उत्तर प्रदेश सरकार का धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश, कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना
उत्तर प्रदेश सरकार का 'लव जिहाद' विरोधी अध्यादेश क्या दलितों को दलित बनाए रखने के लिए लाया गया है.
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार बीते हफ्ते 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020' लाई थी, उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इसके साथ ही उत्तराखंड की बीजेपी सरकार के 'फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2018' को भी चुनौती दी गई है. याचिका अधिवक्ता विशाल ठाकरे और अभय सिंह यादव के साथ कानून के शोधकर्ता प्रणवेश ने यह याचिका दायर की है. याचिकाकर्ताओं ने इन दोनों को संविधान विरोधी बताया है. दलित ने तबके में भी इस कानून को लेकर कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं.

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यूपी सरकार का अध्यादेश संविधान के मूल ढांचे को बिगाड़ने वाला है. उनका तर्क है कि क्या संसद के पास संविधान के तीसरे भाग के तहत निहित मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति है. उनका यह भी कहना है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य सरकार के अध्यादेश विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के खिलाफ है. याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से दोनों अध्यादेशों को शून्य घोषित करने की मांग की है.
शादी के लिए धर्मांतरण
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 28 नवंबर को उत्तर प्रदेश विधि विरूद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 को मंजूरी दी थी. इस अध्यादेश में जबरन या धोखे से धर्मांतरण कराए जाने और शादी करने पर दस साल की कैद और विभिन्न श्रेणी में 50 हजार रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है.
योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से पारित अध्यादेश में नाबालिग और अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी-एसटी) की लड़कियों और महिलाओं का धर्म परिवर्तन कराने पर कठोर दंड और अधिक आर्थिक जुर्माने का प्रावधान है.

यूपी सरकार के अध्यादेश में धर्म परिवर्तन कराने का दोषी पाए जाने पर सजा का अलग-अलग प्रावधान है. सामान्य वर्ग के लोगों को जबरन धर्म परिवर्तन कराने जाने पर कम और दलितों का जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने का दोषी पाए जाने पर अधिक सजा और जुर्माने का प्रावधान है.
लव जिहाद की परिभाषा
योगी सरकार के इस अध्यादेश के सवाल पर 'फारवर्ड प्रेस' नाम की पत्रिका के संपादक नवल किशोर कहते हैं, ''मैं यह मानता हूं कि उत्तर प्रदेश सरकार का हालिया अध्यादेश कोई नई परिघटना नहीं है. हुआ यह है कि वे इसे अब आधिकारिक स्वरूप देने में कामयाब हुए हैं. हालांकि अभी भी यह अध्यादेश ही है. यदि सरकार इसे विधेयक के रूप में विधानसभा में लाती तो मुमकिन था कि इसके अन्य पहलुओं पर चर्चा होती. मसलन, यह लव जिहाद की परिभाषा क्या है. मेरी तो स्पष्ट मान्यता है कि इस अध्यादेश के पीछे संघ की यह मानसिकता काम कर रही है कि कैसे दलित और पिछड़े समाज के लोगों को हिन्दुत्व की बेड़ियों में जकड़कर रखा जाए.''
वो कहते हैं, ''अभी जो सरकार ने तय किया है उसके मुताबिक यदि किसी ने अंतरधार्मिक शादी की तो उसे 10 साल की जेल और 50 हजार रुपये का जुर्माना देना पड़ेगा. इतने कठोर अध्यादेश जिसे बिना सदन की सहमति के कानून बना दिया गया है, का असली मकसद दलितों को दलित बनाए रखना है.''

वहीं लखनऊ में रहने वाले दलित चिंतक डॉक्टर रविकांत चंदन कहते हैं, '' देखिए योगी सरकार ने इस अध्यादेश में एससी-एसटी के लिए अलग से प्रावधान किए गए हैं. इससे सरकार यह दिखाना चाहती है कि वो दलित हितैषी सरकार है. वहीं बीजेपी के राज्य सभा सांसद बृजलाल ने कहा है कि दलित लड़कियों के साथ लव जिहाद हो रहा है. लेकिन इससे संबंधित डेटा न तो गृह मंत्रालय के पास है और न ही लव जिहाद की जांच के लिए गठित एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में इस तरह का कोई डेटा दिया है. अभी तक दलित लड़की का कोई मामला भी सामने भी नहीं आया है. लेकिन इसे दिखाया ऐसा जा रहा है कि मुसलमान लड़के दलित लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं. जबकि इसमें सच्चाई रत्तीभर भी नहीं है.''
दरअसल धर्म अब एक राजनीतिक हथियार बन गया है. इसके जरिए वोट बैंक बनाने की कोशिश की जाती है. वहीं कई बारी यह प्रेशर बनाने का हथियार नजर आता है. हाल के दिनों में देखा यह गया है कि दलित अत्याचार की जब भी कोई बड़ी घटना होती है तो दलित हिंदू धर्म त्याग कर या तो बौद्ध बन जाते हैं या इस्लाम अपना लेते हैं. बौद्ध बनने वालों की संख्या इस्लाम अपनाने वालों से ज्यादा है. वहीं ईसाई मिशनरियां अपने सेवा के बल पर दलितों और आदिवासियों को ईसाई बनाने के काम में पहले से ही लगी हुई हैं.
हाथरस कांड
नवल किशोर कहते हैं, ''अभी हाल ही में वाल्मीकि जयंती मनाई गई. इसके लिए राज्य सरकार ने सरकारी खजाने से पैसे खर्च किए. यह इसलिए किया गया ताकि वाल्मीकि समाज के लोग हिंदू धर्म का हिस्सा बने रहें. अभी हाल ही में हाथरस कांड के बाद, गाज़ियाबाद में कुछ दलितों द्वारा हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाने का समाचार सामने आया था. इससे पहले भी ऐसी घटनाएं हुई हैं. आरएसएस हिंदू धर्म छोड़ चुके लोगों की घर वापसी का कार्यक्रम भी सालों से चला रहा है.''

डॉक्टर चंदन कहते हैं, '' देखिए हाल के दिनों में यह सामने आया है कि दलित और मुसलमान एक हो रहे हैं. दलितों के सवाल पर मुसलमान साथ आ रहे हैं और मुसलमानों के सवाल पर दलित खड़े हो रहे हैं. इसे आप भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद रावण के मामले में भी देख सकते हैं. उनके समर्थकों में मुसलमान बड़ी संख्या में हैं. बीजेपी इसी साझा समझ को तोड़ने की कोशिश कर रही है. उसे इससे अपने लिए खतरा नजर आ रहा है.''
वहीं नवल किशोर कहते हैं, ''आप अध्यादेश को देखिए, उसमें किसी खास धर्म का उल्लेख नहीं है. इसका मतलब यह भी है कि दलित यदि हिंदू धर्म की बेड़ियों को तोड़ बौद्ध धर्म भी अपनाना चाहें तो उनके लिए मुश्किलें होंगी. ईसाईयत को लेकर तो संघ पहले से ही रार करता रहा है. इसलिए मैं यह मानता हूं कि उत्तर प्रदेश सरकार का अध्यादेश न केवल संविधान के विरुद्ध है, बल्कि एक वर्ग विशेष के आध्यात्मिक विकास को अवरुद्ध करने वाली फासीवादी फरमान है.''
योगी आदित्यनाथ सरकार जिस जल्दबाजी में इस अध्यादेश को लेकर आई, उसको लेकर तमाम तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं. अब आने वाला समय ही बताएगा कि ये आशंकाएं सही हैं या निर्मूल.