फिर से होगी एससी-एसटी आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
साल 2017 में हुए रिविज़न के मुताबिक क्रीमी लेयर की सीमा को बढ़ाकर परिवार की वार्षिक आय 8 लाख रुपए सालाना से अधिक होनी चाहिए. अभी तक यह सिद्धांत केवल ओबीसी आरक्षण पर लागू होता था
अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय की क्रीमी लेयर के आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर सुनवाई करेगा. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि क्रीमी लेयर की अवधारणा एससी- एसटी को दिए जाने वाले आरक्षण में लागू होगी. पिछले महीने 26 सितंबर को यह फैसला सुनाया गया था.
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि एसटी-एसटी आरक्षण से क्रीमी लेयर को बाहर करने के मामले को सात सदस्यीय बेंच को रेफर किया जाए.
यह फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि संवैधानिक कोर्ट किसी भी क्रीमी लेयर को दिए गए आरक्षण को रद्द करने के लिए सक्षम है. सुप्रीम कोर्ट फैसला देते हुए कहा था कि बराबरी के सिद्धांत पर यह फैसला सुनाया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट का सुझाव था कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन के लिए एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर को बाहर रखा जाना चाहिए, लेकिन इसका अंतिम निर्णय राज्यों के हाथ में होना चाहिए.
पहले किया था सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार से मना
इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि एससी-एसटी के लिए क्रीमी लेयर के मामले को ख़त्म किया जाए और सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करे लेकिन इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि नागराज मामले में फैसले के उस हिस्से पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है, जिसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये क्रीमी लेयर की कसौटी लागू की थी.
चीफ जस्टिस मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने कहा था कि एससी-एसटी में क्रीमी लेयर का मामला लागू होने से अनुच्छेद 341 तथा 342 के तहत राष्ट्रपति द्वारा जारी एससी-एसटी की सूची में छेड़छाड़ नहीं होती. इस सूची में जाति और उपजाति पहले की तरह बने रहते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए 2006 के संविधान पीठ के उस फैसले का भी ज़िक्र किया जिसमें तब के मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन ने कहा था कि क्रीमी लेयर सिद्धांत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर लागू नहीं होता है. यह सिद्धांत सिर्फ पिछड़े वर्ग की पहचान करने के लिये हैं और समानता के सिद्धांत के रूप में लागू नहीं होता है. लेकिन साथ ही यह भी कहा कि मौजूदा पीठ 2006 के फैसले से सहमत नहीं है.
साल 2017 में हुए रिविज़न के मुताबिक क्रीमी लेयर की सीमा को बढ़ाकर परिवार की वार्षिक आय 8 लाख रुपए सालाना से अधिक होनी चाहिए. अभी तक यह सिद्धांत केवल ओबीसी आरक्षण पर लागू होता था.
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