डिप्लोमेसी का मंत्र होता है किसी भी सूरत में संवाद या संपर्क बनाने का प्रयास, लेकिन पाकिस्तान उसका उल्ट कर रहा है.
भारत के संविधान की धारा 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के फ़ैसले पर पाकिस्तान में बौखलाहट पैदा होनी ही थी. इस सिलसिल में पाकिस्तान ने अपनी संसद का संयुक्त सत्र बुलाया. पाकिस्तानी सेना ने भी उच्चस्तरीय बैठक की और कई बयान जारी किए. मसलन पाकिस्तानी सेना ने बयान दिया कि वो भारत की तरफ से किसी भी सैनिक कार्रवाई का जवाब देने के लिए तैयार हैं. भारत सरकार ने बेशक कश्मीर में सुरक्षा के इंतज़ामों के तहत वहां सुरक्षा बलों की तादाद में भारी इज़ाफ़ा किया. लेकिन भारत की तरफ से पाकिस्तान को उकसाने का कोई प्रयास नहीं किया गया. जहां तक पाकिस्तान की संसद के संयुक्त सत्र का सवाल है या फिर पाकिस्तान की सेना का बैठक और बयानों का सवाल है तो इसमें कुछ असामान्य नहीं है. कश्मीर के मामले में अपनी घरेलू राजनीति के दबाव में पाकिस्तान की सरकार और राजनीतिक दलों के बयान आम बात हैं.
लेकिन पाकिस्तान की तरफ से राजनयिक और व्यापारिक संबधों पर उठाए गए उसके कदम आत्मघाती होंगे. पाकिस्तान ने भारत के उच्चायुक्त को इस्लामाबाद से निष्कासित कर दिया, सभी व्यापारिक संबध को बंद कर दिया, यहां तक कि दो देशों के लोगों को जोड़ने के प्रतीक समझौता एक्सप्रैस को भी रोक दिया. लेकिन कश्मीर के लोगों के समर्थन में 15 अगस्त को काले दिन के तौर पर मनाने का फ़ैसला बेहद नासमझी का फ़ैसला है. पाकिस्तान के इस कदम से भारत पाकिस्तान के राजनयिक संबधों को फिर कायम करने में लंबा समय लग सकता है.
इमरान ख़ान इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश में जुटे हैं
कश्मीर में पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने बार-बार भारत से बातचीत की अपील की थी. पाकिस्तान की तरफ़ से भारत के पायलट अभिनंदन वर्धमान को छोड़ना इस दिशा में एक अच्छी कोशिश थी. लेकिन धारा 370 के मसले पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया बचकानी कही जा सकती है जो पाकिस्तान को दुनिया भर में अलग-थलग कर सकती है.
भारत आज दुनिया में एक बड़ी आर्थिक शक्ति है. किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत पाकिस्तान को जवाब देने में पूरी तरह से सक्षम है. यह भारत एक से ज़्यादा बार साबित कर चुका है. पाकिस्तान को अगर लगता है कि वो जम्मू-कश्मीर को एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना सकता है, तो यह समझ बिल्कुल ग़लत है. राजनयिक मामलों में दुनिया में और ख़ासतौर से पश्चिम के देशों में भारत का बड़ा क़द है. इन देशों में पाकिस्तान को आंतकवाद के मसले पर शक की नज़र से देखा जाएगा.
भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक संबधों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं. 2001 में भारत की संसद पर हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया था. लेकिन दिल्ली में पाकिस्तान के उच्चायुक्त को निष्कासित नहीं किया था. डिप्लोमेसी का मंत्र होता है किसी भी सूरत में संवाद या संपर्क बनाने का प्रयास, लेकिन पाकिस्तान उसका उल्ट कर रहा है.