Interview: पुष्पम प्रिया चौधरी: तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री के योग्य नही हैं; कोई कुछ भी कर लें, मैं कहीं नहीं जाने वाली
"हम जानते हैं कि लोग कैसे रैलियों में आते हैं. हम सब जानते हैं, लेकिन कैमरे में बोलने से सब बचना चाहते हैं और ऐसे व्यवहार करते हैं कि जैसे उन्हें कुछ पता ही न हो. वे ऐसा जताते हैं कि लोग उन्हें समझने-देखने के लिए अपनी मर्ज़ी से वहां आए. लेकिन हम जानते हैं कि रैलियों में लोग कैसे आते हैं. "
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार एक नई-नवेली पार्टी की एंट्री हुई है. प्लूरल्स की. पार्टी अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी से एशियाविल संवाददाता अमित भारद्वाज ने विस्तार से बिहार की ताज़ा राजनीति, मौजूदा चुनाव और पार्टी की नीतियों के बारे में बातचीत की. नीचे पढ़िए पूरा साक्षात्कार. आप चाहें तो स्क्रोल डाउन करके वीडियो भी देख सकते हैं.
अमित भारद्वाज: आपने ऊंचे मंसूबे के साथ ये कहते हुए चुनावी अभियान की शुरुआत की कि आप अपनी पार्टी की तरफ़ से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार हैं. आपने ये भी कहा कि आपकी पार्टी हर सीट पर चुनाव लड़ेगी. हमारी मुलाक़ात आपके कुछ समर्थकों से हुई. उन्होंने कहा कि पहले उन्हें अपनी सीट जीतने दीजिए, फिर हम अगले चुनाव में उनके उम्मीदवारों को वोट करने के बारे में सोचेंगे. आप अपने समर्थकों के इस बयान को किस तरह देखती हैं?
पुष्पम प्रिया चौधरी: मैं इससे सहमत नहीं हूं कि वे हमारे पक्के समर्थक हैं. वे ऐसे लोग हैं जिनकी आपके बारे में एक राय है. वे हमारे शुभचिंतक हो सकते हैं, लेकिन हमारे समर्थक वे हैं जो हमारे साथ खड़े हैं. जैसे यहां आप देख रहे हैं. अगर आप इनसे पूछेंगे तो इनका जवाब होगा कि ये सब मुझे वोट कर रहे हैं. मैं इन्हें ही अपना समर्थक मानती हूं. जहां तक स्विंग वोटरों का सवाल है तो मुझे लगता है कि वे इतने समझदार हैं कि अगले 5 साल के लिए वे अपनी ज़िंदगी ख़तरे में नहीं डालेंगे.
अमित: जब आपने कहा कि आप अपनी पार्टी की तरफ़ से मुख्यमंत्री पद की दावेदार होंगी, तो उस वक़्त आप सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारना चाहती थीं, लेकिन अब हालात बदले से नज़र आ रहे हैं. अब आपके पास सिर्फ़ 146 उम्मीदवार हैं. क्या हम कह सकते हैं कि आपने चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री बनने का सपना छोड़ दिया?
पुष्पम: बिल्कुल नहीं. अभी भी हम सबसे ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी है. अगर हम जीतेंगे तो अपने बूते हमे बहुमत मिलेगा.
अमित: 146 उम्मीदवारों के बूते?
पुष्पम: हां.
अमित: मैं आपसे कुछ अलग-अलग तरह के सवाल करना चाहता हूं. मैं समझना चाहता हूं कि आरक्षण पर आपकी क्या राय है? ख़ासकर जाति आधारित आरक्षण पर?
