ईयर इंडर 2020 : कोरोना महामारी के नाम रहा यह साल, ट्रंप की विदाई भी छाई
आइए नजर डालते उन घटनाओं के बारे में जो साल 2020 में छाई रहीं और लोगों के जीवन पर प्रभाव डाला. कोरोना महामारी पूरी दुनिया में पूरे साल छाई रही.
यह साल 2020 जाने को है. अगर हम इस साल घटी घटनाओं की तरफ पलट कर देखते हैं तो हमें इस साल की सबसे बड़ी घटना के रूप में कोरोना महामारी ही नजर आती है. कोरोना महामारी इस सदी की अबतक की सबसे बड़ी घटना है. इसमें अबतक करीब 15 लाख लोगों की जान जा चुकी है. लेकिन अभी भी इस वायरस का समाधान नहीं खोजा जा सका. ऐसे समय जब दुनिया की दवा कंपनियां अपने टीके की सफलता की दर बता रही हैं, ठीक उसी समय ब्रिटेन में इस वायरस का एक नया रूप कहर बरपा रहा है. कोरोना वायरस का नया रूप पहले की तुलना में ज्यादा घातक और तेजी से फैलने वाला है.

कोरोना के अलावा इस साल कुछ देशों से सत्ताएं बदलने और धार्मिक-नस्लीय हिंसा की खबरें भी सामने आईं. इस लेख में हम आपको 2020 में दुनिया भर में हुईं कुछ प्रमुख घटनाओं के बारे में बताएंगे. जो अपना असर छोड़ गईं और चर्चा में रहीं.
चीन से दुनियाभर में फैला कोरोना
साल 2020 की शुरुआत से ही चीन से निकला एक वायरस दुनिया के सामने चुनौती बनकर खड़ा हो गया. साल 2019 के अंत में चीन के वुहान शहर से निकले इस वायरस ने धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी जद में ले लिया. नवंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में इसका पहला मामला सामने आया था. इसके बाद दिसंबर तक इसने पूरे वुहान समेत चीन के कई शहरों को अपनी चपेट में ले लिया. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने 30 जनवरी 2020 को कोरोना वायरस को लेकर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की.
चीन के बाद 31 जनवरी को इटली में चीन से आए दो पर्यटकों में संक्रमण पाया गया. 19 मार्च तक आते-आते इटली में कोरोना से होने वाली मौत का आंकड़ा चीन से कहीं ज्यादा हो गया. डब्लूएचओ ने यूरोप को कोरोना का एक्टिव सेंटर घोषित कर दिया. 26 मार्च तक अमेरिका ने चीन और इटली दोनों को पीछे छोड़ते हुए संक्रमितों की सबसे ज्यादा संख्या में पहला स्थान हासिल कर लिया.

जांच-पड़ताल में पता चला कि न्यूयॉर्क में कोरोना का संक्रमण एशिया और चीन से आए लोगों की तुलना में यूरोप से आए पर्यटकों के जरिए अधिक फैला.
अब तक दुनियाभर में सवा 7 करोड़ से अधिक लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं. वहीं दुनियाभर में इस खतरनाक वायरस ने 16 लाख से अधिक लोगों की जान ली है. यहां हैरानी की बात यह है कि जिस देश से वायरस निकला उसने दुनिया के अन्य देशों ज्यादा तबाही मचाई. क्योंकि चीन ने समय रहते इस पर नियंत्रण कर लिया. यही कारण है कि वहां अभी तक संक्रमण से मरने वाले लोगों की संख्या 4634 ही है. जबकि अमेरिका, भारत और ब्राजील जैसे देशों ये आंकड़ा लाख को पार कर चुका है.
इटली यूरोप का पहला देश था जो कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था. साथ ही यहां दुनिया में सबसे पहले लॉकडाउन लगाया गया था. साल खत्म होने तक इटली में कोरोना से अब तक 64 हजार 520 मौतें दर्ज की गई हैं.
पर्टयन के लिए मशहूर इटली से इस वायरस को तेजी से दुनियाभर में फैलने में मदद मिली. जून-जुलाई तक आते आते इसने यूरोप, एशिया और अमेरिका तक को अपनी चपेट में ले लिया.

