मध्य प्रदेश की सांप्रदायिक हिंसा पर कांग्रेस की चुप्पी से उठ रहे हैं हजारों सवाल
बीते साल के अंतिम दिनों में मध्य प्रदेश के उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर कांग्रेस की चुप्पी कई तरह के सवाल खड़े कर रही है. आइए तलाशते हैं कांग्रेस की चु्प्पी पर उठ रहे कुछ सवालों के जवाब.
मध्य प्रदेश का मालवा इन दिनों सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में है. महाकाल के शहर के इंदौर में क्रिसमस के दिन सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी. इसके बाद राज्य की आर्थिक राजधानी इंदौर के पास के एक गांव और मंदसौर के एक गांव में 29 दिसंबर को हिंसा भड़क उठी थी. तीनों जगह जमकर हिंसा हुई. इस दौरान एक मस्जिद का नुकसान पहुंचाया गया और वहां भगवा झंडा लहराया गया. कुछ घरों में लूटपाट, सामान और गाड़ियों में आग लगाने की भी घटनाएं हुईं. इस दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही. बाद में कार्रवाई के नाम पर अधिकतर मुसलमान ही गिरफ्तार किए गए. मंदसौर की हिंसा में कुछ हिंदू भी गिरफ्तार किए गए हैं. पुलिस ने कुछ लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कार्रवाई की है. जिन पर एनएसए लगा है, वो सभी मुसलमान हैं. इस दौरान प्रशासन ने अतिक्रमण के नाम पर 15-16 घरों को ढहा दिया है. ये सभी घर मुसलमानों के हैं.

मध्य प्रदेश की हिंसा को लेकर भोपाल से लेकर दिल्ली तक एक अजीब सी खामोशी पसरी हुई है. कोई कुछ बोल नहीं रहा है. अगर कोई कुछ बोल रहा है, तो वह औपचारिकता से अधिक नजर नहीं आ रहा है. कुछ मुस्लिम संगठन ही सक्रिय नजर आ रहे हैं.
मध्य प्रदेश दो दलों वाला राज्य है. बीजेपी सत्ता में है और कांग्रेस विपक्ष में. कांग्रेस ने इस मामले में अबतक चुप्पी साधी हुई है.
सवालों के घेरे में है कांग्रेस की चुप्पी
उज्जैन, मंदसौर और इंदौर की सांप्रदायिक हिंसा पर कांग्रेस में पसरी चुप्पी के सवाल पर भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार ऋषि पांडेय कहते हैं कि कांग्रेस ने खानापूर्ति करते हुए एक कमेटी बना दी. जो जांच करने गई थी. उसके बाद उसने कुछ नहीं किया. वो मरी-मराई सी स्थिति में है.
पांडेय एक उदाहरण के जरिए प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बयान करते हैं. वो बताते हैं कि पिछले दिनों कांग्रेस ने किसानों के मुद्दे पर विधानसभा घेरने का कार्यक्रम बनाया था. लेकिन विधानसभा के कर्मचारियों के कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद विधानसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई. इसे देख कांग्रेस ने विधानसभा का घेराव भी स्थगित कर दिया. वो कहते हैं कि अगर कांग्रेस चाहती तो विधानसभा घेराव का एक बड़ा कार्यक्रम कर सकती थी. लेकिन उसके विधायकों ने खिलौने वाला ट्रैक्टर लेकर गांधी प्रतिमा तक मार्च कर प्रदर्शन का दिखावा कर दिया. वो कहते हैं कि यह कांग्रेस के लिए हास्यास्पद स्थिति है.
पांडेय कहते हैं कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ की छवि लड़ाकू नेता की नहीं है. वो हर जगह एडजेस्ट कर अपना काम चला लेते हैं. उनके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मधुर संबंध हैं, नरेंद्र मोदी से और अमित शाह से भी उनके मधुर संबंध हैं, या कहें कि सबसे मधुर संबंध हैं. वो कहते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 15 साल विपक्ष में रहने का मौका मिला. लेकिन उसमें जो लड़ाकू प्रवृत्ति आनी चाहिए वो नहीं है. उसमें लड़ाकूपन नहीं है.
ऋषि पांडेय एक और समस्या की ओर इशारा करते हैं, वो यह है कि कमल नाथ के भांजे रतुल पुरी को बीते साल ईडी ने गिरफ्तार किया था. वहीं आयकर विभाग के छापे में एक डायरी मिली है. इसमें कई नेताओं और कुछ अधिकारियों के नाम हैं. इस मामले में कार्रवाई की इजाजत मध्य प्रदेश सरकार ने लोकायुक्त को दे दी है. वह कहते हैं कि हो सकता है कि कार्रवाई का भय भी कांग्रेस की चुप्पी का एक कारण हो.