पुष्पम: देखिए इसमें दो चीज़ें हैं. मैं अंबेडकर के विचारों में यक़ीन रखती हूं. मैं जाति प्रथा को ख़त्म करने में यक़ीन रखती हूं. एक चीज़ तो ये है. इसके लिए हमारे घोषणापत्र में कई बातें कही गई हैं कि कैसे हम इसे हासिल कर सकते हैं. हमें शिक्षा पर ध्यान देना होगा, हमें आर्थिक अवसरों को बढ़ाना होगा. हमें क़ानून-व्यवस्था को भी दुरुस्त करना होगा. आप बिहार की क़ानून-व्यवस्था से वाकिफ़ ही होंगे. जहां तक आरक्षण का सवाल है तो मैंने आज ही कहा कि ये व्यवस्था संविधान में बनाई गई. इसे बनाने वाले दुनिया के सबसे कुशाग्र बुद्धि वाले लोगों में एक थे. हम उनकी इज़्ज़त करते हूैं और मैं आरक्षण में यक़ीन रखती हूं. आपको लोगों को सामाजिक अवसर मुहैया कराना ही होगा. हमारे देश में उत्पीड़न का लंबा इतिहास रहा है. मैं इसके विरोध में नहीं हूं, लेकिन मेरा मानना है कि इस मुद्दे पर जितनी पहचान की राजनीति हुई वो दुर्भाग्यपूर्ण है. मुझे पहचान की राजनीति से दिक़्क़त है, लेकिन मैं प्रतिनिधित्व के विचार के ख़िलाफ़ नहीं हूं. असल में, मैं इसका खुलकर समर्थन करती हूं. मेरा मानना है कि लोगों को सामाजिक-आर्थिक अवसर मिलना ही चाहिए.

अमित: मैं जो पूछना चाहता था, उसमें से कुछ का जवाब आपने पहले ही दे दिया. ये सवाल आपसे बहुत सारे लोगों ने पूछा होगा. आपने जब अपने उम्मीदवारों की घोषणा की तो जाति-धर्म की जगह आपने उनके पेशे का कॉलम वहां जोड़ दिया. आपको लगता है कि ये सही है?
पुष्पम: हां. जैसा मैंने पहले ही बताया कि मैं पहचान की राजनीति को नहीं मानती. मैं जाति या धर्म आधारित पहचान को पसंद नहीं करती. मैं इसका ख़ात्मा चाहती हूं. इससे सारी असली समस्याएं छुप जाती हैं. किसी को तो आगे आना होगा और नीतियों के बारे में बात करनी होगी. अगर आपके पास ठोस नीतियां हों, आपके पास अच्छी शिक्षा नीति हो, तो आप पूरे बिहार को बदल सकते हैं. अगर हम ऐसा कर पाए तो हमें इन सबकी बात करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. दूसरे नेता लोग राजनीति में क्यों हैं, मुझे इसका पता नहीं. राजनीति का मतलब नीति निर्माण भी होता है. आपको पता ही होगा कि बिहार में बमुश्किल नीति निर्माण की बात होती है.
अमित: आपने कहा कि आप अंबेडकर के विचार को मानती हैं. प्रतिनिधित्व के सवाल को लेकर अंबेडकर काफी आक्रामक थे, इसलिए उन्होंने अलग सीट की बात की थी. अगर आप जाति से इनकार करती हैं और चुनावी राजनीति में इसे नहीं मानतीं तो क्या आपको नहीं लगता कि अंबेडकर जिस विचार के लिए लड़े आप उसे भी नकार रही हैं?
पुष्पम: नहीं. मैंने ये नहीं कहा कि मैं जाति से इनकार कर रही हूं या फिर जाति व्यवस्था की मौजूदगी को झुठला रही हूं. मैं कह रही हूं कि मैं जाति व्यवस्था का ख़ात्मा चाहती हूं और ऐसा करने के लिए हमारे पास तीन अलग-अलग रास्ते हैं, ताकि जातिगत राजनीति ख़त्म हो सके. इसके लिए हमें शिक्षा नीति पर काम करना पड़ेगा, आर्थिक अवसर बढ़ाने होंगे, लोगों को नौकरियां देनी होंगी.
अमित: अगर आपके पास राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं होगा तो इन नीतियों का लाभ उन तक कैसे पहुंचेगा जो कथित तौर पर निचली जाति के हैं?