भारत में इस संक्रमण का पहला मामला वैसे तो 30 जनवरी 2020 को सामने आया था लेकिन जानकार ऐसा मानते हैं कि इसकी शुरूआत नवंबर 2019 से ही हो चुकी थी. लेकिन पहले देश में बड़े पैमाने पर टेस्ट की सुविधा नहीं होने के कारण इसका पता नहीं चल सका था. 30 जनवरी को भी भारत में इस संक्रमण की पुष्टि चीन से आने वाले यात्री से ही हुई थी.
कोरोना महामारी से लड़ने के लिए भारत में 25 मार्च से लॉकडाउन लगाया जो पहले 21 दिन फिर 19 दिन और फिर 14-14 दिन के लिए बढ़ाया गया. यह प्रक्रिया 31 मई 2020 तक जारी रही. हालांकि इसके बाद सरकार ने पाबंदियों के साथ लॉकडाउन हटाया. भारत में कोरोना वायरस के अब तक 1 करोड़ 75 हजार 116 मामले सामने आए हैं. वहीं कोरोना की वजह से अबतक 1 लाख 46 हजार 111 लोगों की मौत हो चुकी है.
कासिम सुलेमानी की हत्या
3 जनवरी 2020 को इराक में बगदाद हवाई अड्डे पर अमेरिकी हवाई हमले में कासिम सुलेमानी की हत्या कर दी थी. कासिम सुलेमानी ईरान के सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर और खुफिया प्रमुख मेजर जनरल थे. जनरल सुलेमानी ईरान के सशस्त्र बलों की शाखा इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स या कुद्स फोर्स के अध्यक्ष भी थे. यह सुरक्षा बल ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई को रिपोर्ट करती है.

कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिका ने अपने इस फैसले को सही बताते हुए कहा, ''वह अमेरिकी प्रतिष्ठानों और राजनयिकों पर हमला करने की साजिश रच रहा था. यह अमेरिकी सैन्य कर्मियों की रक्षा के लिए निर्णायक रक्षात्मक कार्रवाई है.''
सुलेमानी ने 1980 के ईरान-इराक युद्ध की शुरुआत में अपना सैन्य करियर शुरू किया. उन्होंने 1998 में कुद्स फोर्स का नेतृत्व संभाला. इसे ईरान की सबसे ताकतवर फौज के रूप में जाना जाता है. कासिम सुलेमानी को पश्चिम एशिया में ईरानी गतिविधियों को चलाने का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता था. अमेरिका ने कुद्स फोर्स को 2007 से आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था. अमेरिका सुलेमानी को अपने सबसे बड़े दुश्मनों में से एक मानता था. सुलेमानी को दूसरे देशों पर ईरान के रिश्ते मजबूत करने के लिए जाना गया, सुलेमानी ने यमन से लेकर सीरिया तक और ईराक से लेकर दूसरे मुल्कों तक रिश्तों का एक मज़बूत नेटवर्क तैयार किया. ट्रंप सरकार ईरान पर समय-समय पर प्रतिबंध लगाती रही.

अमेरिकी दवाब में यूएई और इजराइल का रुख भी ईरान के लिए अच्छा नहीं रहा. लेकिन इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद कासिम सुलेमानी ने ईरान के कवच के रूप में इसकी रक्षा की. कुद्स फोर्स ईरान के रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स की विदेशी यूनिट का हिस्सा है. इसे ईरान की सबसे ताकतवर और धनी फौज माना जाता है. कुद्स फोर्स का काम है विदेशों में ईरान के समर्थक सशस्त्र गुटों को हथियार और ट्रेनिंग मुहैया कराना. कासिम सुलेमानी इसी कुद्स फोर्स के प्रमुख थे. लेकिन अमेरिका ने उन्हें और उनकी कुद्स फोर्स को सैकड़ों अमेरिकी नागरिकों की मौत का ज़िम्मेदार करार देते हुए 'आतंकवादी' घोषित किया हुआ था. सऊदी अरब और बहरीन ने 2018 में कुद्स फोर्स को आतंकवादी और इसके प्रमुख कासिम सुलेमानी को आतंकवादी घोषित किया था.
जॉर्ज फ्लॉयड की मौत
25 मई को अमेरिका में मिनेसोटा स्थित मिनेपोलिस शहर में 46 साल के एक रेस्टोरेंट के अश्वेत सिक्योरिटी गार्ड जॉर्ज फ्लॉयड को जालसाजी से जुड़े एक मामले में पुलिस ने पकड़ा था. घटना का एक वीडियो वायरल हुआ था. वीडियो में साफ दिख रहा है कि जॉर्ज ने गिरफ्तारी के समय किसी तरह का विरोध नहीं किया. पुलिस ने उसके हाथों में हथकड़ी पहनाई और जमीन पर लिटा दिया. इसके बाद एक पुलिस अधिकारी ने उसकी गर्दन को घुटनों से दबा दिया. जॉर्ज कहता रहा कि वह सांस नहीं ले पा रहा है और कुछ ही देर में वह बेहोश हो गया. अस्पताल में उसे मृत घोषित कर दिया गया.

