ये हैं वो खिलाड़ी जिन्होंने दो देशों के लिए खेला विश्वकप, एक आपका चहेता है
15 साल बाद एंडरसन कमिंस मैदान में उतरे लेकिन वेस्ट इंडीज की ओर से नहीं, बल्कि कनाडा क्रिकेट टीम की ओर से. कमिंस 2007 विश्वकप में 40 साल की उम्र में कनाडा के लिए खेलते नज़र आए.
आपने क्रिकेट की दुनिया में बहुत सारे खिलाड़ी ऐसे देखे होंगे जिन्होंने अपने देश के साथ-साथ महादेश के लिए भी क्रिकेट खेली हो. सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली जैसे तमाम दिग्गजों ने भारत के साथ-साथ एशिया के लिए भी खेला. लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे खिलाड़ी भी हुए हैं जिन्होंने दो अलग-अलग देशों का प्रतिनिधित्व किया. बात अगर विश्वकप की करें तो ये संख्या और छोटी रह जाती है. विश्वकप में दो अलग-अलग देशों के लिए क्रिकेट खेलने वाले तो मुट्ठी भर ही हैं.
इयॉन मॉर्गन
सबसे पहले बात करते हैं उस खिलाड़ी की जो अपने शानदार प्रदर्शन की वजह से 2019 विश्वकप की चर्चाओं में है. इयॉन मॉर्गन अभी इंग्लैंड के कप्तान भले हों, लेकिन क्रिकेट करियर उन्होंने आयरलैंड से शुरू किया. 2006 में उन्होंने आयरलैंड की तरफ़ से खेलना शुरू किया. मॉर्गन ने अपने पहले ही वनडे अंतरराष्ट्रीय में शानदार प्रदर्शन किया था. ये मुक़ाबला था आयरलैंड बनाम स्कॉटलैंड का, जिसमें इयॉन मॉर्गन ने 99 रनों की पारी खेली थी.
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2007 में जब विश्वकप के लिए आयरलैंड की टीम घोषित हुई तो उसमें मॉर्गन भी थे. लेकिन, इस विश्वकप में मॉर्गन कुछ कमाल नहीं कर पाए. विश्वकप के बाद उन्हें समझ में आ गया था कि भविष्य आयरलैंड में नहीं, इंग्लैंड में है. मॉर्गन ने अपनी क़ाबिलियत की बदौलत इंग्लैंड की टीम में जगह बना ली और जब 2011 के विश्वकप में इंग्लैंड की टीम का ऐलान हुआ तो उसमें इयॉन मॉर्गन का भी नाम था.
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2011 में उन्हें तीन मैचों में खेलने का मौक़ा मिला, लेकिन तीन पारियों में उन्होंने दो अर्धशतक जड़ दिए. लेकिन, 2015 के विश्वकप से ठीक पहले इंग्लिश क्रिकेट में इयॉन मॉर्गन का दौर शुरू हुआ. उन्हें टीम की कप्तानी सौंपी गई. 2015 के विश्वकप में तो इंग्लैंड कमाल नहीं कर सकी, लेकिन उसके बाद कैप्टन मॉर्गन ने टीम का सूरते हाल बदलकर रख दिया.
इस वक़्त इनकी अगुवाई में टीम एकदिवसीय रैंकिंग में पहले नंबर पर है और इस विश्वकप की प्रबल दावेदार है.
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एड जॉयस
इयॉन मॉर्गन के अलावा एक और ऐसे यूरोपियन खिलाड़ी हैं जिन्होंने दो देशों के लिए विश्वकप खेला. इनकी कहानी मॉर्गन से बिल्कुल उल्टी है. एड जॉयस ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत तो इंग्लैंड टीम से की, लेकिन बाद में खेलने के लिए आयरलैंड जा पहुंचे. इत्तेफाक की बात ये है कि जॉयस ने जब अपना पहले वनडे अंतरराष्ट्रीय खेला वो आयरलैंड बनाम इंग्लैंड था.
