आतंकवाद से जुड़ा विवादित UAPA संशोधन विधेयक राज्यसभा से भी हुआ पारित
लोकसभा से ये विधेयक पहले ही पारित हो चुका है. सरकार ने यूएपीए क़ानून में कई संशोधन किए हैं, जिन पर दो दिनों तक राज्यसभा में काफी विवाद रहा.
राज्य सभा में विपक्षी दलों की तरफ़ से जताए गए कई ऐतराज़ों के बावजूद ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि (निरोध) अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2019 पारित हो गया है. सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस के बाद जब वोटिंग कराई गई तो विधेयक के पक्ष में 147 सांसदों ने सहमति जताई, जबकि विरोध में सिर्फ़ 42 वोट पड़े.
इससे पहले डीएमके सांसद तिरुचि शिवा, एमडीएमके सांसद वाइको और सीपीएम सांसद केके रागेश ने इस विधेयक को राज्यसभा के सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने के लिए प्रस्ताव पेश किया, लेकिन सदन ने उनके प्रस्ताव को नकार दिया. वाइको ने अपने प्रस्ताव पर वोटिंग की मांग की. उनके प्रस्ताव के पक्ष में 85 और विरोध में 104 मत पड़े.
इसके साथ ही अब यूएपीए से जुड़े इस विवादित संशोधन विधेयक के क़ानून बनने की राह खुल गई है. लोकसभा से ये विधेयक पहले ही पारित हो चुका है. इससे पहले कांग्रेस के सांसद पी चिदंबरम और दिग्विजय सिंह, आरजेडी सांसद मनोज झा, सीपीएम सांसद इलामारम करीम, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह समेत कई नेताओं ने आज इस विधेयक की कड़ी आलोचना की. राज्यसभा में गुरुवार से ही इस विधेयक पर बहस चल रही थी.
पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस संशोधन विधेयक को ग़ैर-क़ानूनी और असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में ये टिक नहीं पाएगा. उन्होंने कहा कि पहले से मौजूद क़ानून में आतंकवाद को रोकने की पर्याप्त व्यवस्था की गई है ऐसे में नए संशोधन की कोई दरकार नहीं है. चिदंबरम ने कहा, “सेक्शन 35, सेक्शन 36 को आप संशोधित कर रहे हैं. 35 में ये कहा गया है कि अगर सेंट्रल गवर्नमेंट को ये लगता है कि कोई इंडिविजुअल आतंकवाद में शामिल है, तो उस पर ये क़ानून लागू होगा. यानी कोई एफ़आईआर नहीं होगा, कोई चार्जशीट नहीं, कहीं कुछ नहीं. सिर्फ़ सरकार को लगने भर से किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित कर दिया जाएगा.”
चिदंबरम ने आशंका जाहिर की कि इस क़ानून की आड़ में मोदी सरकार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अपने आलोचकों को निशाना बनाने की कोशिश करेगी. उन्होंने चुनौती भरे अंदाज़ में कहा कि अगर सरकार को लगता है कि ये संवैधानिक है तो इसे सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाना चाहिए या फिर संवैधानिक जानकारों को बुलाकर उनसे पूछना चाहिए कि क्या ये विधेयक संवैधानिक तकाज़ों के अनुरूप है?
वहीं, आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा कि उन्हें सरकार की मंशा पर भरोसा नहीं है. उन्होंने आशंका ज़ाहिर करते हुए कहा, “हो सकता है कि सरकार एनाइलेशन ऑफ़ कास्ट (अंबेडकर की किताब) को आपत्तिजनक करार दे दें. इस एमेंडमेंट के ज़रिए ये संभावना प्रबल हो जाती है कि सरकार की आलोचना करने वालों को देशद्रोही करार दे दिया जाए.”