जॉर्ज की मौत से लोग आक्रोशित हो गए और रंगभेद की बात पर शहर में बवाल शुरू हो गया. शहर की कई दुकानों में लूटपाट की खबरें आईं. अमेरिका के कई शहरों में हुए इस हिंसक विरोध प्रदर्शन में 8 जून 2020 तक करीब 19 लोगों के मारे जाने की रिपोर्ट है. और इस हिंसा में 1400 से ज्यादा लोगों को अरेस्ट किया गया था. हिंसा के दौरान 500 मिलियन यूएस डॉलर की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था. इस दौरान गोली लगने से एक शख्स की मौत हुई. अमेरिका के साथ-साथ दुनिया के कई शहरों में इस घटना के विरोध में प्रदर्शनों की खबर आई.
जापान में सत्ता परिवर्तन
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 28 अगस्त को घोषणा की कि स्वास्थ्य कारणों से वो अपने पद से इस्तीफा दे देंगे. उनके इस ऐलान से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में लीडरशिप को लेकर होड़ शुरू हो गई. आबे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलान किया, "मैंने प्रधानमंत्री के पद से हटने का फैसला किया है," उन्होंने बताया कि वे अल्सरेटिव कोलाइटिस की समस्या का सामना कर रहे हैं. आबे ने कहा कि अब उनका नए सिरे से इलाज चल रहा है जिसके नियमित रूप से निगरानी की जरूरत है, ऐसे में वे अपने कर्तव्यों के निर्वहन में पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे.

14 सितंबर को मंत्रिमंडल के प्रमुख सचिव योशिहिदे सुगा को जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का नया नेता चुना गया. वह आबे के काफी करीबी माने जाते हैं. वो 2006 से आबे के समर्थक रहे हैं. आबे के उत्तराधिकारी को चुनने के लिए हुए आंतरिक मतदान में सुगा को सत्तारूढ़ लिबरल डेमाक्रेटिक पार्टी में 377 वोट मिले और अन्य दो दावेदारों को 157 वोट हासिल हुए थे.
'शार्ली हेब्दो' ने फिर छापा विवादित कार्टून
1 सितंबर को फ्रेंच व्यंग्य साप्ताहिक पत्रिका 'शार्ली हेब्दो' ने कहा कि वह पैगंबर मोहम्मद के बेहद विवादास्पद कार्टून को फिर से प्रकाशित कर रहा है ताकि हमले के कथित अपराधियों के इस सप्ताह मुकदमे की शुरुआत हो सके. मैगजीन के डायरेक्टर लौरेंट रिस सौरीस्यू ने लेटेस्ट एडिशन में कार्टून को फिर से छापने को लेकर लिखा, ''हम कभी झुकेंगे नहीं, हम कभी हार नहीं मानेंगे.''

'शार्ली हेब्दो' के कार्यालय में 7 जनवरी, 2015 को दो आतंकी भाइयों ने अंधाधुंध गोलियां बरसाईं थीं. इस आतंकी हमले में 12 लोग मारे गए थे. इनमें से कुछ मशहूर कार्टूनिस्ट थे. हमलावरों ने एक सुपरमार्केट को भी अपना निशाना बनाया था. इस मामले में पेरिस में 2 सितंबर 2020 से ट्रायल शुरू होना था. मैगजीन के हालिया संस्करण में कवर पेज पर दर्जनभर कार्टून छापे थे. कवर पेज के बीच में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून था. जीन काबूट ने इसे बनाया था. उन्हें काबू नाम से भी जाना जाता था. 2015 में हुए हमले में उनकी जान चली गई थी.
इस कार्टून के फिर से छापे जाने के बाद फ्रांस में कई जगह हिंसक घटनाएं हुईं. सिंतबर में एक पाकिस्तानी युवक ने पत्रिका के पूर्व कार्यालय के बाहर दो लोगों को चाकू से घायल कर दिया. राजधानी पेरिस के उपनगर कॉनफ्लैंस सेंट-होनोरिन में एक स्कूल के पास 17 अक्टूबर को एक शिक्षक की सिर कलम कर दिया गया. यह वारदात 18 साल के एक युवक ने की थी. पुलिस कार्रवाई में वो मारा गया. पीड़ित 47 साल के इतिहास शिक्षक सैमुअल पैटी ने अपने विद्यार्थियों को पैगंबर मोहम्मद के कुछ कार्टून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विषय पर चर्चा के दौरान दिखाए थे.
ट्रंप का जाना और बाइडेन का आना
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन ने 7 नवंबर को रिपब्लिकन पार्टी के अपने प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप को कड़े मुकाबले में हरा दिया. सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक पेन्सिलवेनिया राज्य में जीत दर्ज करने के बाद 77 साल के पूर्व उपराष्ट्रपति बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बनने के लिए रास्ता साफ हो गया. इस राज्य में जीत के बाद बाइडेन को 270 से अधिक ‘इलेक्टोरल कॉलेज वोट' मिल गए, जो जीत के लिए जरूरी थे.

पेन्सिलवेनिया के 20 इलेक्टोरल वोटों के साथ बाइडेन के पास अब कुल 273 इलेक्टोरल वोट हो गए. डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने से पहले बाइडेन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति पद पर रह चुके हैं. वह डेलावेयर के सबसे लंबे समय तक सेनेटर रहे हैं.
भारतीय मूल की कमला हैरिस अमेरिका में उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने वाली पहली महिला हैं. 56 साल की हैरिस देश की पहली भारतवंशी, अश्वेत और अफ्रीकी अमेरिकी उपराष्ट्रपति होंगी. बाइडेन और हैरिस अगले साल 20 जनवरी को पद की शपथ लेंगे.
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