सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कोरोना मरीजों के साथ हो रहा है अछूतों जैसा व्यवहार
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोरोना वायरस के जिन मरीजों के घर पोस्टर लगाए जा रहे हैं उनके साथ अछूतो जैसा व्यवहार हो रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 मरीजों के मकान के बाहर एक बार पोस्टर लग जाने पर उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है. अदालत का कहना है कि यह जमीनी स्तर पर एक अलग हकीकत बयान करता है. केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि हालांकि उसने यह नियम नहीं बनाया है. लेकिन इसकी कोविड-19 मरीजों को कलंकित करने की मंशा नहीं है. इसका लक्ष्य अन्य लोगों की सुरक्षा करना है.

जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह के पीठ ने कहा कि जमीनी स्तर की हकीकत कुछ अलग है. उनके मकानों पर ऐसा पोस्टर लगने के बाद उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कुछ राज्य संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर पर ऐसा कर रहे हैं.
सरकार की दलील
मेहता ने कहा कि कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए देशव्यापी दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर न्यायालय के आदेश पर केंद्र अपना जवाब दे चुका है. पीठ ने कहा, ''केंद्र द्वारा दाखिल जवाब को रिकॉर्ड पर आने दें, उसके बाद गुरुवार को हम इसपर सुनवाई करेंगे.''
शीर्ष अदालत ने 5 नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करे. न्यायालय ने कुश कालरा की अर्जी पर सुनवाई करते हुए केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी किए बिना जवाब मांगा था.
पीठ ने कहा था कि जब दिल्ली हाई कोर्ट में शहर की सरकार मरीजों के मकानों पर पोस्टर नहीं लगाने पर राजी हो सकती है तो इस संबंध में केंद्र सरकार पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी क्यों नहीं कर सकती.

दिल्ली की आप सरकार ने तीन नवंबर को दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि उसने अपने सभी जिलों को निर्देश दिया है कि वे कोविड-19 मरीजों या होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों के मकानों पर पास्टर ना लगाएं और पहले से लगे पोस्टरों को भी हटा लें. दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि उसके अधिकारियों को कोविड-19 मरीजों से जुड़ी जानकारी उनके पड़ोसियों, आरडब्ल्यूए या व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करने की भी अनुमति नहीं है.
कालरा ने हाई कोर्ट में दी गई अर्जी में कहा था कि कोविड-19 मरीज के नाम को आरडब्लूए और व्हाट्सऐप ग्रुप पर साझा करने से ना सिर्फ वे कलंकित हो रहे हैं बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उनपर जा रहा है. अर्जी में कहा गया है कि कोविड-19 मरीजों को निजता दी जानी चाहिए और उन्हें इस बीमारी से उबरने के लिए शांति और लोगों की घूरती हुई नजरों से दूर रखा जाना चाहिए.
याचिका में कहा गया है, लेकिन उन्हें दुनिया की नजरों के सामने लाया जा रहा है. उसमें यह भी दावा किया गया है कि सार्वजनिक रूप से अपमानित और कलंकित होने से बचने के लिए लोग अपनी कोविड-19 जांच कराने से हिचक रहे हैं, और यह सबकुछ मरीजों के मकानों पर पोस्टर चिपकाने का नतीजा है.
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