पुष्पम: आप इस मामले में ग़लत हैं. आपको और रिसर्च की दरकार है. मैंने बार-बार कहा है कि प्रतिनिधित्व होगा. बिहार में इस वक़्त दो जातियां हैं. पहली है जो राजनीतिक नेटवर्क के क़रीब हैं, वे चाहते हैं कि उनकी ही जाति के दूसरे लोग उस नेटवर्क में न पहुंचे. दूसरी जाति में हम सब शामिल हैं. आरक्षण की बहस क्यों शुरू हुई, इसे समझना ज़रूरी है. इसकी शुरुआत इसलिए हुई क्योंकि वे हाशिए पर थे. नीति निर्माण में उनको शामिल नहीं किया गया था. अगर आपको लगता है कि इस वक़्त वे नीति निर्माण में शामिल हो चुके हैं तो आप ग़लत हैं. वे लोगों के पास जाते हैं और कहते हैं कि मैं आपकी जाति का हूं, इसलिए मुझे वोट कीजिए. फिर पलटकर दोबारा नहीं जाते. इसे नीति निर्माण में शामिल होना नहीं कहा जा सकता. मैं उनका वास्तविक समायोजन चाहती हूं. मैंने उन लोगों को (भी) टिकट दिया है जो वाक़ई हाशिए पर मौजूद हैं. आप मेरे साथ बोध गया चलिए, आपको ख़ुद पता चल जाएगा. आप मेरे साथ दूसरी जगहों पर चलिए, आपको पता चल जाएगा. मैंने उनको टिकट नहीं दिया है जो ये दावा करते हों कि वे फलाने जाति से आते हैं, इसलिए वे टिकट के हक़दार हैं.

अमित: उम्मीदवारों की सूची पर एक अंतिम सवाल. उसके बाद हम आगे बढ़ेंगे. आप देखते हैं कि राज्य दर राज्य चुनाव जीतने वाली बीजेपी ने एक भी अल्पसंख्यक को टिकट नहीं दिया है. हमने इससे पहले भी देखा है कि गुजरात, कर्नाटक में उसने ऐसा ही किया. राजस्थान एक अपवाद था, जहां बीजेपी ने एक मुसलमान को टिकट दिया था. जब आपने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कि तो उसमें धर्म का ज़िक्र नहीं किया तो आपको नहीं लगता कि आप उनकी पहचान को ख़त्म कर रही हैं. हो सकता है कि उन्हें अपनी उस पहचान पर गर्व हो और उन्हें लगता हो कि वे अपने समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
पुष्पम: मुझे अफ़सोस है कि आपको लग रहा है कि हम उनकी पहचान को दबा रहे हैं. प्रतिनिधित्व को लेकर प्लूरल्स जो कर रही है, वो अलग है. मुझे पता नहीं कि लोग क्यों इस बात का बतंगड़ बना रहे हैं. मैंने बार-बार रेकॉर्ड पर कहा है कि चीज़ों को करने के दो तरीक़े हैं. मैंने पार्टी का नाम प्लूरल्स रखा है. मतलब साफ़ है कि सभी जाति और धर्म के लोग एक साथ रहें. कई लोगों को इस मतलब से दिक़्क़त है और कई लोगों को प्लूरल्स शब्द से. कई लोगों ने कहा कि ये अंग्रेज़ी का शब्द है. आपने ये नाम क्यों रखा. हमने ये नाम रखा है ताकि लोगों को इसका अर्थ पता चले. आपने सही कहा, देश में जो कुछ हो रहा है वो बहुत अफ़सोसजनक है. मेरे लिए हर कोई, जब मैं कह रही हूं कि हर कोई तो इसका मतलब है हर व्यक्ति बराबर हैं. बराबर उनका महत्व है. यही प्लूरल्स की विचारधारा है.
