मोदी सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने पूरी तैयारी के साथ दिल्ली आए हैं किसान
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली आए किसान इस लड़ाई के लिए किस तरह से तैयार होकर आए बता रहे हैं अमित भारद्वाज.
दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार की ओर से किए गए हर प्रयास को विफल कर किसान दिल्ली की सीमा पर पहुंच गए हैं. इस आंदोलन के हर मोर्चे पर बीजेपी को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है. किसानों को रोकने के लिए पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों की तैनाती की काफी आलोचना हुई. सरकार के इस कदम ने किसानों के दिल्ली पहुंचने के संकल्प को और मजबूत किया. रास्ते में खड़े किए गए कंक्रीट के बैरिकेड्स और बालू भरे ट्रक ने उन्हें आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया है.

हरियाणा में किसानों के प्रतिरोध को कुचलने के लिए गुरिल्ला युद्ध की तरकीबें आजमाई गईं. नेशनल हाइवे पर गड्ढे खोदे गए. कंक्रीट के स्लैब सड़कों पर लगाए गए. लेकिन किसानों के दृढ़ संकल्प, उनकी नाराजगी और एकता ने बीजेपी सरकार की हर रणनीति को बौना साबित कर दिया.
किसानों का गुस्सा
सुखविंदर सिंह 19 साल के हैं. वो 12वीं में पढ़ते हैं. इन दिनों उन्हें अपनी पढ़ाई में मशगूल होना चाहिए. लेकिन पंजाब के मोगा जिले के रहने वाले सुखविंदर 'दिल्ली चलो' आंदोलन में शामिल हैं. सुखविंदर ने इस यात्रा में किसानों को रोकने के लिए उठाए गए हर कदम को देखा है. लेकिन सुखविंदर और उनके जैसे हजारों लोगों ने किसानों को मोदी सरकार के खिलाफ किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए उठाए गए हर कोशिश को नाकाम कर दिया.
सुखविंदर कहते हैं, ''हमारे गांव के हर परिवार का एक व्यक्ति इस आंदोलन में शामिल है. हम पूरी तरह से दृढ़संकल्पित हैं और पूरी तैयारी के साथ आए हैं.''

वो कहते हैं, ''हमारे जत्थे में पांच ट्रैक्टर हैं. हर ट्रैक्टर में 20-22 लोग हैं. मोदी सरकार के खिलाफ इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए हमारे गांव से 100 से अधिक लोग आए हैं.''
सुखविंदर कहते हैं, ''किसानों के साथ केवल किसान खड़े हैं. इसके अलावा हमारे साथ कोई और नहीं है. हमारे साथ न तो कैप्टन (अमरिंदर सिंह) खड़े हैं न बादल (अकाली दल). हमें किसी राजनीतिक दल का समर्थन हासिल नहीं है. ये केवल किसान ही हैं जो एक दूसरे के साथ खड़े हैं और प्रशासन की ओर से हमें रोकने के लिए की गईं कोशिशों से लड़ रहे हैं.''
पंजाब के किसानों का आंदोलन
'एशियाविल' सितंबर से ही पंजाब और हरियाणों के इन किसानों के आंदोलन को कवर कर रहा है. इस दौरान मेरी मुलाकात पंजाब के पटियाला, मोगा, गुरदासपुर, तरन तारन, कपूरथला, अमृतसर, मनस और संगरूर जैसे जिलों से आए किसानों से हुई. ये किसान अपने ट्रैक्टर-ट्राली, कार, जीप और मोटरसाइकिलों पर सवार होकर आए हैं. वहीं कुछ किसान अपनी लग्जरी कारें भी लेकर आए हैं.

पंजाब के किसानों ने हरियाणा में घुसने के लिए अंबाला में लगाए गए बैरिकेड्स को तोड़ दिया था. इसके बाद हरियाणा के किसान भी उनके साथ हो लिए.
हरियाणा के किसान
पानिपत पुलिस लाइन के पास पुलिस ने किसानों को रोकने की भरपूर तैयारी की थी. वहां बुजुर्ग किसानों का एक समूह आगे बढने के लिए अधिकारियों से बातचीत करने में मशगूल था. एक किसान पुलिस अधिकारी से कहता है, '' प्रदर्शन करना हमारा संवैधानिक अधिकार है. आप हमें हरियाणा में प्रवेश करने से नहीं रोक सकते हैं. अगर आप जमींदार (किसान) के बेटे हैं, तो हमें जाने दें. अगर मोदी सरकार के कृषि कानूनों की वजह से एमसपी की व्यवस्था खत्म हो गई तो पंजाब-हरियाणा के संपन्न किसान बिहार के किसानों की तरह गरीब हो जाएंगे.''

जब बुजुर्ग किसान पुलिस को समझा पाने में नाकाम हो गए तो नौजवानों से मोर्चा संभाल लिया. उन्होंने पुलिस के हर इंतजाम को ध्वस्त कर दिया. इस दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही.
पंजाब से चले ये किसान खाने-पीने का पूरा इंतजाम कर निकले हैं. वो जगह-जगह प्रदर्शनकारियों के लिए लंगर लगा रहे हैं. पंजाब के पटियाला के मंडौली गांव निवासी बलजीत सिंह की उम्र करीब 65 साल है. वो बताते हैं, ''उनके जत्थे में 20-25 किसान शामिल हैं. दिल्ली चलो आंदोलन में विभिन्न तरह के खर्चों के लिए सबने 70 हजार रुपये जुटाए हैं. इसके अलावा वो लोग अपने साथ राशन और गैस सिलेंडर भी लेकर आए हैं.''

बलजीत कहते हैं, '' हम अपना खाना बनाते हैं. हमारे लिए लंगर भी खुला रहता है. हम अपने साथ इतना राशन लेकर आए हैं, जो महीनों चलेगा. हम अपने लिए खाना बनाते हैं, लेकिन हमारा खाना प्रदर्शन में शामिल उन्य लोगों के लिए भी उपलब्ध है.''
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