बीते साल नवंबर में हुए विधानसभा के उपचुनाव के बाद 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश की विधानसभा की दलीय स्थिति इस प्रकार है, बीजेपी-126, कांग्रेस-96, बसपा-2, सपा-1, निर्दलीय-4 और एक सीट रिक्त है. तो सवाल यह उठता है कि जिस पार्टी के राज्य में 96 विधायक हों, वह इतनी लाचार क्यों नजर आ रही है. हमने इस सवाल को भोपाल में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार एनडी शर्मा से पूछा.
कांग्रेस का संकट
वो कहते हैं, ''देखिए मध्य प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व का आभाव है. कोई इनिशियेटिव लेने वाला नहीं है. कमल नाथ को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बने दो-ढाई साल हो गए. लेकिन आजतक उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का पुनर्गठन नहीं किया है. वो अपने दो-तीन आदमियों को बैठा कर मध्य प्रदेश कांग्रेस को चला रहे हैं. कमल नाथ जब मुख्यमंत्री थे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह ने उनसे लड़-झगड़ कर अपने आदमियों को मंत्रीमंडल में शामिल करवा लिया. लेकिन प्रदेश में जो निगम या आयोग आदि हैं, जिनमें अपने नेताओं को हर सरकार फिट करती है, उसके लिए कांग्रेस के नेता दौड़-भाग करते रह गए. लेकिन कमल नाथ ने किसी को नियुक्त नहीं किया. वो कहते हैं कि कमल नाथ ने अगर पार्टी की प्रदेश यूनिट का पुनर्गठन किया होता या लोगों को निगमों और आयोगों में बिठाया होता तो कांग्रेस नेताओं में उत्साह नजर आता. लेकिन कमल नाथ ने ऐसा किया ही नहीं. इसलिए कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह नहीं है.''
शर्मा कहते हैं कि जबसे कांग्रेस की सरकार गिरी है, उसके बाद से ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी कमल नाथ ही हैं और विधानसभा में विपक्ष के नेता भी. लेकिन वो कर क्या रहे हैं यह किसी को भी समझ में नहीं आ रहा है. वो कहते हैं कि कांग्रेस में नेतृत्व का अभाव केंद्रीय कमेटी से लेकर प्रदेश कमेटी तक में है.
एनडी शर्मा बताते हैं कि जब कमल नाथ मुख्यमंत्री बने तो उनकी कैबिनेट में 28 कैबिनेट मंत्री थे. ये सभी दिग्विजय और सिंधिया खेमे के थे. इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस के पुराने और कई बार मंत्री रह चुके नेता मंत्रीमंडल में जगह न मिलने से नाराज हो गए. वो पार्टी में ही निष्क्रिय हो गए. वो कहते हैं कि कांग्रेस में आज जो नेता सक्रिय नजर आते हैं, वो अपनी निजी हैसियत से ही सक्रिय है, चाहें वो पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह हो या राजस्थान में अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल.

मध्य प्रदेश में पिछले कुछ महीने में हुई घटनाओं के सवाल पर एनडी शर्मा कहते हैं कि बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद जैसे संघ परिवार के सगंठनों का मनोबल आजकल काफी ऊंचा है. वो हल्ला-हंगामा करने का काई भी अवसर छोड़ते नहीं हैं. शर्मा को लगता है कि मालवा में जिस तरह की हिंसा हुई है, वो अभी और बढ़ेगी. उन्होंने आशंका जताई कि उस तरह की हिंसा प्रदेश के अन्य इलाकों में भी हो सकती है.
Why should @myogiadityanath have all the fun? MP Govt is on the footsteps of UP and announced to frame laws against stone pelting & hurting public properties.@ChouhanShivraj said to Sunday after cases of stonepelting reported in 3 districts. during communal clash.@newsclickin pic.twitter.com/CM5ELOYwPv
— Kashif Kakvi (@KashifKakvi) January 3, 2021
मालवा के शहरों में हुई हिंसा के सवाल पर ऋषि पांडेय कहते हैं कि दरअसल हिंसा की शुरूआत अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए चंदा लेने गई टीम पर हुए पथराव के साथ हुई. वो कहते हैं कि सरकार इस पर कड़ा एक्शन ले रही है. मुख्यमंत्री ने अभी कल ही कहा है कि किसी को बख्शेंगे नहीं. जिस बस्ती से पथराव हुआ उसे हटाने के टेंडर भी हो गया है, यह खबर मैंने आज ही पढ़ी है. वो कहते हैं कि सरकार की कोशिश है कि कश्मीर की तरह मध्य प्रदेश में पत्थरबाज गैंग न जुटने पाए. सरकार इस काम में जुटी हुई है.
मुसलमानों के टूटते घर
जब मैंने पांडेय से यह पूछा कि मुसलमानों के घर किस कानून के तहत तोड़े जा रहे हैं, इस सवाल पर पांडेय कहते हैं कि सरकार इस तरह के घरों को अतिक्रमण मानती है, सरकार के पास यह अधिकार है कि वह अतिक्रमण को हटाए.