मुझे लगता है कि धर्म बहुत निजी मामला है. मुझे लगता है कि भारत एक विविधता का देश है और सबको अपनी आस्था के मुताबिक़ पूजा करने का अधिकार है. मुझे लगता है कि क़ानून व्यवस्था इतनी मज़बूत होनी चाहिए कि उन्हें ऐसा करने में कोई तकलीफ़ न हो. फिर भी मुझे लगता है कि प्रतिनिधित्व और पहचान की राजनीति दो अलग-अलग चीज़ें हैं. मैं प्रतिनिधित्व में यक़ीन करती हूं. हमारे साथ सभी जाति, सभी धर्म के लोग हैं. सभी धर्म और जाति में मेरे दोस्त हैं. मैं नहीं जानती कि लोग कैसे भेदभाव करते हैं और कैसे भेदभाव करते हैं. प्लूरल्स ऐसी ही रहेगी.
अमित: एक रैली में आपने कहा कि इस चुनाव में मुख्यमंत्री के दो उम्मीदवार हैं. एक के लिए आप मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ़ इशारा कर रही थीं और मुझे लगता है कि दूसरे को लेकर आपका इशारा तेजस्वी यादव की तरफ़ था. नहीं?
पुष्पम: हां.
अमित: और आपने कहा कि वो मुख्यमंत्री पद के योग्य तक नहीं हैं. ऐसा क्यों कहा?
पुष्पम: सबसे पहले इसलिए क्योंकि ये लालू जी की पार्टी है. बहुत ईमानदारी से कह रही हूं ये आरजेडी है. जिन लोगों ने इस पार्टी की शुरुआत की थी, उन्हें मौक़ा मिलना चाहिए. जिन लोगों ने ताज़िंदगी लालू जी के साथ काम किया उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार होना चाहिए था. जहां तक तेजस्वी जी का सवाल है. सबको राजनीति करने का अधिकार है. मुझे इससे कोई दिक़्क़त नहीं है, लेकिन तब आपको सबकुछ छोड़ना पड़ेगा. आपको उन चीज़ों को छोड़ना पड़ेगा जो विरासत में आपको अपने पिता से मिली. संभवत: आपको ख़ुद की पार्टी बनानी चाहिए. आपको अपने कार्यकर्ता तैयार करने चाहिए और तब वे मुख्यमंत्री पद के वास्तविक दावेदार होते. मुझे लगता है कि थोड़ी देर पहले ही हमने आरक्षण के बारे में बात की. हमने जाति और धर्म के बारे में बात की. मुश्किल क्या है? मुश्किल ये है कि लोगों को समान अवसर नहीं मिलते. हमारे यहां दमन का इतिहास रहा है. इसका मतलब ये है कि लोगों को वे आर्थिक अवसर नहीं मिलते, वे राजनीतिक अवसर नहीं मिलते, जो उन्हें मिलना चाहिए. आपका जन्म एक ख़ास परिवार में हुआ और सिर्फ़ इसलिए आपको सबकुछ मिल जाएगा, ये अनुचित है.
अमित: लेकिन लोगों का उन्हें समर्थन मिल रहा है. उनकी रैलियों में काफी भीड़ आ रही है. मौजूदा मुख्यमंत्री को उनसे तगड़ी चुनौती मिल रही है तो क्या आपको नहीं लगता कि लोग जिन्हें समर्थन कर रहे हैं उन्हें भी इस लोकतंत्र में अपनी दावेदारी पेश करने का अधिकार है?
