बिहार में ‘एंटी-कोरोना’ कार्ड Virus Shut Out की बेतहाशा बिक्री, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठगी का धंधा बुलंद
कंपनी का दावा है कि इसके भीतर क्लोरीन डाइऑक्साइड है और ये ‘इनफेक्शन फैलने से रोकने में बेहद कारगर’ है. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ‘वायरस शट आउट’ कार्ड के उतरने के बाद काफी विवाद हुआ.
सहरसा के बनगांव में फीते से बंधा एक पैकेट गले में पहचान पत्र की तरह लटकाकर घूमते एक व्यक्ति पर जब नज़र पड़ी, तो मेरी उत्सुकता बढ़ गई. इससे पहले अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इस कार्ड के बाबत कई रिपोर्ट्स सामने आ चुकी थीं, लेकिन बिहार के किसी गांव में पहली बार इस पर मेरी नज़र पड़ी थी. मैंने कार्ड के बाबत पूछा तो रोशन झा की तरफ़ से जवाब मिला, “ये कोरोना भगाने वाला कार्ड है. एक महीने तक कोरोना मेरे आस-पास नहीं फटकेगा.”
रोशन झा के घर के बगल में ही बिहार के इस सबसे बड़े गांव में कोरोना का पहला चर्चित मामला सामने आया था. इसके बाद ‘एहतियात’ के तौर पर उसने 100 रुपए में ये कार्ड ख़रीद लिया. अगले चंद घंटों में कम से कम आधा दर्जन लोग और मिले, जिन्होंने ‘कोरोना से सुरक्षा’ के लिए वही कार्ड पहन रखा था.
इस गांव में जब कोरोनावायरस का एक भी मामला सामने नहीं आया था तो कुछ युवा जगह-जगह घूमकर सैनिटाइज़ेशन के काम में जुटे रहते थे. इन ‘कोरोना वारियर्स’ ने लॉकडाउन के ठीक बाद ज़रूरतमंद परिवारों तक राशन, साबुन, मास्क और सैनिटाइजर जैसे कई ज़रूरी सामान भी पहुंचाए थे.

अब आधिकारिक तौर पर गांव में कोरोना के दर्जन भर से ज़्यादा मामले सामने आ गए और सरकार ने पंयायत-1 के तीन वार्डों को कंटेनमेंट ज़ोन तक क़रार दे दिया. ऐसे हालात में ‘फ़ाइट अगेंस्ट कोरोना’ टीम से जुड़े कई सदस्य भी इस कार्ड को पहनकर ख़ुद को ‘कोरोनावायरस से बचाने’ में जुट गए.
देखते-देखते बढ़ गई बिक्री
टीम से जुड़े उत्पल कहते हैं, “कृष्ण जन्माष्टमी मेले में ये बिक रहा था. वैसे तो 100 रुपए का एक दे रहा था, लेकिन हम लोगों ने 200 रुपए में तीन ख़रीद लिए.” मेले में इसकी काफी बिक्री हुई.
उत्पल के मुताबिक़, “हम लोग मास्क ख़रीदने गए थे तो दुक़ानदार ने इस नए आइटम के बारे में बताया. हमें कहा गया कि एक महीने तक कोरोना हमसे दूर रहेगा तो हमने फटाक से इसे ख़रीद लिया.”

उत्पल और उनके दो साथी राकेश रंजन और रोशन ने तीन कार्डों का बंटवारा किया. देखते-देखते गांव में इस कार्ड की मांग काफी बढ़ गई और इसके कई विक्रेता बन गए. शुरुआती दौर में कार्ड की जानकारी कम लोगों को थी, तो एक विक्रेता ने प्रचार की ख़ातिर सेतु ड्रेसेस के विष्णुकांत झा को एक कार्ड मुफ़्त में दे दिया.
गांव में कपड़े की ये सबसे बड़ी दुक़ान है और यहां ख़रीददारी के लिए रोज़ाना बड़ी तादाद में लोग आते हैं. सेतु ड्रेसेस में कैश काउंटर के पीछे दीवार पर जब इस कार्ड के मैंने लटका देखा तब ये कहानी पता चली.
कार्ड के भीतर क्या है?
ज़्यादातर लोगों को नहीं मालूम है कि इस कार्ड के अंदर में है क्या. सबने एक-दूसरे के मुंह से इस कार्ड के बाबत सुनकर इसे ख़रीदा. कार्ड को फाड़कर देखने के मेरे अनुरोध को सेतु ड्रेसेस के मालिक रुपेश झा ने स्वीकार कर लिया. कैंची से काटने के बाद उसके भीतर एक और पुड़िया निकली, जिसमें सफ़ेद चूर्ण भरा हुआ था.