ऋषि पांडेय कहते हैं कि उज्जैन शुरू से ही सांप्रदायिक नजरिए से संवेदनशील इलाका रहा है. सीमी की गतिविधियां भी वहां से चलती रही हैं. वो कहते हैं कि इन शहरों का कनेक्शन नशे के कारोबार से भी जुड़ा हुआ है. वो कहते हैं कि नीमच-रतलाम की अफीम के कारोबार से जुड़े अधिकांश तस्कर मुस्लिम समुदाय से हैं.
मध्य प्रदेश में बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने खेमे में लाकर कमल नाथ की सरकार को गिरा दिया था. उसके बाद से बीते साल मार्च में शिवराज सिंह चौहान चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. इसके बाद से शिवराज आक्रामक नजर आ रहे हैं. वो तथाकथित लव जिहाद पर अध्यादेश लाते हैं तो अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाते हैं और अब मालवा जैसे संवेदनशील इलाके में सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं. नए वाले शिवराज अभी लोगों को समझ में नहीं आ रहे हैं.
झड़प के बाद प्रशासन ने गांव के 15 मकान तोड़ दिए । pic.twitter.com/phfVF7hF9c
— Kashif Kakvi (@KashifKakvi) December 31, 2020
कौन है शिवराज का रोल मॉडल मोदी या योगी
भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीक्षित कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक टैम्पलेट बन गए हैं. अब सभी नेता उनकी ही नकल करना चाहते हैं. वो कहते हैं कि शिवराज को पहले लिबरल और अटल बिहारी की परंपरा का नेता माना जाता था. लेकिन उन्हें अब यह बात समझ में आ गई है कि जितना हिंदू-मुसलमान ध्रुवीकरण होगा, उतना ही फायदा होगा. इसलिए अब वो उसी मोड में आ गए हैं.
वो कहते हैं कि माफियाओं के खिलाफ प्रदेश में अभियान चल रहा है. लेकिन इसमें केवल मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है. वो कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि मध्य प्रदेश में हिंदू माफिया नहीं हैं. लेकिन उनके खिलाफ सरकार कुछ नहीं कर रही है. वो कहते हैं कि मध्य प्रदेश में पूरी तरह से पोलराइजेशन हो चुका है. यहां से बीजेपी का जीतना तय है. लेकिन कांग्रेस कुछ नहीं बोल रही है.
कांग्रेस की चुप्पी के सवाल पर राकेश दीक्षित कहते हैं कि उज्जैन की घटना पर कांग्रेस का एक बयान आया था, जिसमें कहा गया है कि एकतरफा कार्रवाई हो रही है. लेकिन यह बयान भी किसी बड़े नेता का नहीं था. अल्पसंख्यकों को डिफेंड करने वाला बयान किसी कांग्रेस नेता ने बयान नहीं दिया है.
कांग्रेस में पसरी इस चुप्पी के कारण के सवाल पर राकेश दीक्षित कहते हैं कि कांग्रेस नेताओं को लगता है कि अगर हमने कुछ बोल दिया तो, अभी हमारे पास जो वोट है, वह भी चला जाएगा. हालांकि इससे कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ है. वो हर जगह से पिटे हैं. राकेश दीक्षित कहते हैं कि इन सांप्रदायिक घटनाओं के बाद दिग्विजय से उम्मीद थी. लेकिन वो भी कुछ नहीं बोले हैं. वो कहते हैं कि कांग्रेस की बहुत ही बुरी स्थिति है. ऐसे में जनता ही अगर सामने आएगी तो कुछ होगा.

कांग्रेस के नेतृत्व संकट के सवाल पर राकेश दीक्षित कहते हैं कि कांग्रेस के पास कमल नाथ, दिग्विजय सिंह, अरुण यादव, सत्यदेव पचौरी जैसे धाकड़ नेता है, इनकी पूरे प्रदेश में पकड़ है. लेकिन बात यह है कि ये सब अब बुजुर्ग हो चुके हैं. इन नेताओं को अधिकतम जो मिलना था, वो मिल चुका है. अब इन नेताओं में लड़ाकूपन नहीं बचा है. ऐसे में कांग्रेस में जबतक कोई नया नेतृत्व नहीं आता, तब तक कुछ होने वाला नहीं है.
राकेश दीक्षित कहते हैं कि शिवराज इस बार चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री नहीं बने हैं, वो इस बार अमित शाह की कृपा से कुर्सी पर बैठे हैं. ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व के सामने तनकर रहने का नैतिक साहस अभी शिवराज सिंह के पास नहीं है. उन्हें नरोत्तम मिश्र जैसे नेताओं से चुनौती भी मिल रही है. वो कहते हैं कि शिवराज के व्यवहार में जो डेस्पेरेशन नजर आ रहा है, वह इसी का परिणाम है. वह कहते हैं कि जैसा शिवराज दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, वास्तव में वो वैसे हैं नहीं.
मध्य प्रदेश से आने वाले और 'कारवां' पत्रिका से जुड़े हुए विष्णु शर्मा एक वाक्य में मध्य प्रदेश की राजनीति को समेटते हैं. वो कहते हैं, '' बीजेपी पर शाह-मोदी के कब्जे के मध्य प्रदेश में बीपेजी का मप्र मॉडल हार गया है, वहां गुजरात मॉडल हावी हो गया है.''
ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि देशभर में बीजेपी के गुजरात मॉडल से हार रही कांग्रेस क्या मध्य प्रदेश में उसका मुकाबला कर पाएगी. और अगर करेगी तो कैसे?
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