पुष्पम: इस पर एकेडेमिक्स में काफी बहस हुई है. इसे एडेप्टिव प्रिफेरेंसेज़ कहते हैं. आप बिहार में भी पाएंगे कि समय के साथ लोगों ने सरकार से उम्मीद करना ही छोड़ दिया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लंबे समय तक उनको वंचित रखा गया. इसी बात को अगर मैं आपके सवाल के जवाब के तौर पर कहूं तो उन्होंने ख़ुद को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया. लोग लालू जी का सम्मान करते हैं और लालू जी ने उन्हें (तेजस्वी) को अगले मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर पेश किया. इसलिए लोगों की प्राथमिकता अनुकूलित है. उन्हें लगता है कि यही ठीक है. बिहार में कई ऐसी चीज़ें हो रही हैं जो नहीं होना चाहिए. किसी को तो ये सब बदलना होगा. हम जानते हैं कि लोग कैसे रैलियों में आते हैं. हम सब जानते हैं, लेकिन कैमरे में बोलने से सब बचना चाहते हैं और ऐसे व्यवहार करते हैं कि जैसे उन्हें कुछ पता ही न हो. वे ऐसा जताते हैं कि लोग उन्हें समझने-देखने के लिए अपनी मर्ज़ी से वहां आए. लेकिन हम जानते हैं कि रैलियों में लोग कैसे आते हैं. अगर चुनाव जीतने का पैमाना रैलियां हो जाएं तो देश में ऐसे कई राजनेता हैं जिन्हें प्रधानमंत्री हो जाना चाहिए.

अमित: मैंने आपकी सभाओं में देखा. लोग कम थे, लेकिन ये जो उम्मीदवार (बगल में खड़े उम्मीदवार की तरफ़ इशारा करते हुए) हैं, वे काफी सहज और साधारण परिवेश से आए हुए मालूम पड़ते हैं. आप इन उम्मीदवारों की मदद करने के लिए आर्थिक सहयोग कहां से लाती हैं?
पुष्पम: आपने इस तरह की बहुत सारी ख़बरें पढ़ी होंगी जो टिकट ख़रीदने से जुड़ी हों. दूसरी पार्टियों को लेकर ऐसी ख़बरें आती रहती हैं. हमने बहुत ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ उम्मीदवारों का चयन किया है. हमने उनकी सीवी देखी, उनसे बात की कि वे बिहार को लेकर क्या सोचते हैं. फिर वे चुनावी मैदान में हैं. हमारे पास काला धन नहीं है. आज की तारीख़ में ऐसे चुनाव लड़ना बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि बाक़ी लोगों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके काफी धन इकट्ठा कर लिया है. कई दशकों से. हमारे पास उनके पैसे का छटांग भर भी नहीं है. फिर भी हम क्राउड फंड कर रहे हैं. हम लोगों से चंदा ले रहे हैं. जिन लोगों को लग रहा है कि बिहार को बदलना चाहिए, वे हमारा साथ दे रहे हैं.
अमित: लोग आ रहे हैं?
पुष्पम: बहुत सारे लोग आ रहे हैं. आप ख़ुद यहां देख सकते हैं. संजीव जी (उम्मीदवार) को भी यहां अच्छा समर्थन हासिल है. ये ज़मीनी मुद्दे उठा रहे हैं. वे वास्तविक मुद्दे उठा रहे हैं. किसानों के मुद्दे उठा रहे हैं.
अमित: आपने क्रांति की बात की थी. लेकिन मैं एक काल्पनिक सवाल पूछ रहा हूं. अगर आप चुनाव हार गईं तो आपके जो कार्यकर्ता इस वक़्त जोश में हैं और नारे लगा रहे हैं या फिर संजीव जी जैसे उम्मीदवार जो चुनाव लड़ रहे हैं, इनका क्या होगा?
पुष्पम: यही हमारे देश की दिक़्क़त है. अगर मैं यहां हूं तो आपको क्यों लगता है कि मैं यहां से जाने के लिए आई हूं. मामला आपका नहीं है. राजनेता भी यही बात कर रहे हैं. वे सारे हथकंडे अपना रहे हैं. मैं यहां हूं. आपके मंच से मैं सभी राजनेताओं को बता देना चाहती हूं कि आपक कोशिश तो बहुत कर रहे है कि मैं चली जाऊं और उसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है. लोकतंत्र का तो आपने धज्जियां उड़ा दी हैं, लेकिन हम कही नहीं जाने वाले हैं.

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