क्या गुण हैं तांबे के जो एक दिन भी नहीं टिकने देता कोरना वायरस को
सोना और चांदी जैसे हैवी मेटल भी एंटीबैक्टिरियल होते हैं, लेकिन कॉपर यानि तांबे की ख़ास आणविक बनावट इसको वायरस मारने की अद्भुत क्षमता देती है. कॉपर में इल्क्ट्रोन्स की बहारी कक्षा में फ्री इल्कट्रोन होते हैं जो आसानी से ओक्सिडेशन रिडक्शन की प्रक्रिया में भाग लेते हैं. यही ख़ासियत इस धातु को गुड कंडक्टर (good cunductor)भी बनाती है.
जब पिछले महीने यह बताया गया कि कोरोना वायरस (कोविड-19) कांच और स्टील पर कई दिन तक बचा रह सकता है और तांबे (copper) पर कुछ ही घंटे में मर जाता है, तो बिल कीविल हैरानी में पड़ गए. उनकी हैरानी की वजह थी कि कॉपर पर यह वायरस कुछ घंटे भी ज़िंदा कैसे रह सकता है.
इंगलैंड में माइक्रोबाइलोजी वैज्ञानिक कीविल ने तांबे के एंटी माइक्रोबियल प्रभाव पर दो दशक से काम किया है. उन्होने कई 2009 में घातक वायरस मसलन स्वाईन फ्लू (H1N1) और मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS)का अध्य्यन किया था. इसके अलावा भी उन्होने कई शोध किये और हर शोध में पाया की ज़्यादातर वायरस या विषाण्णु कॉपर के संपर्क में आते ही मिनटों में मर जाते हैं.
2015 में कीविल ने कोरोना वायरस 229E पर शोध किया. यह वायरस कोविड 19 के ही जैसा है, उसे उसका रिश्तेदार कहा जा सकता है. इसकी वजह से सर्दी जुकाम या फिर निमोनिया हो सकता है. कीविल ने पाया कि यह वायरस तांबे के संपर्क में आते ही उड़न छू हो जाता है. जबकि कांच या स्टील जैसी सतहों पर यह वायरस 5 दिनों तक ज़िदा रह सकता है.
कीविल कहते हैं कि यह अजीब विडंबना है कि हम स्टील का प्रयोग ज़्यादा करते हैं क्योंकि यह साफ़ और चमकदार नज़र आती है. लेकिन स्टील पर वायरस लंबे समय तक टिकता है. स्टील के बारे में तर्क दिया जाता है कि अगर आप उसे साफ़ करते रहें तो वायरस उस पर नहीं रहेगा. लेकिन कॉपर के मामले में तो स्थिति बिल्कुल ही अलग है. इस धातु की तो ख़ासियत है कि इस संपर्क में आने से ही वायरस मर जाता है. यानि आप इसे साफ़ करें या ना करें, वायरस इस पर टिक ही नहीं सकता है.
प्राचीन ज्ञान और नया शोध
दरअसल कीविल का शोध एक प्राचीन उपचार की पुष्टि करता है. हज़ारों साल से जब शायद हमें जर्म्स और वायरस का ज्ञान भी ठीक से नहीं था, तांबे की ख़ासियत लोगों को पता थी. साउथ केरोलिना युनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जो माइक्रोबायोलोजी और इम्युनोलोजी पढ़ाते हैं, तांबे को प्रकृति का इंसानों को एक उत्तम उपहार मानते हैं.

मिस्र (Egypt) की मेडिकल हिस्ट्री में कॉपर का इस्तेमाल का ज़िक्र 3200 ईसा पूर्व में मिलता है. चीन में 1600 ईसा पूर्व दिल और पेट दर्द के इलाज़ के लिए कॉपर के सिक्कों के इस्तेमाल का प्रमाण मिलता है. इसके अलावा ब्लैडर से जुड़े रोगों के लिए भी कॉपर के इस्तेमाल का ज़िक्र मिलता है. तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से पेचीश और हैज़ा जैसी बिमारियां नहीं होती है, सदियों से यह पता है.

तांबे की सबसे अच्छी बात यह है कि यह सैंकड़ों बरस तक उसी तरह से काम करता है जैसा यह पहले दिन काम करता है. इस मामले में कीविल ने न्यूयार्क शहर में 100 साल पहले लगाई गई एक रेलिंग का परिक्षण किया. कुछ साल पहले जब उन्होने यह परिक्षण किया तो पाया कि 100 साल बाद भी यह रेलिंग बिल्कुल वैसे ही काम कर रही है जैसा शायद पहले दिन काम कर रही होगी. सो कॉपर ना सिर्फ़ किटाणुओं को मार देता है बल्कि लंबे समय तक टिकता भी है.
सोना और चांदी जैसे हैवी मेटल भी एंटीबैक्टिरियल होते हैं, लेकिन कॉपर यानि तांबे की ख़ास आणविक बनावट इसको वायरस मारने की अद्भुत क्षमता देती है. कॉपर में इल्क्ट्रोन्स की बहारी कक्षा में फ्री इल्कट्रोन होते हैं जो आसानी से ओक्सिडेशन रिडक्शन की प्रक्रिया में भाग लेते हैं. यही ख़ासियत इस धातु को गुड कंडक्टर (good cunductor)भी बनाती है. जबकि सोने और चांदी में यह ख़ासियत नहीं होती है. कीविल कहते हैं कि तांबे पर जैसे ही कोई वायरस पड़ता है तांबें के आयॉन्स (ions)उस पर मिसाइल की तरह से हमला करते हैं और उसे तहस नहस कर देते हैं, और वो भी मिनटों में.
अस्पतालों से अक्सर लोगों को इंफेक्शन लग जाता है. लेकिन क्या अस्पतालों में भी कॉपर के इस्तेमाल से इंफेक्शन की दर को कम किया जा सकता है. इस बारे में भी एक शोध हुआ है. श्मिट (Schmidt) का यह शोध एक लैंडमार्क शोध माना जाता है. इसमें 43 महीने यानि लगभग 3 साल और 7 महीने की पड़ताल के बाद नतीजा यह पाया गया कि कॉपर का इस्तेमाल क़रीब 58 प्रतिशत तक इंफेक्शन को कम कर सकता है. इस शोध में बताया गया कि अगर अस्पतालों की रेलिंग, दरवाज़े के नॉब, ट्रे टेबल, कुर्सियों के आर्मरेस्ट जैसी सतहों को कॉपर का बनाया जाए तो इंफेक्शन को काफ़ी कम किया जा सकता है.
उतर केरोलिना और वर्जिनिया के अस्पतालों ने 2016 के ट्रायल के बाद 2017 में क़रीब 13 अस्पतालों में मेज और रेलिंग की सतह को तांबे से बनाया तो पाया गया कि उन अस्पतालों से फैलने वाला इंफेक्शन 74 प्रतिशत तक कम हो गया.
वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर अस्पतालों में 10 प्रतिशत सतह को भी कॉपर से बनाया जाए तो इंफेक्शन की दर में काफ़ी कमी आ सकती है. लेकिन वो बात अलग है कि ऐसा किया नहीं जा रहा है.
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