़ी थीं. और हां सिर्फ़ सोशल मीडिया ही नहीं बल्कि मुख्यधारा की मीडिया में भी षाड़ंगी का ख़ूब गुणगान होता दिख रहा है. उन्हें ‘ओडिशा का मोदी’ भी कहा जा रहा है.
आख़िर क्या है गुणगान का कारण?
मोदी सरकार में सबसे ग़रीब मंत्री हैं सांसद प्रताप चंद्र षाड़गी. ओडिशा के बालासोर से उन्होंने बीजेडी के उम्मेदवर को शिकस्त दी. वो पहले 2 बार विधायक रह चुके हैं और आज भी मिट्टी से बने घर में रहते हैं.साइकिल से सफ़र करते हैं. लेकिन क्या किसी को आदर्श मान लेने के पीछे सिर्फ़ इतना ही काफ़ी है. उन्हें कुछ लोग महात्मा का दर्ज़ा भी दे रहे हैं.
सादगी पसंद ज़िंदगी एक जीवनशैली ज़रूर हो सकती है. और यह पूर्ण रूप से एक व्यक्तिगत निर्णय होता है लेकिन क्या आप सिर्फ़ शैली के आधार पर किसी व्यक्ति को एक महात्मा का दर्ज़ा देते हैं या उन्हें अपना आदर्श मान लेते हैं.
मोहन दास करमचंद गांधी को ‘महात्मा’ का दर्ज़ा उनके काम और संघर्ष के लिए दिया गया था. अहिंसा के रास्ते पर चलकर आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले गांधी जन-जन के प्रिय थे. इतना ही नहीं हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने में उनका बहुत बड़ा योगदान था. इसके साथ-साथ उनकी जीवनशैली भी सादगीपूर्ण थी.
आज सोशल मीडिया के दौर में कोई भी व्यक्ति की एक विशेष बात को आधार बनाकर उसे एक ‘प्रतीक’ के रूप में पेश करता है. और बाक़ी सारी ख़ामियां या उस व्यक्ति के काम को देखने-परखने का भी कष्ट लोग नहीं उठाना चाहते.
ग्राहम स्टेंस कौन थे ?
स्टेंस ऑस्ट्रेलियाई नागरिक थे. वो ओडिशा के आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरी की तरफ से काम करते थे. उन्होंने आदिवासियों को कुष्ठ बीमारी से निजात दिलाने के लिए बहुत काम किया था. लेकिन चरमपंथी हिन्दू संगठन उन पर धर्मपरिवर्तन का आरोप लगाते थे. आरोप था कि स्टेंस मिशनरी के जरिए आदिवासियों का धर्म बदलते थे. हालांकि इसकी पुष्टि आज तक नहीं हो पाई है.
चरमपंथी बजरंग दल के लोगों ने 22-23 जनवरी की रात को उनकी गाड़ी को आग लगा दी थी. उस वक़्त उनके साथ उनके दो नाबालिग़ बच्चे भी थे. एक की उम्र 6 और दूसरे की 10 साल थी. वो ईसाई समाज के लोगों के एक कार्यक्रम से लौट रहे थे. यह वाक़या है बंगाल-ओडिशा के बॉर्डर इलाक़े का.
जानकार बताते हैं कि उस रात बहुत ठंड थी. और उन्होंने अपने बच्चों के साथ गाड़ी में ही आराम करने का निर्णय लिया था. इस वारदात के मुख्य आरोपी दारा सिंह को भुवनेश्वर की एक अदालत ने 2003 में फांसी की सज़ा सुनाई थी. कुछ अन्य आरोपियों को आजीवन कारावास की सज़ा हुई थी. बाद में हाईकोर्ट ने दारा सिंह की सज़ा को उम्रक़ैद में बदल दिया और बाक़ी लोगों को पुख़्ता सबूत ना होने के आधार पर रिहा कर दिया.
जो संगठन उनकी निर्मम हत्या में शामिल था उसी संगठन के उस दौर के ओडिशा राज्य के सह-संयोजक सांसद प्रताप चंद्र षाड़गी को हमने सोशल मीडिया में हीरो बना दिया है.
षाड़गी पर कई संगीन आरोप
राजनीतिक लोगों पर आम तौर पर कई मुक़दमे होते हैं. कई मुक़दमे राजनीति से प्रेरित भी होते हैं. लेकिन जिस घटना का ज़िक्र किया जा रहा है वो 16 मार्च, 2002 की है. 500 से भी ज़्यादा बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और दुर्गा वहिनी के कार्यकर्ता ओडिशा विधान सभा में ज़बरदस्ती घुस आए थे. वहां जमकर तोड़ फोड़ की गई. बीजेडी के कई विधायक, पुलिसकर्मी समेत कई पत्रकार भी उनकी हिंसा का शिकार हुए थे. इस घटना की बहुत निंदा की गई. अगले दिन पुलिस ने बजरंग दल की ओडिशा इकाई के अध्यक्ष समेत बालासोर से वर्तमान सांसद षाड़गी को गिरफ़्तार कर लिया. उन पर आगज़नी, दंगा-फ़साद, दंगा भड़काने समेत कई संगीन आरोप लगाए गए. लेकिन आज उनका ‘सादगीपूर्ण जीवन’ लोगों के लिए मॉडल है.
‘ओडिशा के मोदी’
ओडिशा के मोदी कह कर लोग सांसद प्रताप चंद्र षाड़गी को संबोधित कर रहे हैं. हां वो ‘मोदी’ हैं लेकिन क़द काठी और शक्ल से नहीं बकलि सोच समझ और काम से. 2002 में जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उस वक़्त वहां गोधरा कांड के बाद मुस्लिम विरोधी दंगा भड़क उठा. अदालतों में मोदी पर कोई आरोप साबित नहीं हो पाए, लेकिन नरेन्द्र मोदी की भूमिका पर तमाम सवाल उठे. ख़ुद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक ने उस दौरान मोदी को ‘राजधर्म’ पालन करने की हिदायत दी थी. 2002 के बाद मोदी देश में ‘हिंदुत्व’ के प्रतीक के तौर पर उभरकर सामने आए. षाडंगी भी अल्पसंख्यक विरोधी अपनी छवि से ठीक मोदी से मेल खाते हैं. ग्राहम स्टेंस की निर्मम हत्या करने वाले संगठन की वो अगुवाई करते थे. अब संसद पहुंचे हैं. लोग चाहे उन्हें आदर्श कह लें या फिर महात्मा, लेकिन जिन्हें सच्चाई मालूम है वो जानते हैं कि षाडंगी का मोदी होने के असली मतलब ग़रीबी और सादगी नहीं बल्कि कुछ और ही है.