सोनभद्र हत्याकांड : खूनी जमीन दे रही घटना की गवाही
जमीन को लेकर बहस आज से नहीं कई सालों से चली आ रही है. 1952 में इसकी शुरुआत हो गई थी. लेकिन अब तक ये मसला सुलझ नहीं पाया है.
(कल आपने पहली कड़ी में पढ़ा था कि सोनभद्र जिले के जिस उभ्भा गांव में आदिवासियों की हत्या की गई वहां पहुंचना कितना मुश्किल है. इस हत्याकांड के बाद उभ्भा गांव में नई पुलिस चौकी बनाई गई है. वहां विकास के काम भी हो रहे हैं लेकिन आदिवासियों को जमीन का पट्टा देने पर कोई बात नहीं हो रही है. पढ़िए सोनभद्र हत्याकांड पर रिपोर्ट की दूसरी कड़ी)
उभ्भा गांव से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर वो जमीन है जिसको लेकर गोलीबारी हुई है. जमीन पर सूख चुके खून के धब्बे अब भी घटना की गवाही दे रहे हैं. आसपास पड़े कुछ हथियार संघर्ष की कहानी बयां कर रहे हैं. गांव में तबाही लाने वाले, कई मांग सूनी कर देने वाले, कई बच्चों को अनाथ कर देने वाले इस जमीन की क्या है कहानी, आइए जानते हैं गांव वालों की जुबानी-
गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि हमारे गांव से थोड़ा हटकर यह जमीन है. इस जमीन पर हम कई पीढ़ियों से खेती करते आ रहे हैं. इसमें से 112 बीघा जमीन प्रधान यज्ञदत्त (गुर्जर) ने खरीद ली है. वो उस मनहूस दिन (17 जुलाई) जमीन पर कब्जा करने आया था. हम लोगों को मालूम नहीं था. हमको लगा कि बातचीत करने आया होगा. लेकिन जब तक कुछ समझ आता, तब तक उन लोगों ने गोलियां चलानी शुरू कर दी. हमारे गांव के दस लोग टप -टप गिर गए.
घटनास्थल पर पड़े गोलियों के खोखे.
आज का नहीं, 68 साल पुराना है विवाद
गांव के बुजुर्ग अतिबल बताते हैं कि जमीन को लेकर बहस आज से नहीं कई सालों से चली आ रही है. 1952 में इसकी शुरुआत हो गई थी. तब एक आईएएस अधिकारी प्रभात कुमार मिश्र ने इस जमीन पर अपनी पत्नी के नाम से एक सोसायटी बना दी थी. अतिबल बताते हैं कि हम लोगों को भी कहा गया था कि हम भी उस सोसायटी के हिस्सा हैं, और हम अपनी जमीन पर खेती-बाड़ी करते रहेंगे.
राजा की थी जमीन
घोरावल के एक स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि यह जमीन मूलत: राजा बड़हर, आनंद ब्रह्म शाह की हुआ करती थी. जब जमींदारी प्रथा खत्म हुई तो इस जमीन को राजस्व अभिलेखों में बंजर घोषित कर दिया गया. इसे ग्राम सभा की संपत्ति करार दे दिया गया.
17 जुलाई को इसी जगह पर आदिवासियों की हत्या हुई थी.
स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि 1952 में आईएएस अधिकारी रहे प्रभात कुमार मिश्र ने आदर्श कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड ऑफ उभ्भा नाम के ट्रस्ट की स्थापना की. उन्होने इस ट्रस्ट में जितने भी पदाधिकारी रखे, वो उनके रिश्तेदार ही थे. हालांकि उन्होने गांव वालों को कह दिया था कि वो उस जमीन पर खेती करते रहें.
प्रधान यज्ञदत्त ने दो साल पहले खरीदी थी जमीन
एक तरफ जहां आदिवासी इस जमीन पर खेती करके अपनी आजीविका चला रहे थे. दूसरी तरफ सोसायटी की जमीन समय-समय पर दूसरे-दूसरे नाम पर ट्रांसफर होती रही. लेकिन इस विवाद में मोड़ तब आया जब दो साल पहले 112 बीघा जमीन प्रधान यज्ञदत्त को दो करोड़ रुपए में बेच दी गई.
गांव के बसंत लाल बताते हैं, 'जब हम लोगों को मालूम चला कि हमारी जमीन बेच दी गई है तो हम लोग डीएम के पास पहुंचे. डीएम ने जांच का आदेश दिया. तब से हम लोग केस लड़ रहे हैं.'
बसंतलाल कहते हैं, 'जो हमारी जमीन है, जहां हम शुरू से खेती-बाड़ी कर रहे हैं, वो जमीन किसी और की कैसे हो जाए. अगर हमारे पास जमीन नहीं होगी तो क्या होगा, हम कहां जाएंगे, कैसे कुछ खाएंगे.'
इतना कहते हुए बसंतलाल अपने सिर पर हाथ रख लेते हैं और दीवार की टेक लगाकर एक जगह बैठ जाते हैं.
बीते बुधवार (17 जुलाई) को हुए इस खूनी संघर्ष से न केवल सोनभद्र दहल गया बल्कि पूरा प्रदेश सकते में है. चारों ओर से कारवाई की मांग उठ रही है. जिसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिर्ज़ापुर मंडल के आयुक्त और वाराणसी परिक्षेत्र के एडीजी को घटना की जांच करने और 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था.
अधिकारियों और कर्मियों की लापरवाही, सस्पेंड
जांच रिपोर्ट में अधिकारियों और कर्मियों की लापरवाही सामने आई. इसमें कहा गया कि एसडीएम घोरावल रिपोर्ट को कई दिनों तक दबाए रहे. इसी तरह सीओ घोरावल के अलावा इंस्पेक्टर घोरावल ने भी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया. यही नहीं घोरावल थाने के बीट सब-इंस्पेक्टर और सिपाही ने भी उचित कार्रवाई नहीं की. इस मामले पर खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने सख्त एक्शन लेते हुए घोरावल के उप जिलाधिकारी वीपी तिवारी, सीओ अभिषेक सिंह, कोतवाल अरविंद मिश्रा व क्षेत्र के दरोगा सहित 4 सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया है.
वारदात के बाद तहकीकात करने पहुंची पुलिस (सभी फोटो: राजकुमार गुप्ता)
अब तक दस लोगों की मौत हो चुकी है और दो दर्जन लोगों का इलाज चल रहा है. दो लोगों का इलाज बीएचयू ट्रामा सेंटर (वाराणसी) में चल रहा है. जबकि अन्य लोगों का सोनभद्र जिले के अस्पताल में चल रहा है.
(कल पढ़िए: 17 जुलाई की कहानी चश्मदीद की जुबानी)
(रिजवाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं और वाराणसी में रहती हैं.)
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