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एड जॉयस ने क्रिकेट विश्वकप में अपना पहला मैच 2007 में इंग्लैंड के लिए खेला, लेकिन इसके बाद उन्होंने अपने मूल देश आयरलैंड की ओर से खेलने का फ़ैसला किया. बता दें कि एड जॉयस आयरलैंड के ही हैं और उनका जन्म आयरलैंड की राजधानी डबलीन में हुआ है. इसके बाद उन्होंने 2011 और 2015 में विश्वकप में आयरलैंड का प्रतिनिधत्व किया. 2015 विश्वकप के ग्रुप मैच में एड जॉयस की वेस्ट इंडीज के ख़िलाफ़ 84 रन की वो शानदारी पारी कौन भूल सकता है जिसने आयरलैंड ने वेस्ट इंडीज के दिए 300+ स्कोर को चेज़ करके मैच जीत लिया था. इसके साथ ही इसी विश्वकप में जॉयस ने जिम्बाब्वे के ख़िलाफ़ अपना पहला शतक जड़ आयरलैंड का स्कोर 331 तक पहुंचाया.
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एंडरसन कमिंस
कैरेबिया में जन्मे 53 साल के ऑलराउंडर एंडरसन कमिंस ने भी विश्वकप में दो देशों का प्रतिनिधत्व किया है. 1991 में अपने क्रिकेटर करियर की शुरुआत करने वाले एंडरसन कमिंस ने 1992 विश्वकप में वेस्ट इंडीज की ओर से डेब्यू किया था. अपने पहले ही विश्वकप में एंडरसन कमिंस ने 6 मैच में 12 विकेट चटका दिए थे. बता दें कि 1992 विश्वकप में एंडरसन कमिंस ने एक मैच में सबसे ज़्यादा विकेट भारत के ख़िलाफ ही लिया था. कमिंस ने कपिल देव समेत भारत के 3 और बल्लेबाज़ों को पवेलियन का रास्ता दिखाया था.
इसके ठीक 15 साल बाद एंडरसन कमिंस मैदान में उतरे लेकिन वेस्ट इंडीज की ओर से नहीं, बल्कि कनाडा क्रिकेट टीम की ओर से. कमिंस 2007 विश्वकप में 40 साल की उम्र में कनाडा के लिए खेलते नज़र आए. हालांकि कनाडा ग्रुप स्टेज मैच भी क्वालिफाई नहीं कर सकी और उसके 3 मुक़ाबलों में एंडरसन ने दो विकेट चटकाए.
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कैप्लर वेसेल्स
दक्षिण अफ़्रीका में जन्मे कैप्लर वेसेल्स पहले ऐसे क्रिकेटर थे जिन्होंने दो देशों की ओर से विश्वकप का प्रतिनिधित्व किया. कैप्लर ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया की ओर से 1982 में टेस्ट क्रिकेट के ज़रिए किया था. इसके बाद कैप्लर वेसेल्स ने ऑस्ट्रेलिया टीम का हिस्सा बनकर 1983 में अपना पहला विश्वकप खेला. अपने पहले ही मुक़ाबले में कैप्लर ने जिम्बाब्वे के ख़िलाफ़ 76 रनों की शानदार पारी खेली. हालांकि ऑस्ट्रेलिया को उस मैच में हार का सामना करना पड़ा था. इस टूर्नामेंट में वेसेल्स ने तीन मैच खेले थे.
इसके नौ साल बाद कैप्लर वेसेल्स दोबारा विश्वकप खेलने मैदान में उतरे और वो भी कप्तान के तौर पर, लेकिन इस बार टीम दूसरी थी. इस बार वो अपने मूल देश दक्षिण अफ़्रीका का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. 1992 विश्वकप में कैप्लर वेसेल्स ने दक्षिण अफ़्रीका टीम की कमान संभाली. कैप्लर को 1995 में विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर चुना गया था. 1992 का विश्वकप कैप्लर वेसेल्स का आख़िरी विश्वकप था.
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