अयोध्या में मस्जिद बना रहे फाउंडेशन ने कहा, बाबरी मस्जिद के बदले में नहीं मिली है जमीन
अयोध्या के धन्नीपुर में बन रही मस्जिद पर एआईएमपीएलबी के सदस्य जफरयाब जिलानी की ओर से उठाई गई पाबंदियों पर इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने कहा है कि जिस जमीन पर मस्जिद बनेगी वह बदले में नहीं मिली है.
राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या के धन्नीपुर गांव में बन रही मस्जिद पर राजनीति शुरू हो गई है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के सदस्य जफरयाब जिलानी ने मस्जिद के निर्माण पर आपत्ति जताई है. वहीं मस्जिद निर्माण के लिए बनाए गए इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने जिलानी के आरोपों को खारिज कर दिया है.

एआईएमपीएलबी के सदस्य जफरयाब जिलानी ने बुधवार को कहा कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में प्रस्तावित मस्जिद वक्फ अधिनियम के खिलाफ और शरियत कानूनों के मुताबिक अवैध है.
क्या लगाए हैं आरोप
जफरयाब जिलानी ने कहा, ''वक्फ अधिनियम के तहत मस्जिद या मस्जिद की जमीन किसी दूसरी चीज के बदले में नहीं ली जा सकती है. अयोध्या में प्रस्तावित मस्जिद इस कानून का उल्लंघन करती है. उनका कहना है कि यह मस्जिद शरियत कानून का उल्लंघन करती है क्योंकि वक्फ अधिनियम शरियत पर आधारित है.
जिलानी बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक भी हैं. उन्होंने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद वाले मुकदमे में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील भी थे.
जिलानी के आरोपों पर इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के प्रवक्ता अतहर हुसैन ने 'एशियाविल हिंदी' से कहा, '' अगर उनका फाउंडेशन कोई काम इस देश के किसी कानून के खिलाफ कर रहा है तो जिलानी साहब एक योग्य और वरिष्ठ वकील हैं, उन्हें उचित फोरम में जाकर हमारे खिलाफ कार्रवाई की मांग करनी चाहिए.''
हुसैन ने कहा कि एक वरिष्ठ वकील को इस मामले में इस तरह से बयानबाजी करना ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि यह वही बात हुई कि कोई मरीज किसी डॉक्टर के पास जाए और डॉक्टर मरीज को उसका मर्ज बता कर वापस भेज दे. लेकिन उसका इलाज न करे.

एआईएमपीएलबी के एक अन्य कार्यकारी सदस्य एसक्यूआर इलियास ने का कहना है, ''हमनें मस्जिद के लिए किसी और स्थान पर जमीन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. हम मालिकाना हक का मुकदमा हार गए और इसलिए हमें मस्जिद के लिए जमीन नहीं चाहिए.''
इलियास ने आरोप लगाया कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड सरकार के दबाव में काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि मुसलमानों ने हालांकि मुआवजे के तौर पर धन्नीपुर में दी गई इस जमीन को ठुकरा दिया है. उनका कहना है कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से गठित ट्रस्ट की ओर से बनाई जा रही मस्जिद केवल प्रतीकात्मक है. उनका कहना था कि यह मुद्दा एआईएमपीएलबी की कार्यकारी समिति की 13 अक्तूबर को हुई बैठक में सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने उठाया था. बैठक में सभी सदस्यों की राय थी कि वक्फ अधिनियम में मस्जिद के लिए जमीन की अदला-बदली की इजाजत नहीं है और इसे शरियत कानून में अवैध माना गया है.
इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन का कहना है
इन आरोपों पर अतहर हुसैन ने कहा कि राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहीं भी बाबरी मस्जिद के बदले में जमीन देने का जिक्र नहीं है. वो कहते हैं कि फैसले के राहत और निर्देश वाले खंड के पैरा 3 के क्लाज B, सबक्लाज (lll) में साफ-साफ लिखा है कि हम अयोध्या जिले के प्रमुख जगह पर 5 एकड़ जमीन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को देते हैं. बोर्ड जिस तरह से चाहे इस जमीन पर मस्जिद और अन्य सुविधाएं बनाए.

हुसैन ने कहा कि इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने 9 लाख 29 हजार 400 रुपये की स्टैंप ड्यूटी देकर यह जमीन अपने नाम कराई है. इस जमीन पर एक मस्जिद, एक अस्पताल, सामुदायिक रसोई और म्यूजियम का निर्माण कराया जा रहा है. उन्होंने कहा कि शरियत के मुताबिक यह जमीन बिल्कुल स्वतंत्र है और इसे बदले में हासिल नहीं किया गया है. वो कहते हैं कि अगर जमीन बदले में दी गई होती तो सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में लिखता कि यह जमीन बाबरी मस्जिद के बदले में दी जा रही है.
अयोध्या के धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ जमीन पर बनने वाली मस्जिद और अस्पताल की डिजाइन को शनिवार को लखनऊ में इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (आईआईसीएफ) के कार्यालय में पेश किया गया था.
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