ये गंधहीन और खुरदरा था. छूने पर अनाज के पाउडर या फिर सफ़ेदी पोत दिए गए रेत जैसा दिख रहा था. फाड़ने के बाद रुपेश झा ने कहा, “यही लटकाकर सब घूम रहे हैं! इसमें तो 10 ग्राम धूल भर दी गई है.”
कई लोगों ने मज़ाक में कहा कि सहरसा के कुछ शातिर उद्यमियों ने ‘आपदा में अवसर’ तलाशकर ये बेचना शुरू किया है. लेकिन, मामला इतना सपाट नहीं है और न ही सहरसा तक सीमित. कार्ड का इस्तेमाल करने वाले राकेश रंजन के मुताबिक़, “हम लोगों ने पप्पू यादव (जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष) को पहली बार इसे पहने देखा. बिहार में कई नेता इसे पहनकर घूम रहे हैं.”
राजधानी पटना में भी इस कार्ड की ख़ूब बिक्री हो रही है. इस कार्ड का नाम है: वायरस शट आउट.
क्या है वायरस शट आउट?
नीले रंग के पैकेट में बंद इस कार्ड के बारे में दावा किया जाता है कि ये कोरोनावायरस के ख़िलाफ़ कवच मुहैया कराता है. दुनिया भर के वैज्ञानिकों का दावा है कि ये वायरस खांसने, छींकने या फिर सांस लेने के दौरान हवा में उड़ने वाले कण के ज़रिए एक-दूसरे में फैलता है. ऐसे में ‘वायरस शट आउट’ का दावा अब तक इस दिशा में हुए वैज्ञानिक शोधों को ठेंगा दिखाता नज़र आता है. ज़ाहिर है उसके दावे में कोई दम नहीं है और ये पूरी तरह झूठ है.
लेकिन, उससे भी मज़ेदार ये है कि इसका प्रसार न तो बिहार के एक ज़िले तक सीमित है, न बिहार तक और न ही भारत तक. इस कार्ड को पूरी दुनिया में बेचा गया. जापान की कंपनी टोआमिट ने शुरुआती दिनों में ही इस उत्पाद को वैश्विक बाज़ार में उतार दिया था.

कंपनी का दावा है कि इसके भीतर क्लोरीन डाइऑक्साइड है और ये ‘इनफेक्शन फैलने से रोकने में बेहद कारगर’ है. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ‘वायरस शट आउट’ कार्ड के उतरने के बाद काफी विवाद हुआ. वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इससे SARS-CoV-2 जैसे वायरस को मारने की बात कहना प्रपंच है. ये भी कहा गया कि क्लोरीन डाइऑक्साइड लोगों को और ख़तरा पहुंचा सकता है.
कई देशों में प्रतिबंधित
मार्च महीने तक ये जापानी कार्ड अमेरिका, यूरोप, थाइलैंड, वियतनाम और भारत समेत दुनिया के कई मुल्कों में अपनी पहुंच बना चुका था. उसी महीने में अमेरिका के पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी (EPA) ने इसकी बिक्री पर पाबंदी लगा दी. वियतनाम, थाइलैंड और फिलीपींस में भी इस पर रोक है.
लेकिन, ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स पर इसकी बिक्री बदस्तूर जारी रही. जून महीने में EPA ने अमेज़न और eBay को इसकी बिक्री रोकने का आदेश दिया. उसके बावजूद कई ख़बरों से पता चलता है कि न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन जैसे शहरों में लोग इसे पहनकर अब भी घूम रहे हैं.
फ़ेसबुक जैसे प्लैटफॉर्म पर आज भी दुनिया भर में इसे ख़रीदने का विकल्प खुला हुआ है. ‘वायरस शट आउट टैग’ नामक पेज में दावा किया गया है, “ये न तो दवा है और न ही कोविड-19 की वैक्सीन. ये सिर्फ़ हवा में रहने वाले वैक्टीरिया और वायरस से बचने का अतिरिक्त तरीक़ा है ताकि आप शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक तौर पर स्वस्थ रह सकें.” इस पेज़ ने ख़ुद को वायरस शट आउट का 'ऑफ़िशियल पेज़' घोषित कर रखा है.

बीबीसी की ख़बर के मुताबिक़ रूस के संसद के कुछ सदस्य भी इसे पहनकर घूमते देखे गए. अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भी इस कार्ड को लाखों लोगों ने ख़रीदा. जून महीने में अमेरिकी सीमा अधिकारियों ने अनधिकृत PPE किट का एक शिपमेंट ज़ब्त किया था, जिसमें वायरस शट आउट के भी पैकेट्स शामिल थे.
अमेरिका में भले ही इस पर पाबंदी लगा दी गई हो और अमेज़न वहां भले ही इसे न बेच रहा हो, लेकिन अमेज़न इंडिया पर इसे अब भी आप ऑर्डर कर सकते हैं. इसकी MRP 499 रुपए दर्ज है और 70 फ़ीसदी छूट के साथ 149 रुपए में ये अमेज़न पर उपलब्ध है. भारत में इस पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है.