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने दावा किया कि इस तरह के क़ानून का हमेशा दुरुपयोग होता रहा है. उन्होंने कहा, “ऐसे क़ानूनों का दुरुपयोग बार-बार होता रहा है. इसमें प्रावधान है कि कोई भी इंसपेक्टर स्तर का अधिकारी किसी भी राज्य में जाकर किसी को भी गिरफ़्तार कर सकता है. ये संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ है. बदलाव को वापस लीजिए.”
दिग्विजय सिंह ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम लिए बग़ैर कहा कि बीजेपी ने आतंकवाद के अभियुक्त को टिकट देकर लोकसभा पहुंचा दिया. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि मोदी सरकार ने दावा किया था कि नोटबंदी से आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा, फिर सरकार को इस विधेयक की दरकार क्यों पड़ी? दिग्विजय सिंह ने जानना चाहा कि इस क़ानून के ज़रिए सरकार किस व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना चाहती है.
Digvijaya Singh in Rajya Sabha on #UAPABill : We doubt their(BJP) intent. Congress never compromised on terrorism that is why we had brought this law. It is you who compromised on terror, once during release of Rubaiya Saeed ji and second by letting off Masood Azhar. pic.twitter.com/12e2pgZCNw
— ANI (@ANI) August 2, 2019
बहस का जवाब देने खड़े हुए गृहमंत्री अमित शाह ने चुटकी लेते हुए कहा कि अगर दिग्विजय सिंह अच्छा काम करेंगे तो आतंकवादी करार नहीं दिए जाएंगे. उनके इस बयान पर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति ज़ाहिर की. इसके बाद अमित शाह ने विपक्ष द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को ग़ैर-वाज़िब क़रार दिया. अमित शाह ने कांग्रेस सांसद पी चिंदबरम द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब में कहा कि व्यक्ति पर प्रतिबंध लगाए बग़ैर आतंकवाद से नहीं लड़ा जा सकता.
उन्होंने कहा, “हम एक संस्था पर प्रतिबंध लगाते हैं, वो दूसरी संस्था खोल लेते हैं. वो आतंकवाद फैलाते रहते हैं, घटनाएं फैलाते रहते हैं, विचारधारा फैलाते रहते हैं. मैं कहता हूं कि घटना संस्था नहीं करती, व्यक्ति करता है. लोग नई दुक़ान खोल लेते हैं...जब तक व्यक्ति को आतंकवादी घोषित नहीं करते, तब तक इनके इरादों पर पाबंदी लगाना मुश्किल है.”
Amit Shah: When we were in opposition, we supported previous UAPA amendments, be it in 2004,'08 or '13 as we believe all should support tough measures against terror. We also believe that terror has no religion, it is against humanity,not against a particular Govt or individual pic.twitter.com/y6xqqLn83L
— ANI (@ANI) August 2, 2019
अमित शाह ने कहा कि व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने के मामले में अब दुनिया के बाक़ी देशों की तरह भारत को भी क़ानून बनाने की दरकार है. राज्यसभा में उन्होंने कहा, “यूएसए में व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करते हैं, पाकिस्तान में करते हैं, चीन में करते हैं, इज़रायल में करते हैं. यूरोपियन यूनियन में करते हैं और यूएनएससी के प्रस्ताव 1267 और 1330 के तहत यूएन भी घोषित करता है. मुझे नहीं मालूम पड़ता कि हमें क्या डर पड़ा है?”
यही नहीं, अमित शाह ने ये भी कहा कि इस क़ानून में मानवाधिकार और व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का ख़याल रखा गया है. उन्होंने कहा, “सरकारी कमेटी, रिव्यू कमेटी. रिव्यू कमेटी के अध्यक्ष हाई कोर्ट के सेवानिवृत जज या मुख्य न्यायाधीश होते हैं. उसके बाद हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील हो सकती है. घोषित कर दिया तो ये नहीं होगा कि अंतिम ठप्पा लग गया. चार स्तरों पर इसकी स्क्रूटिनी का प्रावधान है.”
आपको बता दें कि इस संशोधन विधेयक में पहली बार संस्थाओं के साथ-साथ व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित करने का प्रावधान किया गया है.