गलती सामने आने के बाद ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन का फिर होगा ट्रायल, जानिए कहां हुई चूक
सवाल इसपर भी उठ रहा है कि एस्ट्राजेनेका ने 2 अलग-अलग ट्रायल डिजाइन वाले ब्राजील और यूके में किए गए अलग-अलग ट्रायल्स के परिणामों के साथ प्रेस रिलीज क्यों जारी किया.
एस्ट्राजेनका कंपनी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोरोना वैक्सीन का फिर से ट्रायल करने जा रही है. कंपनी ने हाल ही में एक ट्रायल का शुरुआती डेटा जारी किया था. लेकिन इस डेटा को लेकर कई सवाल उठ खड़े हुए. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एस्ट्राजेनका कंपनी ने ट्रायल के दौरान हुई गलती को स्वीकार कर लिया. अब कंपनी की ओर से नया वैश्विक ट्रायल करने के संकेत मिले हैं.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन पर उठ रहे सवालों को खत्म करने के लिए एस्ट्राजेनका नया ट्रायल करना चाहती है. एस्ट्राजेनका के सीईओ पास्कल सोरिअट (Pascal Soriot) ने कहा है कि कंपनी चाहती है कि नए ट्रायल में वैक्सीन के 90 फीसदी प्रभावी होने के डेटा की फिर से जांच हो.
दरअसल, ट्रायल स्टेज 3 के प्रारंभिक आंकड़ों में 2 अलग-अलग तरह के प्रभाव दिखे, और दोनों को मिलाकर 70.4 फीसदी सुरक्षा की बात सामने आई. वैक्सीन डोजिंग के एक तरीके में ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका वैक्सीन 90 फीसदी असरदार और दूसरी में 62 फीसदी असरदार रही. नए ट्रायल्स कम डोज वाले कॉम्बिनेशन को जांचेंगे जो करीब 90 फीसदी प्रभावी दिखे. ये अलग ट्रायल होगा और इसे अमेरिका और अन्य जगहों पर चल रहे ट्रायल्स के साथ नहीं जोड़ा जाएगा.

पहले ट्रायल के एक हिस्से में ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन 90 फीसदी प्रभावी पाई गई थी. एस्ट्राजेनका कंपनी ने माना था कि उत्पादन के दौरान हुई गलती की वजह से कुछ लोगों को वैक्सीन की कम खुराक मिली थी और ऐसे लोगों में ही वैक्सीन अधिक प्रभावी पाई गई.
शुरुआत में न तो एस्टाजेनका और न ही ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने गलती का खुलासा किया था जिसकी वजह से डेटा के कम पारदर्शी होने को लेकर सवाल उठने लगे. एस्ट्राजेनका के सीईओ पास्कल सोरिअट का कहना है कि नया वैश्विक ट्रायल कम समय में पूरा हो सकता है क्योंकि अब पता चल गया है कि वैक्सीन काफी अधिक प्रभावी है. इसलिए अब कम मरीजों की जरूरत होगी.
पास्कल सोरिअट ने यह भी कहा कि अमेरिका में वैक्सीन को मंजूरी मिलने में समय लग सकता है, क्योंकि अन्य जगहों पर की गई स्टडी के आधार पर अमेरिका में वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने की संभावना कम है. वहीं, वैक्सीन के ट्रायल डेटा पर सवाल उठने के बाद एस्ट्राजेनका के शेयर में शुक्रवार तक 8 फीसदी की गिरावट देखी गई.

वैक्सीन ट्रायल में गड़बड़ी
कंपनी ने इन्वेस्टर्स के सामने ये स्वीकार किया कि जिस कॉम्बिनेशन ने 90 फीसदी प्रभाव दिखाया, दरअसल वो कॉन्ट्रैक्टर द्वारा डोज के कैलकुलेशन में हुई गड़बड़ी की वजह से हुई. ब्रिटेन में 2,800 वॉलंटियर्स के एक छोटे ग्रुप को 'हाफ' डोज के बाद 'फुल' डोज दिया गया था. करीब 8,900 वॉलंटियर्स को फुल डोज कॉम्बिनेशन दिया गया.
सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या ये 'उत्साहजनक' डेटा वाले नतीजे बड़े ट्रायल्स में बरकरार रहेंगे. प्रारंभिक डेटा 131 सिम्प्टोमेटिक पार्टिसिपेंट पर आधारित हैं. लेकिन ये जानकारी नहीं दी गई है कि किस ग्रुप के कितने लोग शामिल हैं.
वहीं ऑपरेशन वॉर स्पीड के नाम से जाने जाने वाले अमेरिकी वैक्सीन प्रोग्राम के चीफ ने खुलासा किया कि हाफ डोज कॉम्बिनेशन 55 साल और उससे कम उम्र के लोगों को दिया गया था. क्या यही प्रभाव बुजुर्गों में भी दिखेगा जिनमें ‘अमूमन’ वैक्सीन अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं? सवाल इसपर भी उठ रहा है कि एस्ट्राजेनेका ने 2 अलग-अलग ट्रायल डिजाइन वाले ब्राजील और यूके में किए गए अलग-अलग ट्रायल्स के परिणामों के साथ प्रेस रिलीज क्यों जारी किया.

कहां हुई चूक
दरअसल 23 नवंबर को कंपनी की तरफ से फेज-3 ट्रायल के रिजल्ट जारी करते हुए बताया गया कि उनकी कोरोना वैक्सीन 90 फीसदी तक प्रभावी है और इस वैक्सीन को कोई खास साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं. हालांकि 90 फीसदी कारगर होने की बात एक फुल डोज के बाद हाफ डोज देने से बताई गई. कंपनी ने कहा था कि वैक्सीन कुल मिलाकर 70 फीसदी तक कारगर है.
अब एक्सपर्ट्स का कहना है कि कई लोगों को वैक्सीन की सही डोज नहीं दी गई. एपी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कम डोज दिए जाने वाले ग्रुप में ज्यादातर जवान लोगों को रखा गया था. जिनकी उम्र 55 साल से नीचे थी. वहीं फार्मा कंपनी की तरफ से बताया गया कि जिन लोगों को कम डोज दी गई, उनमें बेहतर लक्षण पाए गए.
अब एक्सपर्ट्स का कहना है कि जवान लोगों में देखा गया है कि उनका इम्युनिटी सिस्टम मजबूत है और कोरोना से लड़ सकता है. इसीलिए वैक्सीन के कारगर होने पर यहां सवाल उठते हैं. खुद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर कम डोज इतनी प्रभावी कैसे रही.
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